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प्रियंका गांधी के संसद प्रवेश का बीजगणित

Priyanka GandhiImage Source: ANI

Priyanka Gandhi: भले ही उत्तर प्रदेश में लड़की के न लड़ पाने की तोहमत हम प्रियंका पर मढ़ दें, मगर अपनी नई भूमिका में उन की संप्रेशण दक्षता देश भर की महिला मतदाताओं का मानस तेज़ी से बदलेगी।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पंजीकृत तक़रीबन 97 करोड़ मतदाताओं में सवा 47 करोड़ महिलाएं थीं। पांच साल में पंजीकृत मतदाताओं की तादाद औसतन 7-8 करोड़ बढ़ जाती है।

इस हिसाब से 2029 में देश में एक अरब चार करोड़ से कम मतदाता नहीं होंगे। इन में 50 करोड़ महिला मतदाता होंगी।

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लड़की हूं, लड़ सकती हूं(Priyanka Gandhi)

पूछने वालों को यह पूछने का हक़ है कि जो प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनावों में 209 सभाएं और रोड शो करने के बावजूद कांग्रेस को दो फ़ीसदी वोट ही दिला पाई थीं, उन के अब लोकसभा में पहुंच जाने से ऐसा क्या चमत्कार हो जाएगा कि कांग्रेसजन वायनाड के चुनाव नतीजों के बाद से लंुगी-डांस कर रहे हैं?

कहने वालों को यह कहने का भी हक़ है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में कांग्रेस की 40 प्रतिशत उम्मीदवारी महिलाओं के आंचल से बांध देने के बाद भी ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ के नारे की घनघोर विफलता देख लेने के बाद कांग्रेसजन को प्रियंका से अब ऐसी कौन-सी करामात की उम्मीद है कि वह दिन आया ही समझो, जब देशवासी कांग्रेस पर लट्टू हो जाएंगे?

प्रियंका की सांगठनिक क्षमता पर यह सवाल उठाने का अधिकार भी लोगों को है कि कांग्रेस पार्टी की महासचिव बने तो उन्हें पौने छह साल से ज़्यादा हो गए हैं, लेकिन इस दरमियान उन्होंने ऐसा क्या कर दिखाया है कि कांग्रेस अब उन में अपना भविष्य खोजे?

जनवरी 2019 में महासचिव बनने के बाद जब क़रीब पौने दो साल पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार उन के पास था तो क्या वहां के 18 ज़िलों में कांग्रेस का परचम लहराने लगा था?

फिर अब जब वे चार बरस से पूरे उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं तो क्या सहारनपुर से सोनभद्र तक, महोबा से महाराजगंज तक और मथुरा से अयोध्या तक कांग्रेस पर पुष्पवर्षा हो रही है?

नेहरू-गांधी परिवार के 3 सदस्य संसद में (Priyanka Gandhi)

उठाने वालों को यह मुद्दा उठाने का भी हक़ है कि नेहरू-गांधी परिवार के तीन-तीन सदस्यों का एक ही समय में संसद में होना क्या हमारी क़ौमी जम्हूरियत और कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की अस्वस्थ तस्वीर पेश नहीं करता है?

जिन्हें इस बहाने वंशवाद के विमर्श को नए सिरे से उस के कथनांक बिंदु तक ले जाने में दिलचस्पी है, उन्हें भी इस की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।

बावजूद इस तथ्य के कि इन तमाम प्रश्नों में दम है, मैं आप से कहना चाहता हूं कि वायनाड से प्रियंका की जीत के बाद कांग्रेस को अपने लिए दिख रही रोशनी के ताज़ा उछाह पर उठ रही इन तमाम उंगलियों को मैं इसलिए सकारात्मक मानता हूं कि अगर कांग्रेस के लिए नए ज़माने का कोई सूरज कभी उगेगा तो उस का उजाला सवालों और एतराज़ के इन्हीं झाड़-झंखाड़ों के बीच से गुज़र कर ही तो कांग्रेस के दालान में पहुंचेगा।

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी को चाहने वाले, ज़ाहिर है कि, अभी क्या, कभी भी, यह नहीं मानेंगे कि संसदीय सियासत की ड्योढ़ी पर प्रियंका की औपचारिक दस्तक से उन की सेहत पर इत्ता-सा भी फ़र्क़ पड़ने वाला है।

मगर मन-ही-मन वे जानते हैं कि प्रियंका के आगमन ने आगत के आसार का बीजगणित भारतीय जनता पार्टी के लिए काफी दुरूह कर दिया है।

यह परिघटना कांग्रेस को ताक़त देगी

यह परिघटना कांग्रेस को तो जो ताक़त देगी, सो देगी ही, अगले दो बरस में देश के मौजूदा प्रतिपक्षी जाज़म का दृश्य बदलने की भी कूवत रखती है। इस संभावना के साथ किंतु-परंतु के क्षेपक जोड़ने वालों को आज़ादी है कि वे अपने-अपने हिसाब-किताब लगाते रहें।

मगर मैं ख़ुद-एतमाद हूं कि अगर प्रियंका ने कुछ बातों का ख़्याल रखा तो आप-हम रायसीना-पहाड़ी को एक दिन पलक-पांवड़े बिछा कर उन का इंतज़ार करते देखेंगे।

मैं जानता हूं कि यह कहने के बाद कई हाथों के पत्थर मेरी तलाश करेंगे कि कांग्रेस को चुटकियों में मसल कर कांकड़ा-खोह में फेंक देने की ख़ुमारी से हमारे वर्तमान सत्तासीनों के बाहर आने का वक़्त आ गया है।

