भोपाल। मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल की अंतिम राजनीतिक लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रही है, इसलिए कभी रसोई गैस सिलेंडर के दाम घटाए जा रहे हैं, तो कभी जम्मू कश्मीर के पुरातन मसलों को हल करने की बात की जा रही है, देश के राजनीतिक चिंतको का कहना है कि इसी माह संसद के विशेष सत्र का आयोजन भी इसी राजनीतिक हित को दृष्टिगत रखकर किया जा रहा है, जिसमें महिला आरक्षण के साथ देश में सभी चुनाव एक साथ करने की फिर से पहल की जाएगी, उल्लेखनीय है कि देश की आजादी के बाद संसद वह देश की विधानसभाओं के चार चुनाव (1947 से 1967 तक) एक साथ ही कराए गए थे और उसके बाद यह परंपरा टूट गई थी, जिसे अब मोदी सरकार फिर करवाने की पहल कर रही है, इस पहल से देश को हजारों करोड़ों रुपए की बचत होगी।
केंद्र सरकार द्वारा संसद के विशेष सत्र की अचानक घोषणा कर भारतीय राजनीति में खलबली मचा दी है, इसलिए इस सत्र के औचित्य पर हर कहीं बहस भी तेज हो गई है, कोई निर्धारित समय से पहले चुनाव कराने की बात कर रहा है, तो कोई इस आकस्मिक घोषणा को भाजपा के एजेंडे को सेट करने वाली बता रहा है, जो भी हो मोदी का यह दाव सभी को चौंकाने वाला तो अवश्य ही है, सत्तारूढ़ दल इस सत्र को अमृत काल में ‘अमृत वर्षा’ वाला सत्र बता रहा है, तो प्रतिपक्ष मोदी सरकार के इस आकस्मिक कदम पर चिंतन में व्यस्त हो गया है। यह 17वीं लोकसभा का 13वां सत्र और राज्यसभा का 26वां सत्र होगा, विशेष सत्र की घोषणा अवश्य की गई, किंतु इसका एजेंडा अभी गोपनीय रखा गया है, इसी कारण सत्र को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है।
जो भी हो, किंतु यह तो कटु सत्य है कि यह मोदी जी के दूसरे शासनकाल का अंतिम विशेष सत्र होगा और इसके माध्यम से मोदी सरकार द्वारा सत्तारूढ़ भाजपा के कई राजनीतिक हित साधने के प्रयास किए जायेंगे। चर्चा है कि चूंकि देश में यथाशीघ्र ‘जी20’ की बैठकें आयोजित की जा रही है, इसलिए सरकार अपने एजेंट के पत्ते सार्वजनिक नहीं करना चाहती जी20 की शिखर बैठक के तत्काल बाद एजेंडे का खुलासा कर दिया जाएगा। जी20 की विशेष बैठक देश की राजधानी में 9 और 10 सितंबर को आयोजित हो रही है, संसदीय कार्यमंत्री ने यह संकेत अवश्य दिए हैं कि इस पांच दिवसीय विशेष सत्र में कई अध्यादेशों (बिल) पर चर्चा करवा कर उन्हें संसद से पारित करवाने के प्रयास किए जाएंगे, साथ ही यदि एक देश-एक चुनाव का बिल प्रस्तुत किया जाता है तो पहले इससे संबंधित संविधान संशोधन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी, उसके बाद ही इस बिल को संसद में प्रस्तुत किया जाएगा। जो भी हो, किंतु यह तय है कि मोदी सरकार एक देश-एक चुनाव अर्थात पूरे देश में संसद व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करने की कानूनी अड़चन दूर करने का संकल्प ले चुकी है और वे मोदी सरकार अपना दूसरा कार्यकाल पूरा होने और देश के सामने चुनाव प्रस्तुत करने के पहले पूरा करना चाहती है, जिससे कि अन्य कथित देशहितेषी चुनावी मुद्दों के साथ यह मुद्दा भी जुड़ सके और देश की आर्थिक बचत की आड़ में अपना राजनीतिक हित सादा जा सके।
संसद के इस विशेष सत्र को लेकर यह भी प्रमुख रूप से चर्चा है कि मोदी सरकार इस सत्र के दौरान अपनी एक दशक की सरकार की प्रमुख उपलब्धियों व जनहितैषी कदमों को भी देश के सामने रख सकती है, पिछला मानसून सत्र हंगामों और नारेबाजी में डूब गया था, इसलिए उसे सत्र में मोदी सरकार अपने इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं कर पाई थी, इसलिए अब यह पांच दिवसीय विशेष सत्र बुलाने को मजबूर होना पड़ा है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही विपक्ष की तरफ से ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि मोदी सरकार इस बार निर्धारित समय से पूर्व आम चुनाव करा सकती है, प्रतिपक्ष इस विशेष सत्र को उसी चर्चा का साक्षात स्वरूप मान रही है। ममता बैनर्जी और नीतीश कुमार पहले ही इस संभावना को उजागर कर चुके हैं।
इसी राजनीतिक परिदृश्य के चलते भाजपा की चुनावी तैयारियां भी दिन दूनी-रात चौगुनी गति पकड़ रही है। जबकि मुख्य प्रतिपक्षी दल कांग्रेस की कोई विशेष सजकता दिखाई नहीं दे रही है, अब यह तो तय है कि सत्तारूढ़ भाजपा का चुनावी मुख्य शस्त्र 9 वर्षीय मोदी कार्यकाल की विशेष उपलब्धियां होगी तो प्रतिपक्षी कांग्रेस इन्हीं कथित उपलब्धियों की कथित असफलता को अपना चुनावी हथियार बनाएगा। जो भी हो, फिलहाल तो यही तय नहीं है कि देश की संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे या अपने पूर्व निर्धारित समय पर, इसलिए प्रतिपक्षी दल अपनी रणनीति तय नहीं कर पा रहे हैं।