गदर 2’ एक ऐसी अजीब फिल्म है जिसमें कुछ नया, कुछ अनोखा नहीं है। लेकिन इसमें भावनाओं का अतिरेक है, पाकिस्तान है, उसकी किरकिरी है और दर्शकों को मज़ा आता है। अनिल शर्मा की हमेशा यह शिकायत रही कि पहली ‘गदर’ को समीक्षकों ने बेकार फिल्म बताया था और उसके साथ रिलीज़ हुई ‘लगान’ के कसीदे पढ़े थे, जबकि बॉक्स ऑफिस पर ‘गदर’ कहीं ज़्यादा चली थी। संयोग देखिए कि इस बार भी समीक्षक लोग ‘गदर 2’ के मुकाबले ‘ओएमजी 2’ की ज्यादा तारीफ कर रहे हैं।
परदे से उलझती ज़िंदगी
पहली ‘गदर’ के बाद मास्टर तारा सिंह और सकीना अपने बेटे के साथ शांतिपूर्ण जीवन बिता रहे थे कि अनिल शर्मा ‘गदर 2’ ले आए। बेटा बड़ा हो चुका है, बंटवारे की कहानी पीछे छूट गई है और अब 1971 आ चुका है। एक बार फिर सीमा पर तनाव के बादल घिर आए हैं। किसी वजह से मास्टर तारा सिंह कुछ समय के लिए गायब होते हैं। बेटे को लगता है कि शायद उन्हें पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया है और वह पाकिस्तान कूच कर देता है। तारा सिंह लौटते हैं तो बेटे के बारे में जान कर उसे वापस लाने वे भी पाकिस्तान पहुंच जाते हैं। और फिर ये दोनों भारत लौटने के प्रयास में पाकिस्तान में भयावह तोड़-फोड़ मचाते हैं। सैकड़ों पाकिस्तानी सैनिकों को मार डालते हैं। यह कहना गलत होगा कि अनिल शर्मा कुछ नया नहीं सोच पाए, क्योंकि शायद वे इसके अलावा कुछ सोचना ही नहीं चाहते थे। उन्होंने बस पहली ‘गदर’ को और ज़्यादा शोर के साथ परोस दिया है। शायद उन्हें केवल उन तालियों से मतलब है जो थिएटर में बार-बार गूंजती हैं।
लगता कुछ ऐसा है कि जितनी ज्यादा तालियां बजती हैं उन्हें सुन कर सनी देओल उतने ही ज़्यादा दहाड़ते हैं। उनका बेटा बना उत्कर्ष शर्मा भी उन्हीं की तरह दहाड़ने की कोशिश करता है। मानों तीसरी ‘गदर’ के लिए अभी से प्रेक्टिस कर रहा हो। इस फिल्म में सनी देओल के हाथ में हथौड़ा रहता है। मगर बाइस साल पहले उन्होंने जो हैंडपंप उखाड़ा था उसे न दर्शक भूले हैं और न अनिल शर्मा। सो इस फिल्म में भी एक जगह बाकायदा हैंडपंप दिखता है। और कमाल यह कि सनी देओल हैंडपंप की तरफ निगाह भर डालते हैं कि पाकिस्तानी सैनिकों में भगदड़ मच जाती है। पाकिस्तानी सेना के जनरल बने मनीष वाधवा पिछली ‘गदर’ के अमरीश पुरी की काफी हद तक भरपायी करते लगते हैं। पाकिस्तानी लड़की बनी सिमरत कौर को अमीषा पटेल से ज्यादा समय दिया गया है। यह अलग बात है कि समय कितना भी ले लो, इस फिल्म में किसी के लिए भी अभिनय की ज़रूरत और गुंजाइश नहीं थी। फिल्म को चलाने के लिए पिछली ‘गदर’ के गानों के रीमेक भी हैं और ‘मैं निकला गड्डी ले के’ में उदित नारायण के साथ उनके बेटे आदित्य नारायण की भी आवाज़ है। उत्कर्ष के लिए उनसे बेहतर गायक और कौन होता। ‘गदर 2’ एक ऐसी अजीब फिल्म है जिसमें कुछ नया, कुछ अनोखा नहीं है। लेकिन इसमें भावनाओं का अतिरेक है, पाकिस्तान है, उसकी किरकिरी है और दर्शकों को मज़ा आता है।
अनिल शर्मा की हमेशा यह शिकायत रही कि पहली ‘गदर’ को समीक्षकों ने बेकार फिल्म बताया था और उसके साथ रिलीज़ हुई ‘लगान’ के कसीदे पढ़े थे, जबकि बॉक्स ऑफिस पर ‘गदर’ कहीं ज़्यादा चली थी। संयोग देखिए कि इस बार भी समीक्षक लोग ‘गदर 2’ के मुकाबले ‘ओएमजी 2’ की ज्यादा तारीफ कर रहे हैं। अमित राय के निर्देशन की यह फिल्म शंकर भगवान के दूत बने अक्षय कुमार के लिए बहुत अहमियत रखती है, लेकिन उनसे कहीं ज़्यादा यह पंकज त्रिपाठी की फिल्म है। कोई चाहे तो इस बात पर अपना सिर धुन सकता है कि आखिर सेंसर बोर्ड ने इसे ए सर्टीफिकेट क्यों दिया क्योंकि यह फिल्म तो नई उम्र के लोगों के ज़्यादा मतलब की है। सेक्स को लेकर भ्रामक मान्यताओं के शिकार एक बच्चे की बदनामी होने पर उसका पिता उसके स्कूल, नीम हकीमों और मेडिकल स्टोर के साथ ही खुद अपने ऊपर भी मुकदमा कर देता है। यह पिता पंकज त्रिपाठी हैं। वे भगवान शिव के इस कदर भक्त हैं कि उनकी मदद के लिए अक्षय कुमार शिव के दूत बन कर प्रकट हो जाते हैं। फिल्म की दिलचस्प अदालती लड़ाई में यामी गौतम एक वकील हैं और पवन मल्होत्रा जज हैं। कई विरोधाभासों के बावजूद क्रिएटिव डायरेक्टर डॉ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी के सहयोग से अमित राय ने एक अलहदा और काफी हद तक एक ज़रूरी फिल्म दर्शकों को दी है। और अनिल शर्मा के सामने फिर वही स्थिति आ खड़ी हुई है। ‘ओएमजी 2’ के मुकाबले ‘गदर 2’ का पहले दिन का कलेक्शन चार गुना ज्यादा रहा, मगर ‘ओएमजी 2’ को बेहतर फिल्म बताया जा रहा है। शायद अनिल शर्मा को एक बार फिर सिर्फ पैसे से संतोष करना पड़ेगा।