संसद के शीतकालीन सत्र में कई अहम विधेयक पारित कराने की योजना है लेकिन सत्र का पहला सप्ताह विपक्षी पार्टियों के हंगामे की भेंट चढ़ गया। इस सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक, 2024 पास होना है। इसके जरिए सरकार यह प्रावधान करने जा रही है कि खाताधारक नॉमिनी की संख्या बढ़ा सकते हैं। रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 भी इस सत्र में पास होना है, जिसके जरिए रेलवे की संचालन क्षमता को बेहतर बनाने के लिए रेलवे बोर्ड के अधिकार बढ़ाने का प्रावधान है।
अभी संविधान दिवस बीता है। 26 नवंबर 2024 को संविधान अंगीकार करने के 75 साल पूरे हुए। इस मौके पर संसद में विशेष आयोजन हुआ। दोनों सदनों की साझा बैठक हुई, जिसके महामहिम राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू और उप राष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने संबोधित किया। इस कार्यक्रम के आयोजन में संवैधानिक लोकतंत्र की एक सुंदर तस्वीर देखने को मिली, जब मंच पर राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, स्पीकर और उप सभापति के साथ साथ राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को भी जगह मिली। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद लगातार तीन दिन तक कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही नहीं चलने दी। क्या यही संविधान और संसदीय लोकतंत्र का सम्मान करना है? 28 नवंबर को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने संविधान की प्रति हाथ में लेकर लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ली। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों के सांसद उतनी देर तक चुपचाप बैठे रहे। जैसे ही उनकी शपथ समाप्त हुई वैसे ही हंगामा शुरू हो गया और कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। शीतकालीन सत्र का पहले सप्ताह में विपक्ष का यही आचरण रहा। इससे संविधान के प्रति कांग्रेस के सम्मान और प्रतिबद्धता की पोल खुलती है।
जाहिर है कांग्रेस का संविधान के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना एक दिखावा है। असल में संविधान और संसदीय लोकतंत्र के लिए उसके मन में तनिक भी श्रद्धा या सम्मान नहीं है। उसकी श्रद्धा सिर्फ सत्ता के प्रति है। अगर उसे लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता नहीं मिलती है तो वह एक एक करके सारी संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा और साख पर सवाल उठाएगी। पिछले 10 साल से कांग्रेस यही काम कर रही है। अगर उसके मन में संविधान के प्रति तनिक भी सम्मान होता तो संविधान हाथ में लेकर शपथ लेने के बाद वह संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलने देती ताकि विधायी कामकाज होते और जन कल्याण की नीतियों पर चर्चा होती। ध्यान रहे संसद देश की सबसे बड़ी पंचायत है, जहां गहन विचार विमर्श होना चाहिए और तब देश के 140 करोड़ लोगों के हित में निर्णय होना चाहिए। लेकिन विपक्ष ने विचार विमर्श की सारी संभावना को खत्म कर दिया है। हर सत्र के साथ विपक्ष के उत्तरदायित्व का क्षरण होता दिख रहा है। वह नीतिगत मुद्दों की बजाय निजी व्यक्तियों के मुद्दों पर संसद में चर्चा करना चाहती है। किसी व्यक्ति पर कुछ आरोप लगे हैं तो उस पर मुख्य विपक्षी पार्टी सदन में चर्चा चाहती है। तभी कई मसलों पर उसका साथ देने वाली सहयोगी पार्टियां भी इस मसले पर साथ छोड़ रही हैं। कई विपक्षी पार्टियां भी नीतिगत और विधायी मुद्दों पर चर्चा चाहती हैं लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं होने दे रही है।
संसद के शीतकालीन सत्र में कई अहम विधेयक पारित कराने की योजना है लेकिन सत्र का पहला सप्ताह विपक्षी पार्टियों के हंगामे की भेंट चढ़ गया। इस सत्र में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक, 2024 पास होना है। इसके जरिए सरकार यह प्रावधान करने जा रही है कि खाताधारक नॉमिनी की संख्या बढ़ा सकते हैं। रेलवे संशोधन विधेयक, 2024 भी इस सत्र में पास होना है, जिसके जरिए रेलवे की संचालन क्षमता को बेहतर बनाने के लिए रेलवे बोर्ड के अधिकार बढ़ाने का प्रावधान है। इसके अलावा आपदा प्रबंधन से जुड़ा विधेयक भी इस सत्र में पास होना है तो साथ ही समुद्र के रास्ते माल ढुलाई का बिल भी इस संसद से पारित होना है। ये सारे बिल देश की अर्थव्यवस्था, सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने और आम लोगों की भलाई से जुड़े हैं। लेकिन विपक्ष को इसमें सहयोग नहीं करना है। विपक्ष को किसी तरह से हंगामा जारी रखना है ताकि सरकार के विधायी कामकाज को बाधित किया जा सके। विपक्ष के हंगामे की वजह से संसद के स्थगित होने से हर दिन करोड़ों रुपए का नुकसान अलग हो रहा है।
