राहुल के लद्दाख दौरे पर बेवजह की टिप्पणियां की जा रही हैं। जिस पेंगाग लेक से उन्होंने दौरा शुरू किया वहां हम बहुत गए हैं। राहुल के वहां जाते ही हमने ट्वीट किया था कि यह सीधे सीधे चीन को चुनौती है। दुनिया की सबसे बड़ी खूबसुरत कुदरती झील पैंगाग के अधिकांश हिस्सों पर चीन अपना अधिकार जताता है। वहां उसके किनारे राजीव गांधी का बड़ा सा चित्र लगाकर उनका बर्थ डे मनाते हुए राहुल ने चीन को सीधे चैलेंज किया। उसके बाद ही लेह के बाजारों में पूर्व सैनिक अधिकारियों ने भारत मां की जय के साथ राहुल का स्वागत किया।
मंगलवार को लद्दाख में हजारों लोगों की भीड़ राहुल के स्वागत में जुटे। इनमें बौद्ध और मुसलमान दोनों थे। इसकी चर्चा क्यों कर रहा हूं? हिसाब से इसमें कोई आश्चर्य! नहीं बिल्कुल नहीं। यह भारत की मिलजुली संस्कृति के अनुरूप है। विविधता में एकता भारत की सबसे बड़ी ताकत। और इसलिए केवल चीन ही नहीं पाकिस्तान भी यहां हमेशा मात खाता है। और अमेरिका एवं नाटो भी। वे यहां अपना सैनिक बेस कैम्प बनाना चाहते हैं। हमेशा से। ताकि चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत पर भी निगाह (मतलब नियंत्रण) रख सकें।
लेकिन हमेशा से ऐसे ही लद्दाख को मणिपुर बनाने की भी कोशिश हुई थी। नफरती ताकतों ने यहां बौद्धों और मुसलमानों के बीच करीब-करीब ऐसा ही विभाजन पैदा कर दिया था। मगर कांग्रेस की केन्द्र सरकार और राज्य में उस समय के राज्यपालों गैरी सक्सैना और जनरल केवी कृष्णाराव ने तनाव को हिंसा में बदलने से रोका और मेल मिलाप की कोशिशों से वापस दोनों समुदायों को भाईचारे की डोर में बांधा। आज जब लद्दाख में राहुल के स्वागत में बाजारों में भारत मां की जय के नारे लग रहे हैं तो याद आ रहा है कि 1990 की शुरूआत में जब केन्द्र और उसी के द्वारा राज्यपाल शासन के तहत चलाई जा रही राज्य सरकार कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवाद से लड़ रही थी तो उस वक्त सरकार का सुरक्षा बलों का साथ देने के बदले नफरत से प्यार करने वाले कुछ लोग लद्दाख में बौद्ध और मुस्लिम करने में लग गए थे।
वहां सदियों से साथ रह रहे बौद्धों और मुसलमानों में इतना विभाजन कर दिया कि वहां सारे राजनीतिक और सामाजिक संगठन फेल हो गए और एलबीए ( लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन) एवं एलएमए ( लद्दाख मुस्लिम एसोसिशन) सबसे चर्चित और प्रभावी संगठन बन गए। जिन बौद्धों और मुसलमानों का खानपान एक था। आपस में लड़के लड़की शादी ब्याह तक कर लेते थे। वे एक दूसरे से अलग हो गए। सामाजिक बहिष्कार किया जाने लगा।
लद्दाख एक संभाग क्षेत्र का नाम है। अब तो उसे विभाजित करके नया प्रदेश ही बना दिया है। जो विभाजन की प्रवृति को और हवा देगा। लेकिन उस समय जम्मू कश्मीर का एक संभाग था। और उसमें दो जिले थे। लेह और करगिल। वह पत्रकारिता के लिहाज से कुछ ठीक दिन थे तो हमने करगिल युद्ध कवर करते हुए एक अलग पीस भेज दिया कि यह कारगिल नहीं, करगिल है। क पर ज्यादा वज़न देने की जरूरत नहीं। तो पेज वन पर बाक्स छप गया। और वहां तो बोला भी जाता था। यहां भी काफी लोग करगिल बोलने और लिखने लगे। शब्दों और अक्षरों के साथ होता यह है कि उनका गाढ़ापन हमें ज्यादा अच्छा लगता है। तो वैसे ही नए शब्दों में खुद से वज़न देने लगते हैं।
खैर वह अलग मुद्दा था। मगर साथ में आ जाता है तो लिख दिया जाता है। बहुत से लोगों के खासतौर स्टूडेंट के काम में भी आ जाता है। तो लेह बौद्ध बहुल जिला है और करगिल मुस्लिम बहुल। पूरे लद्दाख में दोनों की आबादी करीब करीब बराबर है। तो अगर सरकार हवा दे देती या चुप ही रहती तो मणिपुर का हालत की देखकर सोचिए वहां क्या होता!
