पैरालम्पिक्स की कहानी ही अलग है

पैरालम्पिक्स की कहानी ही अलग है

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Paralympic Games Paris: पेरिस पैरालम्पिक्स में कुल 23 खेल शामिल हुए। भारत ने अपने सभी पद सिर्फ पांच खेलों- एथलेटिक्स, बैडमिंटन, शूटिंग, तीरंदाजी और जूडो से जुटाए। जाहिर है, भारत के लिए आगे बढ़ने की संभावनाएं खुली हुई हैं। 2008 के बीजिंग पैरालम्पिक्स में भारत ने सिर्फ पांच खिलाड़ी भेजे थे। लेकिन तब से कारवां आगे बढ़ा है।

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भारत की पैरालम्पिक में रिकॉर्ड कामयाबी

पेरिस में रविवार को खत्म हुए पैरालम्पिक खेलों में इस बार भारत ने रिकॉर्ड कामयाबी हासिल की। सात स्वर्ण, नौ रजत, और 13 कांस्य पदकों के साथ पदक तालिका में भारत 18वें नंबर पर रहा। यह पहला मौका है, जब इन खेलों में भारतीय दल ने 29 पदक जीते हैं। और चूंकि पैरालम्पिक खेलों में भारत लगातार प्रगति कर रहा है, तो यह उम्मीद बांधी जा सकती है कि अगले खेलों में भारत सफलता की और सीढ़ियां चढ़ेगा।

पेरिस पैरालम्पिक्स में कुल 23 खेल शामिल हुए। भारत ने अपने सभी पद सिर्फ पांच खेलों- एथलेटिक्स, बैडमिंटन, शूटिंग, तीरंदाजी और जूडो से जुटाए। जाहिर है, भारत के लिए आगे बढ़ने की संभावनाएं खुली हुई हैं। 2008 के बीजिंग पैरालम्पिक्स में भारत ने सिर्फ पांच खिलाड़ी भेजे थे। लेकिन तब से कारवां आगे बढ़ा है। 2016 के रियो द जनेरो पैरालम्पिक्स में भारत चार मेडल जीत कर 43वें स्थान पर रहा था। 2020 के टोक्यो पैरालम्पिक्स में भारत ने 19 मेडल जीते और 24वें नंबर पर रहा।

विकलांगता का मतलब जीवन का बेमतलब होना नहीं

भारत की ये सफलताएं देश में विकलांग व्यक्तियों के प्रति बदलती सोच का संकेत है। देश के एक बड़े जनमत में यह भाव उतरा है कि विकलांगता का मतलब जीवन का बेमतलब होना नहीं है। विकलांगता किसी एक अंग की होती है, जिससे व्यक्ति की बाकी क्षमताएं एवं प्रतिभा अप्रभावित रहती है। आवश्यकता उसे उचित वातावरण उपलब्ध कराने की होती है।

यह अच्छी बात है कि भारत सरकार ने विकलांग खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए अधिक धन उपलब्ध कराया है। उनकी ट्रेनिंग और खेल प्रतियोगिताओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के उपाय किए गए हैँ। यह सब पर्याप्त नहीं है, लेकिन जो हुआ है, उसे एक प्रगति माना जाएगा। (Paralympic Games Paris) 

पैरालम्पिक जैसे आयोजनों की तुलना ओलिंपिक्स से करना निरर्थक है। ओलिंपिक्स में वे खिलाड़ी भाग लेते हैं, जिनसे तमाम उम्मीदें रहती हैं। जबकि विकलांग व्यक्ति से समाज तो दूर, परिजन भी कोई आशा नहीं रखते। ऐसे खिलाड़ी तमाम प्रतिकूल चुनौतियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि हर विकलांग खिलाड़ी के पीछे एक पूरी कहानी होती है। यह कहानी संघर्ष, जीवट और जज्बे की होती है।

पेरिस पैरालम्पिक्स में चीन ने 94 स्वर्ण

किसी समाज को मापने का एक सटीक पैमाना यह है कि वह अपनी कमजोर इकाइयों से कैसा व्यवहार करता है। विकलांगता से ज्यादा बड़ी कुदरती कमजोरी कोई और नहीं हो सकती। इसके अलावा अन्य सभी कमजोरियों का आधार सामाजिक व्यवस्था है।

देखा यह गया है कि जब व्यवस्था के केंद्र में हर तबके और हर व्यक्ति के विकास को केंद्र में रखा जाता है, तो उसके करिश्माई नतीजे देखने को मिलते हैं। गौर कीजिएः बीजिंग के घरेलू माहौल को छोड़ कर कभी ऐसा नहीं हुआ कि चीन स्वर्ण पदक जीतने के मामले में ओलिंपिक खेलों में अमेरिका को पछाड़ पाया हो। इस बार इसे उसकी एक बड़ी कामयाबी माना गया कि 40 स्वर्ण पदक जीत कर वह अमेरिका के साथ बराबरी पर रहा। लेकिन पैरालम्पिक्स की बात आते ही सारी कहानी बदल जाती है।