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां सदन से बाहर भी विधायी कामकाज को बाधित कर रही है। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पर विचार के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी की कार्यवाही में भी विपक्ष ने बाधा डाली। विपक्षी सांसदों ने लगभग हर बैठक का बहिष्कार किया। जमीनी सचाई जानने के लिए जब कमेटी के अध्यक्ष श्री जगदंबिका पाल ने अलग अलग राज्यों की यात्रा की योजना बनाई तो विपक्ष ने उसका भी बहिष्कार कर दिया। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों की तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से जेपीसी में गतिरोध बना। जेपीसी के अध्यक्ष ने अलग अलग राज्यों और समूहों के लोगों को प्रेजेंटेशन के लिए बुलाए। लेकिन जिसके तथ्यों की प्रस्तुति विपक्षी पार्टियों के मन लायक नहीं होती थी उसका विरोध शुरू हो जाता था। वक्फ बोर्ड की बेहिसाब संपत्तियों, अवैध कब्जे और कानूनी अधिकारों को लेकर आंखें खोलने वाली रिपोर्ट जेपीसी में पेश की गई है। परंतु विपक्ष की जिद और दबाव के चलते जेपीसी की कार्यवाही पूरी नहीं हुई। लोकसभा के स्पीकर श्री ओम बिरला ने लोकतंत्र की मर्यादा और अपना संवैधानिक दायित्व निभाते हुए जेपीसी का कार्यकाल अगले साल के बजट सत्र के आखिरी दिन तक बढ़ा दिया। पहले यह आवश्यक विधेयक इस सत्र में पास होना था लेकिन अब इसके लिए इंतजार करना होगा। हालांकि ऐसा नहीं है कि इंतजार के बाद भी विपक्ष इसके महत्व को समझेगा और सरकार का समर्थन करेगा। उसका मकसद इस विधेयक में देरी कराना है ताकि अपने वोट बैंक की तुष्टिकरण का काम पूरा हो सके।
कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों का यह आचरण लोकतंत्र और देश के लिए खतरा पैदा कर रहा है। तभी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा में कहा कि ‘विपक्ष का उद्देश्य झूठ बोल कर, जनता को गुमराह करके सत्ता सुख भोगना है और जब जनता ने उनका झूठ पकड़ लिया तो वे देश के खिलाफ ही साजिश करने लगे’। यह सचमुच चिंता की बात है कि विपक्ष संविधान की झूठी कसमें खाकर और झूठा प्रेम दिखा कर देश और संविधान के खिलाफ ही साजिश कर रहा है। संसद नहीं चलने देना उसी साजिश का एक हिस्सा है। इसके अलावा वह एक एक करके सारी संवैधानिक संस्थाओं की साख खराब करने का प्रयास कर रही है। तमाम प्रयासों के बावजूद जनता की ओर से बार बार ठुकराए जाने से नाराज होकर विपक्ष संवैधानिक संस्थाओं को कठघरे में खड़ा कर रहा है। लेकिन वास्तविकता यह है कि लोग उसके इस खेल को समझने लगे हैं। तभी जनता की अदालत में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां कठघरे में खड़ी हैं।
लोग इस बात को समझने लगे हैं कि कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियां अपने फायदे के लिए संवैधानिक संस्थाओं को इस्तेमाल करना चाहती हैं और नहीं इस्तेमाल होने पर उनकी साख बिगाड़ने का काम कर रही हैं। तभी इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की बजाय बैलेट से चुनाव कराने की एक याचिका खारिज करते हुए माननीय सर्वोच्च अदालत ने साफ साफ कहा कि, ‘जब आप जीतते हैं तो ईवीएम ठीक है और जब आप हार जाते हैं तो ईवीएम खराब है’। ऐसी ही सच्ची टिप्पणियों के कारण देश की न्यायपालिका भी विपक्षी पार्टियों के निशाने पर है। यह विपक्ष की राजनीति का कितना बड़ा विरोधाभास है कि जब सर्वोच्च अदालत का कोई फैसला मन लायक होता है तो अदालत की तारीफ करते हैं और मन लायक फैसला नहीं हो तो अदालत को भी अपमानित करने लगते हैं। यही हाल चुनावों में है। जहां चुनाव जीतते हैं वहां चुनाव आयोग और ईवीएम ठीक होता है लेकिन जहां हार जाते हैं वहां चुनाव आयोग भी खराब हो जाता है और ईवीएम की खराब हो जाती है।
विपक्ष का यह दोहरा चरित्र हर मामले में दिखता है। वह सत्ता गंवाने और लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहने की वजह से बेचैन हो गई है और इस बेचैनी में वह सारी संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं को तहत नहस करने में जुटी है। संसद के दोनों सदनों से लेकर न्यायपालिका, चुनाव आयोग, नियंत्रक व महालेखापरीक्षक, केंद्रीय एजेंसियां आदि सब उसकी नजर में खराब हैं। अच्छे सिर्फ कांग्रेस के नेता हैं! अपने अच्छे और बाकी सबके खराब होने का यह अहंकार तब है, जब कांग्रेस पार्टी लगातार जनता द्वारा ठुकराई जा रही है। उसका हर झूठ उजागर हो रहा है। उसकी तुष्टिकरण की राजनीति की पोल खुल रही है और लोगों का मोहभंग हो रहा है। जैसे जैसे लोगों के सामने उसका असली चरित्र उजागर हो रहा है वैसे वैसे उसकी बेचैनी भी बढ़ रही है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)