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देश के बनावटी इतिहास लेखन की संघ की कोशिश…

mohan bhagwat RSSImage Source: ANI

mohan bhagwat RSS: व्हाट्सप्प यूनिवर्सिटी में यूं तो विगत दस सालों से देश की आजादी संघर्ष को धूमिल करने की कोशिश होती या रही हैं।

परंतु तब लगता था कि यह कथन कुछ आती उत्साही दिग्भ्रमित और काम पड़े लिखे या यूं कहे कि स्व के विचार से शून्य युवकों और सरकारी नौकरी से पेंशन ले रहे लोगों की भीड़ ही इस काम में लगी हुई हैं।

परंतु जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने दो अवसरों पर अत्यंत आपतिजनक बयान देकर यह सिद्ध कर दिया कि अफवाहों का श्रोत कहां हैं।

उनका यह कथन कि देश को सच्ची आजादी राम मंदिर के उद्घाटन के समय मिली नितांत असत्य है (झूठ लिखना असंसदीय हैं)।

अगर बात करे उनसे पूर्व के संघ प्रमुखों की, तो उन लोगों ने भी कभ आजादी के बारे में ऐसे निंदनीय बयान नहीं दिए।

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बहुत कुछ गुरु गोलवलकर जी की किताब में लिखे हुए से असहमत हुआ जा सकता है परंतु उन्होंने कहीं भी यह नहीं कहा कि 15 अगस्त को ब्रिटिश शासन से मुक्ति आजादी वास्तविक नहीं हैं।

यहां तक कि सावरकर ने भी आजादी की अहिंसात्मक लड़ाई और स्वतंत्रता प्राप्ति को निरर्थक बताया हो, परंतु भागवत जी ने तो उन सभी मनीषियों को पीछे छोड़ते हुए बीजेपी के कतिपय अति उत्साही वीरों के सुर से सुर मिलते हुए।

यह सिद्ध कर दिया की देश में आजादी के बाद का समय जैसे था ही नहीं! देश में जो कुछ भी हुआ वह सब 26 मई 2014 के बाद ही हुआ।(mohan bhagwat RSS)

देश के इतिहास मे ना तो उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों और खास कर कांग्रेस शासनकाल और अन्य सरकारों प्रधानमंत्रियों का कोई योगदान रहा ही नहीं, बल्कि भिलाई जैसे स्टील कारखाने आईआईटी आईआईएम एम्स आदि की स्थापना आकाशी दे हैं।

अब भारत के स्वतंत्रता संग्राम और उसमें महात्मा गांधी के योगदान को मिटाने की यह निंदनीय कोशिश कभी भी सफल नहीं होगी, भागवत जी।

रोजी – रोटी का रास्ता राम मंदिर(mohan bhagwat RSS)

कुछ ऐसे ही वचन संघ के प्रदेश प्रभारी ने ज्ञानोदय विद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि केवल मोदी सरकार ने ही संविधान और बाबा साहब अंबेडकर की सिफारिशों को पूरी तरह से पालन किया।

काँग्रेस और अन्य दलों की सरकारों ने देश के विकास मैं कोई योगदान नहीं था बल्कि वे संविधान विरोधी थे। अब इसको तो सरकार के गज़ट भी नहीं सिद्ध कर सकते।

क्यूंकि देश के सटीक कारखाने भिलाई दुर्गापुर और बोकारो तथा भाखरा नांगल और हीराकुड जैसे बांधों और उनकी सिंचाई व्यवस्था और पनबिजली उत्पादन का काम तो नरेंद्र मोदी के राजनीति में आने से पूर्व हुआ था।

एक और बयान जो कि काफी विवादास्पद है वह मोहन भागवत जी ने इंदौर मे देवी अहिल्या के स्मरण उत्सव मे दिया था।(mohan bhagwat RSS)

उन्होंने कह था कि देश की रोजी – रोटी का रास्ता राम मंदिर होकर जाता हैं। अब या तो उन्हे देश में युवकों में बेकारी की बड़ती संख्या का अनुमान नहीं है अथवा वे जानबूझ कर सत्य को छुपाना चाहते हैं।

