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विदेश में फाँसी पर चढ़े क्रान्तिकारी मदनलान धींगरा

उन दिनों वीर सावरकर क्रांतिकारी साहित्य का लेखन करते थे तथा लंदन में तलवार नामक समाचार पत्र निकालते थे। वीर सावरकर ने लंदन में भी अभिनव भारत संघ नाम की क्रांतिकारी संस्था की शाखा का संचालन किया। मदन लाल धींगरा भी वीर सावरकर के सम्पर्क में आये। सावरकर आदि भी धींगरा की प्रचण्ड देशभक्ति से पूर्ण विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए। सावरकर ने मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया। और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया।

17 अगस्त -मदनलान धींगरा बलिदान दिवस

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चिनगारी को धधकती ज्वाला में बदलने वाले महान बलिदानी मदन लाल धींगरा (ढींगरा) का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब प्रान्त के अमृतसर में एक सम्पन्न हिन्दू खत्री परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल (गीतामल) धींगरा व भाई दोनों ही प्रसिद्ध  सिविल सर्जन थे और दोनों पूर्णतः अंग्रेजियत रंग में रंगे हुए थे। अंग्रेज़ों की विशिष्ट सेवा के लिए दितामल को राय साहब की उपाधि भी प्रदान की गई थी। किन्तु मदनलाल की माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। दितामल के परिवार में कुल सात बच्चे थे, जिसमें से मदन लाल छठे थे। इनकी एक बहन भी थी।उनके पिता दित्तामल धींगरा को अंग्रेजों से मिली उपाधि से स्पष्ट है कि मदन लाल ढींगरा के परिवार में राष्ट्रभक्ति की कोई परंपरा नहीं थी। लेकिन वे स्वयं ही देश भक्ति के रंग में रंगे गए थे।

सन 1900 में माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मदनलाल ने आगे की पढ़ाई करने के लिए लाहौर सरकारी विश्वद्यालय में नामांकन ले लिया। सन 1904 में उन्होंने इंग्लैंड से आयातित कपड़े के क़ॉलेज का कोट बनवाने के प्रिंसिपल के फ़ैसले का विरोध किया। उनके पिता ने इस कार्य के लिए उनसे माफ़ी मांगने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। जिसके कारण एक ओर उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया, तो दूसरी ओर उनके पिता ने भी उनसे नाता तोड़ लिया। और उन्हें मानसिक रुप से असंतुलित घोषित कर दिया था। ऐसी परिस्थिति में मदनलाल 1906 में कालका में क्लर्क की नौकरी करने लगे। बाद में वह शिमला चले गए, जहाँ वह रिक्शा चलाकर आजीविका चलाने लगे। इसके बाद वह एक कारख़ानें में मज़दूरी करने लगे, लेकिन वहाँ से भी यूनियन बनाने के आरोप में उन्हें निकाल दिया गया। इसके बाद वह बम्बई जाकर बंदरगाह पर काम करने लगे। लेकिन यह काम उन्हें रास नहीं आई, और वह माफ़ी मांगकर घर लौट आए।

मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके इंग्लैंड से पंजाब वापस आए उनके भाई बिहारी लाल ने उन्हें इंग्लैंड में पढ़ाई करने की सलाह दी। दितामल के अन्य बच्चे मोहन लाल, चमन लाल और चुन्नी लाल भी इंग्लैंड में पढ़ाई कर चुके थे, और उनका छोटा बेटा भजन लाल अभी भी वहीं पढ़ रहा था। दितामल को लगा कि यह मदन लाल को सुधारने का अच्छा अवसर है। इसलिए वे उन्हें इंग्लैंड भेजने के लिए तैयार हो गए। इस तरह वे 1906 के जुलाई में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये। इंग्लैंड में उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी संकाय में नामांकन कराया।