‘मोशा’-युगल के सुख भरे दिन तो 4 जून के बाद वैसे भी स्थाई अलविदाई ले चुके हैं, मगर हरियाणा और महाराष्ट्र में इस जुगल-जोड़ी का नग्न मतहर्ता-नृत्य देखने के बाद जिन का छिछोरा पुंसत्व फिर उछालें खाने लगा है, वे यह बात गांठ बांध लें कि उन के दिन अंतिम तौर पर लदने के दौर का औपचारिक आरंभ इस बृहस्पतिवार को हो गया है।

पिछले दस साल से सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने जिस तरह पूरे संघ-खानदान को ताताथैया करा रखा है, राहुल-प्रियंका के संहारक-संयोजन से अगले साल-दो-साल में यह पदताल चकरघिन्नी बन जाएगी।(Priyanka Gandhi)

भाजपा चौथी बार सत्तासीन

साढ़े चार साल बाद होने वाले अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा चौथी बार सत्तासीन होने की उधेड़बुन कर रही होगी, मगर उस के पहले उसे ज़्यादा नहीं तो 18 प्रदेशों में विधानसभा चुनावों की वैतरिणी पार करनी होगी।

5 राज्य ऐसे हैं, जिन की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा चुनाव की तारीख़ों के आसपास ही समाप्त होगा। इसलिए उन के चुनावों का सामना भी भाजपा को तब करना होगा।

2 प्रदेशों के विधानसभा चुनाव 2029 के आख़ीर में कराए जा सकते हैं। मगर ‘एक देश-एक चुनाव’ के राग का आलाप अमल में आ गया तो भाजपा की हांडी को लोकसभा के मैदान में जाते-जाते 25 प्रदेशों में अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा।

अगर किसी को लगता है कि तेज़ी से बदल रहा सियासी आसमान भाजपा को ये सभी सूबे हरियाणा-महाराष्ट्र की तरह गप्प कर लेने की इजाज़त दे देगा तो यह ख़ामख़्याली जितनी जल्दी दूर हो जाए, बेहतर है।

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सवा 47 करोड़ महिलाएं मतदाताएं

भले ही उत्तर प्रदेश में लड़की के न लड़ पाने की तोहमत हम प्रियंका पर मढ़ दें, मगर अपनी नई भूमिका में उन की संप्रेशण दक्षता देश भर की महिला मतदाताओं का मानस तेज़ी से बदलेगी।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पंजीकृत तक़रीबन 97 करोड़ मतदाताओं में सवा 47 करोड़ महिलाएं थीं। पांच साल में पंजीकृत मतदाताओं की तादाद औसतन 7-8 करोड़ बढ़ जाती है।

इस हिसाब से 2029 में देश में एक अरब चार करोड़ से कम मतदाता नहीं होंगे। इन में 50 करोड़ महिला मतदाता होंगी। महिलाओं द्वारा मतदान का प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है।

इस लिहाज़ से सोच कर देखिए कि आबादी के तक़रीबन आधे हिस्से को प्रभावित कर सकने की क्षमता रखने वाली प्रियंका की उपस्थिति कांग्रेस और विपक्ष के लिए कितनी बड़ी संपत्ति साबित हो सकती है?

इसे इस नज़रिए से भी देखिए कि भाजपा सहित किसी भी राजनीतिक दल में प्रियंका सरीखी प्रभावोत्पदक नेत्री अभी तो दूर-दूर तक दिखाई दे नहीं रही है। वे ज़हीन हैं।

शपथ के वक़्त राहु की महादशा

उन में आम लोगों से जुड़ने की अद्भुत क़ाबलियत है। वे गांव-देहात के लोक मंचों से ले कर राष्ट्रीय और वैष्विक स्तर के राजनयिक और बौद्धिक मचों तक पर संवाद स्थापित कर सकने की अच्छी क्षमता रखती हैं।

वे संसदीय विमर्ष में भी प्रभावी भूमिका निभा सकती हैं और पार्टी-संगठन के भीतर भी। इसलिए अगर प्रियंका अपने को आसपास की अलाय-बलायों से बचाए रख पाईं तो कांग्रेस उन के सहारे बहुत लंबा रास्ता तय करेगी।

चलते-चलते एक बात और। प्रियंका के शपथ लेते वक़्त नक्षत्र विज्ञान भी उन पर मेहरबान था। उन्होंने मकर लग्न और तुला राषि में लोकसभा सदस्यता की शपथ ली है।

उस समय कुंभ का शनि दूसरे भाव में, वृष का गुरु पांचवे भाव में, कर्क का मंगल सातवें भाव में, तुला का चंद्रमा दसवें भाव में, वृश्चिक के सूर्य और बुध ग्यारहवें भाव में, मीन का राहु तीसरे भाव में और कन्या का केतु नवें भाव में था।

शपथ के वक़्त राहु की महादशा थी, जो अभी अगले 16 बरस तक रहेगी। सो, 2040 तक प्रियंका की राजनीति पर गहरी निग़ाह रखिए।

By पंकज शर्मा

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स में संवाददाता, विशेष संवाददाता का सन् 1980 से 2006 का लंबा अनुभव। पांच वर्ष सीबीएफसी-सदस्य। प्रिंट और ब्रॉडकास्ट में विविध अनुभव और फिलहाल संपादक, न्यूज व्यूज इंडिया और स्वतंत्र पत्रकारिता। नया इंडिया के नियमित लेखक।

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