आईआईटी संस्थानों का बुरा हाल  

पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा स्थापित किए गए आईआईटी को देश की ही नहीं वर्ण एशिया की बहुत अच्छी शिक्षण संस्थान माना जाता है।

आज से दस वार्स पूर्व इन सस्थानों के छात्रों को कैंपस सेलेक्सन से लाखों तो क्या कुछ एक को करोड़ों रुपये के सालाना के पैकेज की नौकरी मिल जाती थी।

उस समय इन संस्थानों में भर्ती को स्वर्णिम नौकरी का प्रवेश द्वारा मन जाता था। विगत दस वर्षों मे यानि की नरेंद्र मोदी जी की सरकार मे बाम्बे आईआईटी जो की दुनिया के सर्वोत्तम अभियांत्रिकी संस्थानों में एक है वहां के छात्रों को नौकरी मिलना मुश्किल है।

एक सर्वे के अनुसार विगत तीन वर्षों में मात्र 37 प्रतिशत छात्रों का ही चयन कैंपस में हुआ। इसस बुरा हाल अन्य आईआईटी संस्थानों का हैं।

राम – कृष्ण और शिव का स्वर

अब भागवत जी से पूछना होगा कि इन होनहार विद्यार्थियों की यह दशा तो राम मंदिर निर्माण के बाद क्यूं हो रही है। अगर देश रोजी -रोटी का रास्ता राम मंदिर से होकर जाता हैं।

यही हाल देश के आईआईएम संस्थानों का है। वणः से पास आउट होने के बाद महीनों तो क्या साल से भी ज्यादा नौकरी पाने मे लगते हैं।

भारत सरकार की रिपोर्ट भी देखि जा सकती हैं। देवी अहिल्या राष्ट्रीय पुरस्कार के जिस आयोजन मे भागवत जी बोल रहे थे उसमे यह पुरस्कार विश्व हिन्दू परिषद के चंपत रॉय को दिया गए, जो कि राम मंदिर ट्रस्ट के कर्ता-धर्ता हैं !

लगता है चंपत रॉय की हाजिरी ने उन्हें सामाजिक संगठन के मुखिया को कुछ ज्यादा ही धार्मिक बना दिया था। भारत वर्ष को उन्होंने राम – कृष्ण और शिव का स्वर बताया।

हमारी परंपरा में वेद प्रथम

अब भागवत जी से कौन पूछे कि महाराज सनातन धर्म में मुख्य रूप से तीन शाखायें है पहला वैष्णव अर्थात राम और कृष्ण जिसमें इन दोनों के अनेक रूप शामिल है।

दूसरा शैव, जिसमे शिव की अनेक रूपों में उपासना की जाती है और तीसरा है शाक्त, अर्थात इसमें देवी को अनेकों रूपों में पूजा जाता है।

इनके अलावा बौद्ध और जैन धरम मानने वाले हैं। एक बहुत बड़ी आबादी जिसमे हमारे आदिवासी भाई-बहन शामिल है -उनके आराध्य अनेक नामों से जाने जाते हैं।

इसलिए सम्पूर्ण भारत को राम – कृष्ण और शिव में नहीं बांधा जा सकता है। आदि गुरु शंकराचार्य ने बौद्ध धर्म के प्रसार को शास्त्रार्थ द्वारा पराजित किया था किसी बुलडोजर या सरकारी तंत्र के आतंक से नहीं।

भागवत जी के शब्दों में पाँच हजार वर्ष पुरानी हमारी परंपरा में वेद प्रथम है। वे राम और कृष्ण के अवतार से भी पूर्व के हैं।

क्यूंकि चारों वेदों में से किसी में भी राम या कृष्ण का वर्णन नहीं मिलता हैं। ऋग्वेद की प्रथम सात ऋचायंे अग्नि को समर्पित है।

बाकी अन्य भी प्राकृतिक शक्तियों की उपासना और आराधना है। भागवत जी यह देश वेदों के समय से है राम या कृष्ण से नहीं।

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