हाल यह है कि हमारे प्रधानमंत्री खुद तो मीडिया से बात करते नहींहैं अमेरिका के राष्ट्रपति को भी नहीं करने दी। जैसा कि कांग्रेस के नेतागुरदीप सिंह सप्पल ने अच्छा व्यंग्य किया कि लोकतांत्रिक देश में अमेरिकीराष्ट्रपति को बोलने की इजाजत नहीं मिली और उन्होंने कम्युनिस्ट देशवियतनाम में जाकर बोला। बाइडन ने वहां जाकर कह दिया कि मैंने मोदी सेभारत में प्रेस की आजादी का सवाल उठाया।….तो राहुल का बढ़ता राजनीतिक कद उनके लिए अधिक सुरक्षा की भी मांग करताहै। अभी एक पत्रकारीय षडयंत्र का खुलासा हुआ है। मगर खुद कांग्रेस में हीजगह जगह ऐसे षडयंत्रकारी बैठे हुए हैं।
यह आपराधिक है। राहुल गांधी जिन्हें पहले एसपीजी की सुरक्षा प्राप्त थीउसे हटाकर अब सीआरपी की सुरक्षा दी गई है और दूसरी बात उनकी प्रेस कान्फ्रेंस में अफरातफरीफैलाने का षडयंत्र।लेकिन यह कोई पहली बार नहीं है। यह तो यूपीए के समय भी होता रहा है। आजकेन्द्र में कांग्रेस विरोधी सरकार है तो कांग्रेसी बड़ी जोर से चिल्लारहे हैं कि उनके नेता राहुल की मुबंई प्रेस कान्फ्रेंस में एक बड़े चैनलजिसे हाल ही में देश के सबसे बड़े उद्योगपति ने खरीदा है उसके नएसंपादक ने अपने मुंबई रिपोर्टर से प्रेस कांफ्रेस में हंगामा खड़ा करने को कहा था। इसका खुलासा खुद उस रिपोर्टर सोहित मिश्रा ने चैलन से इस्तीफा देकर किया।
मुबंई की उस प्रेस कान्फ्रेंस में हम भी थे। माहौल बहुत सरचार्ज था।राहुल दिल्ली से मुबंई पहुंच चुके थे। उस होटल ग्रेंड हयात में भी आ गएथे जहां पत्रकारों की भारी भीड़ उनका इंतजार कर रही थी। 31 अगस्त की बात है। विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA की तीसरी बैठक का पहला दिन।
राहुल प्रेस कान्फ्रेंस में नहीं आ रहे थे। तमाम चर्चाएं। प्रेसकान्फ्रेंस सबको मालूम थी कि अडानी पर होनी है। रात को ही दोअन्तरराष्ट्रीय अखबारों में उन पर बड़े खुलासे आए थे। होटल में राहुल केपास शरद पवार भी मौजूद थे जिनके बारे में कहा जा रहा था कि वे राहुल को समझाने आए हैं कि अडानी पर थोड़ा नर्म रुख रखें।
मगर राहुल निर्धारित समय से दो घंटे बाद पत्रकारों के बीच आए और उसी तेवरमें। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी। अडानी का गढ़। सवालों की बौछार आ गई।मगर जगह जगह तैनात उद्धव ठाकरे के शिव सैनिकों ने हालात संभाले रखी। अगर यही प्रेस कान्फ्रेंस कांग्रेस की व्यवस्था में होती तो हंगामा मच गया होता। मगर होटल पर भी उद्धव ठाकरे का पूरा नियंत्रण था और वहां की व्यवस्थाओं पर भी।
बाद में सोहित ने बताया कि उन पर कैसा दबाव था। और यह पहली बार नहीं है।सोहित की इस कहानी के सामने आते ही एक और चैनल जो खुद को सबसे तेज कहताहै उसकी एक रिपोर्टर की कहानी भी बताई जाने लगी कि उससे भी चैनल केसंपादकों ने राहुल से भड़काने वाले सवाल पूछने को कहा था। उसने भी चैनलसे इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वाली पत्रकार ने राहुल की पूरी यात्रा को कवर किया था। उससमय ज्यादातर रिपोर्टरों पर यह दबाव था कि वे यात्रा के खिलाफ लिखें। इसपत्रकार पर इसलिए ज्यादा था कि कि ये लगातार यात्रा के साथ थी। बाकी आ-जारहे थे। मगर इस पत्रकार ने भी नौकरी छोड़ना उचित समझा पत्रकारिता के साथधोखा नहीं किया।
कांग्रेस के तमाम प्रचार प्रिय नेता राहुल की यात्रा का श्रेय लेने सामनेआ गए थे। मगर यात्रा की सफलता का असली श्रेय उन सैंकड़ो हर छोटे बड़ेशहर, कस्बों के पत्रकारों को था जहां से यात्रा निकलती थी और वे भागभागकर उसे कवर करते थे। अपने अखबारों में खबर देते थे। चैनल वाले चैनलोंमें भेजते थे, जितनी चल जाए। बाकी सब सोशल मीडिया पर डाल देते थे। जहांसे यात्रा को सबसे ज्यादा कवरेज मिला है। बाकी कांग्रेस के तो ज्यादातरनेता जो दिल्ली से जाते थे। खाते पीते नेताओं को गालियां देते होटल मेंपड़े रहते थे।