मदनलाल पढ़ाई के बाद खाली समय में लंदन की सड़कों पर घूमा करते थे। उन दिनों लंदन में श्यामजी कृष्ण वर्मा, मैडम भीखाजी कामा, लाला हरदयाल, विनायक दामोदर सावरकर, भाई परमानन्द, बी. बी. एस. अय्यर, रविशंकर शुक्ल आदि कई प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए सक्रिय थे। एक दिन लंदन की सड़कों पर घूमते हुए मदन लाल इंडिया हाउस पहुंचे। उस समय वहाँ पर वीर सावरकर का भाषण चल रहा था, जिसे सुनकर वे अत्यंत प्रभावित हुए। सावरकर के भाषण को सुनने के बाद उनके मन में भी देशभक्ति की प्रबल भावना हिलोरे मारने लगीं। उनके मन में देश के लिए स्वयं मर मिटने और इसके लिए देश वासियों को प्रेरित करने की इच्छा जागृत हो गई। उन्होंने सोचा कि देशवासियों को मरना सीखना और उसके सीखलाने का एकमात्र ढंग स्वयं मारना ही है, अन्य कोई उपाय नहीं। उन्होंने इसके लिए कुछ कर गुजरने की सोची।

उन दिनों वीर सावरकर क्रांतिकारी साहित्य का लेखन करते थे तथा लंदन में तलवार नामक समाचार पत्र निकालते थे। वीर सावरकर ने लंदन में भी अभिनव भारत संघ नाम की क्रांतिकारी संस्था की शाखा का संचालन किया। मदन लाल धींगरा भी वीर सावरकर के सम्पर्क में आये। सावरकर आदि भी धींगरा की प्रचण्ड देशभक्ति से पूर्ण विचारों से अत्यंत प्रभावित हुए। सावरकर ने मदनलाल को अभिनव भारत नामक क्रान्तिकारी संस्था का सदस्य बनाया। और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। उन दिनों लंदन में इंडिया हाउस भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र हुआ करता था। मदनलाल धींगरा भी उसी इण्डिया हाउस में रहने लगे। इंडिया हाउस में रहने वाले ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से बहुत क्रोधित थे।

इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों के द्वारा फाँसी दिए जाने की घटनाओं से वे तिलमिला उठे और उन्होंने इसका बदला लेने की ठानी। उस समय ब्रिटेन में भारत सचिव का सहायक कर्जन वायली था। वाइली भारत के लिए नीति निर्धारण करने वाले ब्रिटिश सरकार के इण्डिया ऑफिस का सर्वेसर्वा था। भारत में हो रही हत्याओं व अत्याचारों के लिए वह ही जिम्मेदार था। क्रांतिकारियों के कट्टर शत्रु कर्जन वाइली ने 20 वर्षों तक भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ों को पक्का करने का प्रयत्न किया था। वह विदेशों में चल रही भारतीय स्वतंत्रता की गतिविधियों को कुचलने में स्वयं को गौरवान्वित समझता था। कर्जन वायली प्रवासी भारतीय छात्रों की जासूसी करने के कारण काफी कुख्यात हो चुका था। भारतीय छात्रों को उससे इतनी घृणा हो गई थी, कि वे उसे अवसर मिलते ही समाप्त कर देना चाहते थे।

मदनलाल यह कार्य अपने हाथों से सम्पन्न करना चाहते थे। उन्होंने यह बात सावरकर आदि अपने साथियों को बतलाई, तो सावरकर ने कुछ कठिन परीक्षा लेने के बाद उन्हें वायली को मारने का यह अवसर प्रदान कर दिया। तब मदल लाल ने कर्जन वाइली को समाप्त कर देशवासियों के क्रूर दमन का बदला लेने का प्रण लिया। सावरकर ने इसके लिए योजना बनाई। सावरकर की योजना थी कि लंदन में गुप्त रूप से शस्त्र संग्रह कर उसे भारत भेजी जाए। योजनानुसार मदनलाल इण्डिया हाउस छोड़कर एक अंग्रेज परिवार में रहने लगे। उन्होनें अंग्रेजो से मित्रता बढ़ाई और गुप्त रूप से शस्त्र संग्रह कर शस्त्रों को भारत भेजने के कार्य में सावरकर के साथ देने लगे। सावरकर की योजनानुसार मदनलाल ने एक रिवाल्वर और पिस्तौल खरीद ली। और अंग्रेज समर्थन संस्था इण्डियन नेशनल एसोसिएशन का सदस्य भी बन गए।

