क्या आपके दिन अच्छे गुज़र रहे हैं? क्या आपकी ज़िन्दगी अच्छी कट रही है?
जवाब देने से पहले आपको यह तय करना पड़ेगा कि आखिर जो दिन अच्छे गुज़रते हैं, वो दिन कैसे होते हैं? जो ज़िन्दगी अच्छी कटती है, वो ज़िंदगी कैसी होती है? और यकीन मानिए, इन्हें परिभाषित करना आसान काम नहीं है। बल्कि यह काफी मुश्किल काम है।
आपके लिए आपके पूरे दिन का खाका खींचना भी बेहद कठिन काम है। और यदि आपने यह कर भी लिया तो उस पर ‘अच्छे’ का लेबल चस्पा करना तो और भी कठिन है। आखिरकार कोई दिन अच्छा कैसे हो सकता है जब हमारे चारों ओर कुछ भी ऐसा नहीं है जो परफेक्ट हो, सब तरफ अपूर्णता है, अस्तव्यस्तता है और दूसरों का नुकसान करने को अपना परम कर्त्तव्य समझने वाले लोगो के गिरोह हैं?
और खासकर तब तो आपके दिन किसी भी हालत में अच्छे नहीं हो सकते यदि आप पेट भरने के लिए सार्वजनिक शौचालयों को साफ करने का काम करते हों!
हिरायामा अपने ज़िन्दगी की गाड़ी चलाने के लिए टोक्यो में सार्वजनिक शौचालयों की सफाई का काम करता है। उसकी दिनचर्या तय है, एकदम बारीकी से तय है। सुबह उठना, ब्रश करना, पेड़ों को पानी देना, काफी पीना और गाड़ी चलाकर काम की जगह – मतलब सार्वजनिक शौचालय – पहुंचना। फिर लंच ब्रेक में एक सैंडविच खाना और ब्रेक के बाद दुबारा काम में जुट जाना। शाम तक काम खत्म करना, नहाना, रात का भोजन और फिर कुछ पढ़ते-पढ़ते सो जाना। अगली सुबह फिर वही दिनचर्या, घड़ी के काँटों की तरह दुहराना और हर दिन दोहराते जाना।
यह सब कुछ बहुत ही उबाऊ और नीरस है। है ना? एक ही तरह का काम दिन-ब-दिन करने जाना। और ऐसे दिनों को अच्छा तो कोई नहीं कह सकता।
यह पठकथा, स्क्रीप्ट है वेम वेंडर की फिल्म की। फिल्म का नाम है ‘परफेक्ट डेज‘। फिल्म में हिरायामा के कई दिन दिखाए गए है, कुछ विस्तार से तो कुछ संक्षेप में। मगर हर दिन होता वैसा ही है। आधे घंटे बाद आप रिमोट पर स्टॉप का बटन दबाना चाहेंगे। यही कारण था कि भारत में इस फिल्म को सिनेमाघरों में रिलीज नहीं किया गया। ‘पठान’ और ‘कल्कि’ के विद्युत् गति के सामने ‘परफेक्ट डेज’ की कछुआ चाल भला कहा ठहरेगी। भारतीय दर्शकों को यह फिल्म एकदम पसंद नहीं आएगी।
लेकिन हिरायामा अपनी दिनचर्या के एक जैसे ढर्रे और धीमी रफ्तार से खुश है। वह ज्यादा बोलता नहीं है। उसकी उम्र 60 से ज्यादा है। वो एक साधारण से फ्लेट में रहता है जिसमें बहुत से कैसिट और किताबें हैं। वह बहुत सुबह उठता है। अक्सर सड़क की पत्तियों को झाड़े जाने की आवाज से उसकी नींद टूटती है। वो अपने अपार्टमेंट से बाहर निकलता है, गहरी सांस लेता है और फिर मुस्कुराती हुई निगाहों से आकाश की ओर देखता है। फिर वेंडिग मशीन से काफी निकालता है, उसे पीता है और काम के लिए रवाना होने के पहले बहुत ध्यान से वे कैसेट चुनता है जिन्हें वो रास्ते में सुनेगा। स्पोटीफ़ाय और यूटयूब के दौर में भी हिरायामा कैसिट ही सुनता है। वह हमें हमारे पुराने सीधे-सादे दिनों की याद दिलाता है। कैसेट-जनित संगीत हिरायामा और फिल्म का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो पठकथा को दिशा देता है और हमें हिरायामा के मन में झाँकने के लिए एक खिड़की मुहैया करवाता है।
