भोपाल। विधानसभा चुनाव करीब आते ही ऐसे जाति समूहों की पूछ-परख बढ़ गई है जिनका स्थानीय स्तर पर प्रभाव है पहले एक दौर आया जब संख्या बल के आधार पर जातियों को महत्त्व मिला लेकिन जैसे-जैसे चुनाव होते गए रणनीतिकारों का अनुभव बढ़ता गया और अब संख्या की बजाय प्रभाव रखने वाले व्यक्तियों और जातियों पर फोकस किया जा रहा है।
दरअसल, कई नेताओं और राजनीतिक दलों ने पिछले कुछ वर्षों में जाति राजनीति को जमकर हवा दी। कहीं-कहीं सफलता भी मिली लेकिन वह स्थाई नहीं रही और अब एक जाति के नाम पर राजनीति करना मुश्किल हो गया है। खासकर नई पीढ़ी गुण-दोष के आधार पर निर्णय लेती है। यही कारण है कि अब जातियों में भी ऐसे समूहों को ऊभारा जा रहा है जिनका समाज में प्रभाव है।जो प्रोफाइल रहते हैं सहजता और सरलता जिनका स्वभाव है क्योंकि इनके प्रति अधिकतम स्वीकृति होती है और यह भी बिना किसी मोलभाव के केवल सम्मान के आधार पर अपना निर्णय सही के पक्ष में बदल देते हैं। ऐसा ही इस समय मध्य प्रदेश की राजनीति में छोटे-छोटे पॉकेट में विभिन्न समूहों को अपनी और करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। धार्मिक आधार पर विभिन्न पदों के अनुयाई या किसी भीड़ जुटाने वाले कथावाचक संत के समर्थकों को अपनी ओर करने की कोशिश की जा रही है। जिसके साथ में और भी वोटे प्राप्त की जा सकती है साफ है ऐसे लोगों पर फोकस है जो की वोटर कहलाते हैं।
बहरहाल, छिंदवाड़ा के सिमरिया में जहां कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा कराई जा रही कथा पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा शुरू हो गई है। जो 7 अगस्त तक चलेगी। वहीं अनेक विधानसभा क्षेत्रों में कथावाचकों के प्रोग्राम तय हो गए हैं। अवसर भी अधिक मास का है जिसका सनातन धर्म में बहुत महत्व है और जो संत चौमासा के चलते कहीं जा नहीं रहे हैं वे वहीं से अपना संदेश प्रसारित कर रहे हैं। आयोजक भी समझ रहे हैं कि चुनाव के ऐन वक्त पर खर्चा करने पर चुनाव आयोग का पहरा रहता है और मध्यस्थों के द्वारा जितना भेजा जाता है अंतिम व्यक्ति तक अपना पहुंच नहीं पाता इसलिए बहुत पहले से ही आयोजनों के बहाने सम्मान देने रूठे को मनाने और टीका पटा करने का अभी अच्छा अवसर है। जिस तरह से प्रदेश के दोनों ही प्रमुख दल लगातार सर्वे करा रहे हैं यहां तक कि एक दल के चार – चार सर्वे हो रहे हैं। दो प्रादेशिक नेतृत्व कर रहा है तो दो सर्वे राष्ट्रीय नेतृत्व कर रहा है इसलिए भी मैदान में टिकट के दावेदार सक्रियता जताने माहौल को सकारात्मक बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
राजनीतिक दल जहां पिछले 3 वर्षों से आदिवासी वर्ग पर फोकस बनाए हुए हैं क्योंकि इनकी प्रदेश में आबादी 22% है और इनका स्वभाव सहजता का है इनको अपनी और करने में निश्चिंता हो जाती है क्योंकि यह वर्ग वादे का भी पक्का है। इसी तरह दलित वर्ग को रिझाने के लिए भी कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है और अब माउथ पब्लिसिटी में माहिर समाज में अधिकतम सम्मान का भाव पाने वाले ब्राह्मण समाज के प्रति आदर भाव दिखाने में भी होड जैसी लग गई है। प्रदेश में लोधी यादव और कुशवाहा पहले से ही राजनीतिक दलों के एजेंडे में रहे हैं। इन समाजों ने जिस तरह से समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है शक्ति प्रदर्शन किया है वह भी सर्वविदित है। इन समाजों से जो भी प्रभावी नेतृत्व है उनको राजनीतिक दल अपनी तरफ करते रहे हैं।
कुल मिलाकर कई मायनों में विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 की कुछ अलग ही स्क्रिप्ट लिखी जा रही है जिसमें स्थानीय स्तर पर जातीय समूहों के नए समीकरण देखने को मिलेंगे जिसमें प्रभावी जातियों का गठजोड़ बनाने की कोशिश हो रही है लेकिन माहौल बनाने के लिए समाज में सहज सरल और शक्ति प्रदर्शन से दूर प्रभावी जातियों को महत्व दिया जा रहा है उससे जरूर अक्खड़ जाति समूह भविष्य के लिए सबक लेगा। राजनीतिक दल जिस तरह से सर्वे करा रहे हैं उससे टिकट के दावेदार कि वह दलील दरकिनार कर दी जाएगी। जिसमें वह अपनी जातियों का दंभ भरते हैं क्योंकि इस बार किसी एक जाति से नहीं जो सर्व जाति में स्वीकार हो उसको टिकट देने की रणनीति पर काम हो रहा है क्योंकि दावे कितने भी किए जाएं चुनाव तो आखिर मैदान में लड़े जाते हैं और मैदान में अधिकतम सर्व स्वीकार्य ही सफल होता है। जैसे-जैसे जमाना बढ़ रहा है रिसर्च हो रही हैं वैसे-वैसे चुनाव के पुराने फार्मूले रद्दी की टोकरी में जा रहे हैं और नई रिसर्च मैं नए तरीके आजमाएं जा रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के लिए वर्तमान राजनीतिक वातावरण रिसर्च करने के लिए अनुकूल हो सकता है क्योंकि यह चुनाव नहीं है आसान बस इतना समझ लीजिए