पहली जुलाई 1909 की शाम को इण्डियन नेशनल ऐसोसिएशन के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिए भारी संख्या में भारतीय और अंग्रेज इकठे हुए। इस संस्था के वार्षिकोत्सव में कर्जन वायली मुख्य अतिथि था। धींगरा भी इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से सूट और टाई पहनकर गए। उनके साथ उनके दो मित्र ज्ञान चन्द वर्मा व कोर गावरकर भी सभा स्थल पर पहुँचे थे। मंच के सामने वाली कुर्सी पर मदनलाल बैठ गये। उनकी जेब में पिस्तौल रिवाल्वर व दो चाकू थे। कार्यक्रम के दौरान मौका हाथ लगते ही मदनलाल ने मंच के पास जाकर कर्जन वायली के सीने और चेहरे पर पाँच गोलियाँ दाग दीं, जिसमें से चार गोलियाँ सही निशाने पर लगीं। वायली कटे वृक्ष की भांति नीचे गिर गया। कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी मदनलाल  की गोलियों से मारा गया। सभा में भगदड़ मच गई। उसके बाद मदनलाल ने अपने पिस्तौल से स्वयं को भी गोली मारने की कोशिश की, किन्तु इसमें वे सफल नहीं हुए और पिस्तौल की सभी गोलियाँ समाप्त हो जाने पर मदनलाल ने आत्मसमर्पण कर दिया। मदनलाल को गिरफ्तारी का किंचित भी दुःख न था वरन पूर्ण सन्तुष्टि और गहन शांति का भाव उनके चेहरे व आँखों में तैर रहा था।

5 जुलाई को इस हत्या की निंदा के लिए एक सभा हुई। पर सावरकर ने वहां निंदा प्रस्ताव पारित नहीं होने दिया। उन्हें देखकर लोग भय से भाग गए। अब मदनलाल पर मुकदमा प्रारम्भ हो गया। मदनलाल ने स्पष्ट कहा कि मैंने जो किया है, वह बिल्कुल ठीक किया है। भगवान से मेरी यही प्रार्थना है कि मेरा जन्म फिर से भारत में ही हो। इसके लिए उन्होंने एक लिखित वक्तव्य भी दिया, परंतु शासन ने उसे वितरित नहीं किया। पर उसकी एक प्रति सावरकर के पास भी थी, जिसे उन्होंने प्रसारित करवा दिया। इससे ब्रिटिश राज्य की पूरी दुनिया में भारी बदनामी हो गई। 23 जुलाई 1909 को धींगड़ा मामले की अंतिम सुनवाई पुराने बेली कोर्ट में हुई, तो मदनलाल ने अदालत में खुले शब्दों में कहा कि मुझे गर्व है कि मैं अपना जीवन समर्पित कर रहा हूं।

अदालत ने उन्हें मृत्युदण्ड का आदेश दिया और 17 अगस्त सन 1909 को लंदन की पेंटविले जेल में फाँसी पर लटका कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी। उस दिन वह बहुत प्रसन्न थे। इस घटना का इंग्लैंड के भारतीयों पर इतना प्रभाव पड़ा कि उस दिन सभी ने उपवास रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी।  यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है। एक दिन पूर्व सावरकर ने जेल जाकर मदनलाल से मुलाकात की। धींगरा ने अन्तिम इच्छा व्यक्त की थी कि मेरे शरीर को कोई अहिन्दू हाथ न लगाये। हिन्दू विधि के अनुसार अन्त्येष्टि की जाये तथा अस्थियाँ भारत ले जाकर पावन गंगा में विसर्जित की जाये। 13 दिसम्बर 1976 को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी मदनलान धींगरा की अस्थियाँ भारत लायी गईं और उन्हें हरिद्वार में गंगा में प्रवाहित किया गया। मदनलाल ढींगरा की स्मृति में भारत सरकार द्वारा 1992 में एक डाक टिकट जारी किया गया।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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