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देश को कौन सी दिशा में ले जाने का प्रयास..?

Masjid SurveyImage Source: ANI

भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी के तीसरे कार्यकाल में आखिर देश के मुस्लिम आराधना स्थलों के सर्वेक्षण की आवश्यक्ता क्यों महसूस की जा रही है? यह आज का एक अहम् सवाल है, जो हर बुद्धिजीवी नागरिक के दिल-दिमाग में हलचल मचाए हुए है, सरकार ने हाल ही में यह तय किया है कि अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह सहित देश की अठारह सौ दरगाह-मसाजिदों का सरकार सर्वेक्षण करवाएगी तथा पता लगाएगी कि कहीं उसी स्थान पर पहले मंदिर तो नही थे?

अब प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल में इस तरह की तफतीश की जरूरत क्यों पड़ी? यह तो पता नहीं किंतु यह तय है कि सरकार के ऐसे फैसलों से धार्मिक उन्माद फैलने की अवश्य आशंका व्यक्त की जा रही है। देश के मुस्लिम वर्ग द्वारा दबी जुबान अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि सर्वेक्षण के दायरे में सिर्फ मस्जिद-मजार ही क्यों? प्राचीन मंदिर क्यों नहीं? अब सरकार ने यह फैसला लिया है, तो क्यों कर लिया? इसका जवाब सरकार से लेकर अफसर तक किसी के भी पास नहीं है, क्या इस फैसले के असर के बारे में शासन के किसी भी अंग ने कल्पना नही कीं? और यह फैसले देशहित में है या अहित में इस पर भी विचार नहीं किया? Masjid Survey

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यह आज का एक गंभीर मसला है, जिसे लेकर देश का हर जागरूक नागरिक चिंतित है, किसी को भी यह समझ में नहीं आ रहा कि इतना घातक फैसला लेने की सरकार को अब जरूरत ही क्यों पड़ी? और फिर सबसे अहम् सवाल यह कि इस फैसले के तारतम्य में अतीत की साम्प्रदायिक सरकारों व देश की मौजूदा सरकार में अंतर ही क्या रह गया? और फिर यदि एक क्षण के लिए यह मान लिया जाए कि देश के ये सभी मुस्लिम आराधना स्थल पुरानें मंदिरों की जगह ही बने है तो क्या सरकार इन सभी मस्जिदों-दरगाहों को तुड़वा देगी?

इसलिए इस सर्वेक्षण का मतलब क्या है? यह किसी की भी समझ से परे है। इसके बजाए तो मोदी जी को अपने तीसरे कार्यकाल में इस तथ्य का सर्वेक्षण करवाना चाहिए कि उनके शासन के अब तक के दस वर्षों के दौरान कितने गरीबों के मुंह में खाद्यान्न का निवाला नहीं पहुचा और देश को महंगाई से कितने प्रतिशत मुक्ति मिली? किंतु यह धार्मिक उन्मादी कदम देश में क्या असर करेगा? इसकी किसी ने भी चिंता नहीं की? Masjid Survey

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इसलिए अभी भी समय है कि सरकार को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए और देशहित में फैसला लेना चाहिए। और यदि हमारी इस सरकार ने यह फैसला लिया है और वह इस पर अडिग है तो फिर हमारी अतीत की उन्मादी सरकारों और आज की मौजूदा सरकार में फर्क ही क्या रह जाएगा?

यहां सबसे अहम् विचारणीय चिंताजनक सवाल तो यही है कि यदि देश के सभी मुस्लिम आराधना स्थलों का इस तरह सर्वेक्षण किया गया तो हमारी धर्मर्निपेक्ष नीति का क्या होगा? हमारे सिद्धांतों का मूल्य क्या रह जाएगा? इसलिए अभी भी पर्याप्त समय है कि सरकार अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करें और इसकी गंभीरता व इस फैसले के भावी परिणामों पर पुनर्विचार कर अपने इस फैसले पर ध्यान दे।

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