भोपाल। आजकल की राजनीति की दशा और दिशा क्या है यह स्वयं राजनेता भी नहीं जानते, वे सिर्फ इतना जानते हैं की ‘कुर्सी’ के लिए जो भी करना पड़े, कितना भी नीचे गिरना पड़े… उन्हें कबूल है। आज की राजनीति ना अपनों को जानती है और ना परायो को… वह जानती है सिर्फ कुर्सी को… उसे हासिल करने के लिए जो भी करना पड़े उस सबके लिए तैयार है, आज के राजनेता और देश के आम वोटर की चुपचाप यह सब देखते रहने की मजबूरी है, क्योंकि उनके सुख-दुख की डोर इन्हीं नेताओं से बंधी है।
आज राजनीति में नितें नये नाटक हो रहे हैं, इसका सबसे तरोताजा उदाहरण पिछले बुधवार को लोकसभा में उपस्थित किया गया वह परिदृश्य है, जिसमें कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी संसद से प्रस्थान करते समय हवाई चुंबन (फ्लाइंग किस) देते नजर आते हैं, उस समय पूर्व अभिनेत्री और मौजूदा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सदन में आक्रामक लहजे में अपनी बात रख रही थी, राहुल ने अपना आक्रोश व आरोपों से भरा 1 घंटे का भाषण प्रस्तुत किया और उसके तत्काल बाद वे अपनी सीट से उठकर बाहर जाने लगे, इसी दौरान सदन की 22 महिला भाजपा सांसदों ने लोकसभा अध्यक्ष से लिखित में शिकायत की कि राहुल ने उनकी ओर ‘फ्लाइंग किस’ किया। यद्यपि इस संबंध में तो लोकसभाध्यक्ष की कोई कार्यवाही या प्रतिक्रिया फिलहाल सामने नहीं आई है, वे ‘सीसीटीवी फुटेज’ देखकर कार्यवाही तय करेंगे, किंतु यदि राहुल ने ऐसा कुछ किया है तो यह स्वयं उनके वह उनकी राजनीति के लिए शर्मनाक है।
वैसे भी आजकल संसद को तो ‘टाइम पास’ और मनोरंजन का मुख्यालय बना दिया गया है, हमारे राजनीतिक कर्णधारो को देश, देशवासी व उनकी समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें बस पैसा अर्जित करना वह अपनी स्वार्थी राजनीति करना है। उन्होंने देश व देशवासियों को भगवान के भरोसे छोड़ दिया है, उन्हें 5 साल में सिर्फ एक बार मजबूरीवस देशवासियों के सामने वोट की भीख मांगने जाना पड़ता है, उसे समय अनुसार साध लेते हैं और फिर 5 साल के लिए बेफिक्र हो जाते हैं।
यह तो हुई आज के राजनेताओं की बात अब यदि हम देशवासी याने आम वोटर की बात करें तो मेरी नजर में आज की इस स्थिति के लिए सिर्फ और सिर्फ देशवासी या आम वोटर ही जिम्मेदार है, जो पिछले 75 साल में भी सच्चा व राष्ट्रभक्त देशवासी नहीं बन पाया, वह यदि चाहता तो देश की मौजूदा स्थिति को कभी का सही पटरी पर ले आता, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, यह इसलिए भी नहीं हो पाया क्योंकि आज के राजनेताओं ने उसे अपनी निजी समस्याओं में इतना उलझा दिया कि उसे देश, दुनिया व राजनेताओं के बारे में सोचने और सही कदम उठाने की फुर्सत ही नहीं मिल पाई। अब इसे और कुछ नहीं सिर्फ हमारे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा।
अब तो देश के राष्ट्र भक्तों व बुद्धिजीवियों को इसी बात की मुख्य चिंता है कि यदि देश की यही दशा व दिशा रही तो यह देश किधर जाएगा और इसका भविष्य क्या होगा? क्या हमें फिर हमें इन्हीं कांटो भरे रास्ते से गुजरने को मजबूर होना पड़ेगा, जिससे हमें 75 साल पहले मुक्ति दिलाई गई थी? देश के विचारक और बुद्धिजीवी इस प्रश्न का उत्तर खोज नहीं पा रहे हैं और देश… वह तो निरंतर इसी दुर्गम पथ पर आगे बढ़ रहा है। हमारी त्रासदी यही है कि हम पथभ्रष्ट हो चुके हैं और हमें अब गांधी-नेहरू की तरह कोई सही राह दिखाने वाला नहीं है, आज हम खुद अपने भविष्य के बारे में कल्पना कर सिहर उठते हैं, क्या अब भी देश की जनता या आम वोटर स्वयं के बारे में सजग नहीं होगा? या उसे किसी मार्गदर्शक की तलाश है?