सरकार का काम है विवादों को खत्म करना। तनाव बढ़ने से रोकना। और चलिए यह सब छोडिए। क्योंकि इस पर कह सकते हैं कि नहीं है। मणिपुर में कह ही रहे हैं कि सेना को हटाओ। और यह तो उपद्रवियों का एक गुट कह रहा है असम के भाजपा के मुख्यमंत्री तो यह कह रहे हैं कि सेना कुछ नहीं कर सकती।
लेकिन यह तो कह सकते हैं कि सरकार का काम है देश को मजबूत करना। और देश में गृह युद्ध करवाकर देश कैसे मजबूत होगा यह अभी तो बोलने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही मगर कुछ समय बाद बोला जा सकता है कि अमेरिका चाहे हस्तक्षेप की बात करे यूरोपियन यूनियन मणिपुर की हिंसा के खिलाफ प्रस्ताव पास करे मगर हम यह हिंसा और गृह युद्ध जारी रखेंगे। इससे ही हम विश्व गुरु बनेंगे। पूरी दुनिया में भय का संचार होगा कि यह अपने ही लोगों को हिंसा की आग में धकेल सकते हैं तो हमने अगर इन्हें गुरु स्वीकार नहीं किया तो हमें भी अपने देश की तरह बरबाद कर देंगे। विश्व गुरु की जय ऐसे ही होगी।
जम्मू कश्मीर में सब जिसमें उस समय लद्दाख भी शामिल था भारत के विचार को ले कर लड़ रहे थे। लड़ाई पाकिस्तान और उसके द्वारा भेजे गए आतंकवादियों से थी। मगर कुछ ताकतें इसमें भी धर्म क्षेत्रियता के सवाल उठाकर भारत की ताकत को कमजोर कर रहे थे। जो कश्मीर के मामले को हिन्दू मुसलमान समझते हैं उन्हें बता दें कि कश्मीरी पंडित जब जम्मू आए तो जम्मू के डोगरों ने उनका विरोध किया था। कश्मीरी पंडितों ( हिन्दुओं) के खिलाफ जम्मू के डोगरों ( हिन्दूओं) ने बहिष्कार का नारा दिया था। नफरत और विभाजन की राजनीति चीज ही ऐसी है कि वह सिर्फ और सिर्फ छोटापन लाती है। लघुता। बड़प्पन प्रेम उदारता समावेशी संस्कृति से ही आता है।
आज गुलाम नबी आजाद जिन लोगों के साथ हैं उनके खिलाफ ही उनके गृह जिले डोडा के लोगों ने आवाज उठाई थी। जैसे लद्दाख में लोगों को बांटा वैसे ही डोडा में भी कोशिश की थी। डोडा जम्मू और कश्मीर के बीच में स्थित घने जंगलों से घिरा जिला है। चिनाब अपनी सबसे तेज गति से यहीं से बहती है। यहां भी लद्दाख की तरह दो समुदाय करीब करीब बराबर की संख्या में हैं। हिन्दू और मुसलमान यहां हमेशा पहले मेल मिलाप के साथ रहते थे। मगर पाकिस्तान ने कश्मीर के साथ यहां भी आतंकवादी गतिविधियां फैलाने की कोशिश
की। पाकिस्तान का तो काम ही यही है। मगर हमारे लोगों ने यहां हिन्दू-मुसलमान करके उसके काम को और आसान बनाया। भाजपा ने सीधा डोडा बचाओ आंदोलन चला दिया। वाजपेयी, आडवानी सब बड़े नेताओं को बुला लिया। अब आजाद उसे याद करना नहीं चाहेंगे। मगर तब वे केन्द्र में मंत्री थे और उन्होंने इस आंदोलन को भाजपा की धर्म के आधार पर बांटने वाली राजनीति बताया था।
लद्दाख और डोडा सब की लेख में चर्चा का उद्देश्य यह है कि पहलो भी एक इलाके के लोगों को बांटने की कोशिशें हुईं। मगर केन्द्र सरकार ने उन्हें बढ़ने नहीं दिया। रोका। मीडिया ने भी काफी जिम्मेदारी से काम किया। जैसा की ऊपर लिखा भारत के विचार को आगे बढ़ाया। आज मीडिया भाजपा के विचार को आगे बढ़ा रहा है।
मणिपुर से भी ज्यादा खतरनाक स्थितयां कश्मीर, पंजाब, असम में बनी थी । मगर उस समय की केन्द्र सरकारों ने इसे भारत के विचार के साथ निपटा। विभाजनकारी प्रवृतियों को रोका। उन्हें चुप रहकर या किसी एक का समर्थन करके हवा नहीं दी।
राहुल के लद्दाख दौरे पर बेवजह की टिप्पणियां की जा रही हैं। जिस पेंगाग लेक से उन्होंने दौरा शुरू किया वहां हम बहुत गए हैं। राहुल के वहां जाते ही हमने ट्वीट किया था कि यह सीधे सीधे चीन को चुनौती है। दुनिया की सबसे बड़ी खूबसुरत कुदरती झील पैंगाग के अधिकांश हिस्सों पर चीन अपना अधिकार जताता है। वहां उसके किनारे राजीव गांधी का बड़ा सा चित्र लगाकर उनका बर्थ डे मनाते हुए राहुल ने चीन को सीधे चैलेंज किया। उसके बाद ही लेह के बाजारों में पूर्व सैनिक अधिकारियों ने भारत मां की जय के साथ राहुल का स्वागत किया।