पेरिस पैरालम्पिक्स में चीन ने 94 स्वर्ण, 73 रजत और 49 कांस्य के साथ 216 पदक जीते। दूसरे नंबर पर रहे ब्रिटेन ने 47 स्वर्ण पदक जीते, यानी चीन से ठीक आधा। उसे कुल 120 पदक हासिल हुए। 36 स्वर्ण पदको और 102 के कुल पदकों के साथ अमेरिका तीसरे नंबर पर रहा। दरअसल, इन खेलों में अमेरिका का दबदबा 1996 के बाद ही टूट गया था। साल 2000 के सिडनी पैरालम्पिक्स में ऑस्ट्रेलिया पहले स्थान पर रहा। उसके बाद- यानी 2004 में एथेंस से लेकर 2024 में पेरिस तक पहला स्थान चीन ने हासिल किया है।

अब बात सिर्फ पहले नंबर की नहीं

अब बात सिर्फ पहले नंबर की नहीं है। बल्कि अब चीन का दबदबा इतना ज्यादा है कि बाकी देशों के बीच मुकाबला दूसरे नंबर पर आने के ही बच गया है। इस बात की पुष्टि हाल के हर पैरालम्पिक खेल करते हैँ। आखिर इसका राज़ क्या है? हम भारत इस बात पर ध्यान दें, तो ओलिंपिक और पैरालम्पिक दोनों खेलों में भारत की प्रगति के लिए ठोस एवं फलदायी योजनाएं बना सकते हैं।  खेल विशेषज्ञों से बात करें, तो चीन की सफलता के कुछ राज़ वे बताते हैं। उनके मुताबिक,   चीन सरकार ने विकलांगों से संबंधित खेलों में भारी निवेश किया है। इससे उम्दा दर्जे का खेल ढांचा उपलब्ध हुआ है और ट्रेनिंग की आधुनिकतम सुविधाएं इन खिलाड़ियों को मिलती हैं। (Paralympic Games Paris)

1.  सरकार संचालित एथलीट विकास कार्यक्रम के तहत खिलाड़ियों के आगे बढ़ने की मजबूत बुनियाद उपलब्ध कराई गई है।

2.   प्रतिभा की पहचान और उनकी प्रगति का निरंतर ऑब्जर्वेशन किया जाता है।

3. देश के अंदर विकलांग खेल प्रतियोगिताएं लगातार आयोजित होती हैं, जिनसे खिलाड़ियों को बहुमूल्य अनुभव प्राप्त होता है।

लेकिन वास्तव में यह पहलू पूरी कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है। कहानी असल में बुनियादी स्तर पर सबके लिए उपलब्ध सुविधाओं से शुरू होती है। हर व्यक्ति की अपनी जरूरत के मुताबिक मानव विकास की मूलभूत व्यवस्था मौजूद रहे, तो प्रतिभा के झलकने, उसकी पहचान और फिर उसका पोषण करने का तंत्र स्वाभाविक रूप से कायम होता जाता है।

पैरालम्पिक स्पोर्ट्स में सामान्य ओलिंपिक खेलों जैसा निवेश नहीं

अमेरिका में खेल प्रतिभा की पहचान और उसके पोषण की जिम्मेदारी कॉरपोरेट सेक्टर के कंधों पर रही है। ओलिंपिक स्पोर्ट्स में यह ढांचा भी अब तक कारगर है। लेकिन इस ढांचे में मुश्किल यह है कि कंपनियां उन्हीं खिलाड़ियों में निवेश करती हैं, जिनका आगे चल कर वे इश्तहार के रूप में इस्तेमाल कर पाएं। यानी जिनका एनडोर्समेंट उपभोक्ताओं का ध्यान खींचने में सक्षम हो। जैसाकि हमने ऊपर कहा है, हर विकलांग खिलाड़ियों के साथ एक संघर्ष गाथा जुड़ी होती है। दरअसल, उसके साथ एक एक व्यथा कथा भी जुड़ी होती है। इसलिए उनका खेलना ही महत्त्वपूर्ण है।

अब तक किसी समाज में आम तौर पर ऐसे खिलाड़ियों का बाजार मूल्य ऐसा नहीं बन पाया है, जिससे उनका एनडोर्समेंट कंपनियों को मूल्यवान लगे। नतीजा यह है कि पैरालम्पिक स्पोर्ट्स में सामान्य ओलिंपिक खेलों जैसा निवेश नहीं होता। जिन समाजों में बाजार ही सब कुछ तय कर रहा है, वहां व्यक्ति को खुद ही उभरना पड़ता है- यानी जहां आरंभिक चरणों में समाज कोई जिम्मेदारी नहीं निभाता। इस मामले में चीन अलग है। इसीलिए पैरालम्पिक्स का संदेश यह है कि ‘चीनी प्रकृति के समाजवादी’ ढांचे से बाकी दुनिया भी कुछ काम के सबक ले सकती है। (Paralympic Games Paris)

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Published by सत्येन्द्र रंजन

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता में संपादकीय जिम्मेवारी सहित टीवी चैनल आदि का कोई साढ़े तीन दशक का अनुभव। विभिन्न विश्वविद्यालयों में पत्रकारिता के शिक्षण और नया इंडिया में नियमित लेखन।

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