सिनेमेटोग्राफ एक्ट 1952 संशोधन विधेयक राज्यसभा से पास हो चुका है जिसमें फ़िल्म पायरेसी पर तीन साल तक की कैद और फिल्म की लागत के पांच फ़ीसदी के बराबर जुर्माने का प्रावधान है। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना था कि पायरेसी से सिनेमा उद्योग को लगभग बीस हजार करोड़ रुपए सालाना का नुकसान हो रहा है। इस नुक्सान के पीड़ितों में अब ओटीटी प्लेटफॉर्म भी जुड़ गए हैं। कई बार तो फ़िल्म रिलीज़ होने से पहले ही उसकी चोरी की प्रतियां इंटरनेट पर आ जाती हैं और जब तक पुलिस कुछ करे तब तक तो लाखों लोग फ़िल्म देख भी चुकते हैं। हालत यह है कि कुछ लोग सिनेमाघरों में चलती फ़िल्म को ही रिकॉर्ड कर लेते हैं और उसी को सर्कुलेट कर देते हैं। उनमें दर्शकों के हंसने और तालियां या सीटियां बजाने की आवाजें भी आती रहती हैं। शायद अपने दोस्तों और करीबियों को दिखाने के लिए रिकॉर्ड की गई फिल्म की ये निहायत घटिया प्रतियां लोग यूट्यूब पर भी डाल देते हैं।
वैसे इस कानूनी संशोधन में जुर्माने का पहलू दिलचस्प है। पकड़े जाने पर तीन साल की कैद के साथ फ़िल्म की लागत के पांच प्रतिशत के बराबर जुर्माना देना होगा। यानी अगर निर्माता कंपनी यह साबित कर दे कि फिल्म बनाने में चार सौ करोड़ रुपए लगे हैं, तो उसकी पायरेसी के दोषी पर बीस करोड़ का जुर्माना लगेगा। निश्चित ही जुर्माने की रकम या उसका एक हिस्सा निर्माता को मिलेगा, इसलिए वह लागत बढ़-चढ़ा कर साबित करना चाहेगा। पता नहीं, इससे पायरेसी का संगठित गोरखधंधा कितना रुक पाएगा। लेकिन निजी स्तर पर अपनी मस्ती या दोस्तों को दिखाने के लिए जो लोग ऐसा करते हैं, उन्हें तत्काल सावधान हो जाना चाहिए।