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व्यापार और लाभ का लक्ष्य रखे तब गणतंत्र का सर्वनाश

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republic:  मानवजाति के इतिहास में सत्ता के तंत्र को राज्य के दैवी सिद्धांत से लेकर वर्तमान गणतांत्रिक व्यवस्था की हजारों साल की यात्रा का उद्देश्य आम नागरिक को सर्वाधिक सुविधा सुलभ कराना ही सत्ता का लक्ष्य होता हैं।

परंतु जैसा कि राजनीति में होता आया है सत्ता या शासक अपने और अपने ही वर्ग को लाभ पहुंचाने की चोरी छुपे या खुली कोशिश करता रहता हैं।

हिन्दी में आचार्य चतुरसेन शास्त्री का उपन्यास है वैशाली की नगर वधू। वैशाली मौर्यकालीन समय में अनेक गणराज्यों में से एक इकाई था।

वर्तमान बिहार में इसी नाम से आज भी उस क्षेत्र को जाना जाता हैं। वैशाली गणराज्य का अंत उसके चुनाव एवं उसके फलस्वरूप बनी सत्ता व्यवस्था के उद्देश्य में है।

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व्यापारी का लाभ ही शासन का परम उद्देश्य

कथानक के अनुसार वैशाली गणतंत्र के चुनवो में वणिक (व्यापारी) बहुमत पा गए थे। उन्होंने अपने वेतनभोगी कर्मियों को भी चुनावों में अपने साथ लालच देकर कर लिया था।

फिर जो होना था -हुआ बहुमत की सत्ता अर्थात सत्ता का उद्देश्य लोकहित ना रहकर, व्यापारिक लाभ हो गया। फलस्वरूप व्यापारी का लाभ ही शासन का परम उद्देश्य बन गया।

फलस्वरूप आंतरिक सुरक्षा और वाह्य सुरक्षा पर होने वाले खर्च को गैर जरूरी बता दिया गया। शिक्षा – स्वास्थ्य आदि जैसी सुविधाये गैर जरूरी हो गई।

केवल नगर में आने वाले व्यापारिक वस्तुओ पर कर अधिक और जाने वाली वस्तुओ पर राज्य कर न्यूनतम कर दिया गया। जिससे व्यापारिक गनों को तात्कालिक लाभ तो हुआ परंतु इस व्ययस्थ ने शासन के संतुलन समीकरण को बिगाड़ दिया।

कुछ व्यापारी जनों को लाभ तो हुआ परंतु वैशाली की शासन व्यवस्था को छिन्न -भिन्न कर दिया। परिणाम स्वरूप मौर्य सम्राट अजातशत्रु ने वैशाली गणराज्य को युद्ध में परास्त कर हजारों साल से नागरिक और गणराज्य की न्यायिक व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया।

तीन सौ शब्दों में गणराज्य और चुनाव तथा उससे उपजे सत्ता के तंत्र का मूल उद्देश्य और परिणाम बताने का एक ही उद्देश्य है की देश -दुनिया में आज सत्ता और सरकार उन लोगों द्वारा चलाई जा रही है जिनका उद्देश्य मात्र व्यापारिक लाभ कमाना है। फिर इसमे सत्ता की सहायता नागरिकों के अधिकारों को छिन्नति है।

अमेरिका और भारत का गणतंत्र !

आज विश्व के पटल पर देखे तो पाएंगे की अरब के शेख -सुल्तान हो या अमेरिका और भारत का गणतंत्र ! पेट्रोलियम उत्पादक शेख -सुल्तान की ये व्यापार ही है, जो उनके कुनबे की सल्तनत की रईसी और तड़क -भड़क का आधार हैं।

पर उनकी सत्ता प्रजा को शिक्षा -स्वास्थ्य -रोजगार -खेतीबाड़ी -पशुपालन सुलभ करने से ज्यादा, गगनचुंबी इमारतों की होड़, नखलिस्तान बनाना है। शाही कुनबे में हवाई जहाज – और मंहगी मंहगी कारे घड़ियां खरीदने की होड़ है।

पर ये सब राजतन्त्र है, गणतंत्र नहीं। यंहा नागरिक तो उदेश्य ही नहीं है। वह तो प्रजा है। अब विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत की बात करे।

अमेरिका में नव निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प -खुले आम एक व्यापारी है। उनके पूर्व हुए राष्ट्रपतियों में कोई भी खुले आम व्यापारिक समूह का संचालन नहीं करता था।

परंतु ट्रम्प लाभ को परम उद्देश्य मानते है। इसीलिए दुनिया के सबसे अमीर व्यापारी इयान मसक उनके न केवल सहयोगी है वरन उनकी सरकार के महत्वपूर्ण अंग है।

अब मशक का मुख्य उद्योग या व्यापार टेसला कार है, जिसको ड्राइवर विहीन बनाने की उनकी कोशिशें नाकाम हुई है। फिर उनका पुराना शगल है मंगल ग्रह हमारा है।

अंतरिक्ष में उनकी गतिविधियां अमरीकी सरकार के नासा संगठन की प्रतिस्पर्धी है। मश्क के खिलाफ लगभग बीस से अधिक मामले जांच और अदालतों में लंबित है।

राष्ट्रपति ट्रम्प भी आरोपी

खुद राष्ट्रपति ट्रम्प भी अनेक आपराधिक मुकदमें में आरोपी है। वैसे ही उनके मुख्य सलाहकार और अजीज की भूमिका में इयान मस्क है, जिनके खिलाफ उनकी कार कंपनी द्वारा प्रदूषण – तथा कर्मचारियों संबंधी श्रम कानूनों तथा नासा प्रबंधन के साथ अनेकों मामले विवादित हैं।

ट्रम्प ने अपने संमधी, जो की कर अपवंचना के अपराधी है, उन्हे पहली फुरसत में फ्रांस का राजदूत नामित किया हैं। अपने रिश्तेदारों पर ट्रम्प की कृपा इसलिए है क्यूंकी वे पूर्णतया स्वामिभक्त हैं।

रिपब्लिकन पार्टी का नेत्रत्व ट्रम्प की भावी नियुक्तियों में खुद के प्रति वफादारी को एकमात्र मुद्दा बनाए जाने से बहुत चिंतित है। क्यूंकी राष्ट्र और संघ की व्ययस्था चलाने के लिए योग्यता और अनुभव की अनदेखी आगामी चुनावों में भारी पड़ सकती है।

क्यूंकी संयुक्त राज्य अमेरिका एक गणतंत्र है कोई खाड़ी का तेल उत्पादक रियासत नहीं, जहां जनहित कभी भी प्रथम प्राथमिकता नहीं रही।

फिर अमेरिका का एक संविधान है जिसमे नागरिकों को अपनी रक्षा के लिए विशेष प्रविधान किया गया हैं। अब यह तो वक्त की नजाकत है की अमेरिकी मतदाताओं ने मजबूत नेता की चाह में एक व्यापारी को राष्ट्र की कमान दे दी है। जिसके लिए लाभ और वफादारी ही सर्वोपरि है। अब ऐसे में भगवान ही भला करे अमेरिकियों का।

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