हिरायामा के पास एक पॉइंट एंड शूट कैमरा – ओलम्पस – है और लंच के दौरान वह हमेशा एक ही पेड़ की तस्वीरें लेता है। आकाश, रोशनी और छाया के जादुई प्रभाव की। एक जापानी शब्द है ‘कोमोरेबी’। यही शुरू में इस फिल्म का शीर्षक था। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘पेड़ों से छनकर आती सूरज की रोशनी’। लेकिन इसका लाक्षणिक अर्थ काफी व्यापक है। और फिल्म उसी लाक्षणिक अर्थ के बारे में है, प्रकृति से हमारे गहरे नाते के बारे में है, कुछ ठहरकर, कुछ ठिठककर, कुछ समय देकर छोटी-छोटी महत्वहीन चीजों की उत्कृष्टता को समझने और उनकी सराहना करने के बारे में है। हिरायामा ऐसा ही करता है और कोमोरेबी को अपने जीवन का केंद्रीय तत्व बना लेता हैं। उसकी आंखे हमेशा जिज्ञासा से भरी रहती हैं। वह उन्हीं चीज़ों को रोज़ देखता है और फिर भी उन्हें देख चकित होता है, उनके प्रति प्रशंसा भाव से भर जाता है। वो सभी चीजों और सभी लोगों को ध्यान से देखता है। उसके लिए हर चीज एक समान महत्व की है और हर चीज में उत्कृष्टता हासिल करने की एक सी क्षमता है। उसके चारों ओर टोक्यो का कोलाहल है। फिर वह लड़का भी है जो उसके साथ काम करता है। उसकी भतीजी भी उसके घर आती है। मगर हिरायामा इस सबसे अप्रभावित है। वह केवल आज में जीता है।
‘परफेक्ट डेज’ इंटरनेशनल फीचर फिल्म श्रेणी में ऑस्कर पुरुस्कारों के लिए जापान की एंट्री थी। इस फिल्म की नींव तब पड़ी जब निर्देशक विम वेंडर्स को एक प्रस्ताव मिला। उनसे कहा गया कि क्या वे ऐसी परियोजना पर काम करना चाहेंगे जो टोक्यो के सार्वजनिक शौचालयों की छवि सुधारे। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि टोक्यो के पुराने सार्वजानिक शौचालय, वास्तुकला के नायाब नमूने हैं। उन्होंने प्रस्ताव दिया और इस तरह इस फिल्म का जन्म हुआ।
जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती जाती है, आप हिरायामा की निगाहों से दुनिया को देखने लगते हैं। वह आपमें आशा जगाती है, आपको गुज़रे ज़माने में ले जाती है। आप हिरायामा के लिए बुरा महसूस करते हैं, फिर आप खुद के लिए भी बुरा महसूस करते हैं और रिमोट का पॉज बटन दबा देते हैं।
सोशल मीडिया के इस युग में हमने जीने का नया अंदाज़ सीख लिया है। हमें अपने दिन एक से, उबाऊ और बोरियत से भरे इसलिए लगते हैं क्योंकि हमने डिजिटल दुनिया के आगे आत्मसमर्पण कर दिया है। ‘परफेक्ट डेज’ आपको याद दिलाती है डिजिटल विश्व से बाहर की दुनिया की, वह आपसे कहती है ठहरो, अपने आसपास देखो, उसे समझो। वह आपको जीने का एक नया तरीका बताती है। वह कहती है आज में जीओ, अपने रोज़मर्रा के जीवन में चैन ढूँढो, खुद को खुश रहने का मौका दो। (परफेक्ट डेज, एमयूबीआई पर उपलब्ध है, जिसे आप अमेज़न प्राइम के ज़रिये देख सकते हैं) (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)