पत्रकारों को गोदी मीडिया कहा जाता है। सच भी है। मगर ऐसे भी बहुत हैं जोमेहनत और जिम्मेदारी से अभी भी पत्रकारिता का काम करते हैं। सर्दियों केदिन थे जेब से हाथ बाहर नहीं निकाले जा सकते थे। बिस्तर से निकलना तो दूररहा। मगर सुबह पांच बजे से राहुल के डेरे के बाहर जाकर खड़े हो जाते थे।राहुल छह बजे ही निकलने की कोशिश में रहते थे। कश्मीर की ऊंची चढ़ाइयांजहां सब कांग्रेसी नेता गाड़ियों से जा रहे थे पत्रकार पैदल अंधेरे मेंचढ़ते रहे। बर्फ में फिसलते, गिरते सब तरह कि स्थितियों में जिस से जितनाहुआ यात्रा को कवर किया।
तो गोदी मीडिया अपनी जगह है। ज्यादातर स्टूडियो में बैठै है। अखबारों के एसी कमरों में राहुल की और खुद अपने संवादताताओं की आलोचना करते हुए। मगरफिल्ड में पत्रकारिता अभी भी जिन्दा है। कांग्रेसियों को यह नहीं दिखती।उन्हें फायदा स्टूडियों में बैठे एंकरों से है। जो उनका चेहरा चमकातेहैं। अखबारों के संपादकों से है जो उनका फोटो लगाकर उनका इंटरव्यू छापदेते हैं। राहुल का फोटो और यात्रा की खबर नहीं छापते। हम यात्रा कैसेकरवा रहे हैं का दावा करने वाले मैनेजरों का इंटरव्यू छापते हैं।
दफ्तरों, स्टूडियो में बैठे लोग ही असली षडयंत्रकरी हैं। उनके पास कोई औरकाम ही नहीं है। कांग्रेस के भी जनता से कटे हुए नेता ही षठयंत्रकारीहोते हैं। षडयंत्र अपने लोगों के ही खिलाफ। राहुल के खिलाफ। राहुल और प्रियंका को लड़ाने की योजनाएं। सिर्फ भाजपा का आईटी सेल ही राहुल औरप्रियंका में रिफ्ट ( विभाजन) पैदा नहीं करता बल्कि कांग्रेसी भी करते हैं। औरसच यह है कि सबसे ज्यादा कांग्रेसी करते हैं। और मसाला भाजपा को देतेहैं।
तो यह बड़ा खुलासा सामने आया है कि राहुल की प्रेस कान्फेंस मेंपत्रकारों से गदर करवाओ। यह राहुल की सुरक्षा के लिए भी बड़ा खतरा है।अफरातफरी में क्या हो जाए किसी को नहीं मालूम। और आजकल राहुल की सुरक्षावह नहीं रहती है जो एसपीजी के टाइम रहती थी। अभी मुबंई की जिस प्रेसकान्फ्रेंस को असफल करने की कोशिश का षडयंत्र रचा वहां कोई खास सुरक्षानहीं थी। प्रेस कान्फ्रेंस में कोई भी आ सकता था। राहुल की सुरक्षा उनकेसाथ आती है। या दो चार मिनट पहले।
याद रखना चाहिए कि इसी परिवार के दो सदस्य ऐसे ही मारे गए हैं। प्रेसकान्फ्रेंस में अव्यवस्था फैलाने के षडयंत्र की जांच होना चाहिए। मगर करेकौन? कांग्रेस तो खुद अपनी सरकार के समय केन्द्रीय गृहमंत्री पर कांग्रेसमुख्यालय में ऐसी ही प्रेस कान्फ्रेंस में जूता फैंकने वाले मामले मेंकोई जांच नहीं कर सकी। उसके बाद कांग्रेस मुख्यालय में ही कई घटनाएं हुईंमगर कोई जांच नहीं। कांग्रेस मुख्यालय में उपद्रव कौन करवाता है? कुछपता नहीं। जब कांग्रेस अपने राज में कुछ नहीं कर सकी तो अब वह क्या करेगी? वहस्थिति की गंभीरता को समझ भी नहीं रही।
राहुल का असर बढ़ता जा रहा है। ब्रिटेन, अमेरिका के बाद यूरोप के ताजा दौरेने राहुल की लोकप्रियता का दायरा बहुत बढ़ा दिया है। हर जगह वेविद्यार्थियों से, बुद्धिजीवियों से आम नगरिक से और पत्रकारों से मिल रहे हैं। बात कर रहे हैं और हर सवाल का जवाब दे रहे हैं।
यहां तो हाल यह है कि हमारे प्रधानमंत्री खुद तो मीडिया से बात करते नहींहैं अमेरिका के राष्ट्रपति को भी नहीं करने दी। जैसा कि कांग्रेस के नेतागुरदीप सिंह सप्पल ने अच्छा व्यंग्य किया कि लोकतांत्रिक देश में अमेरिकीराष्ट्रपति को बोलने की इजाजत नहीं मिली और उन्होंने कम्युनिस्ट देशवियतनाम में जाकर बोला। बाइडन ने वहां जाकर कह दिया कि मैंने मोदी सेभारत में प्रेस की आजादी का सवाल उठाया।
तो राहुल का बढ़ता राजनीतिक कद उनके लिए अधिक सुरक्षा की भी मांग करताहै। अभी एक पत्रकारीय षडयंत्र का खुलासा हुआ है। मगर खुद कांग्रेस में हीजगह जगह ऐसे षडयंत्रकारी बैठे हुए हैं। पिछले साढ़े 9 साल कि लिस्टदेखिए! 2014 से पहले कौन सोच सकता था कि गुलाम नबी आजाद, सिंधिया, जितिनप्रसाद, आरपीएन सिंह कांग्रेस से दगा करेंगे। ऐसे बहुत सारे लोग हैं अभी।षडयंत्र में लगे हुए। राहुल के खिलाफ झूठी सच्ची बातें फैलाते हुए। औरसबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि महत्वपूर्ण जगहों पर बैठे हुए।