कुछ मेडिकल कंडीशन में इन्हें लेने की मनाही है जैसे डॉयबिटीज, वीक आई साइट, वेरीकोज वेन्स, डीवीटी, पलमोनरी एम्बोलिज्म, गॉल स्टोन, लीवर सोराइसिस, किडनी डिजीज और अनएक्सप्लेंड यूट्राइन ब्लीडिंग। अगर ब्रेस्ट फीडिंग का पहला महीना है या डिलीवरी को कुछ सप्ताह ही हुए हैं तो इन्हें न लेना ही अच्छा है विशेष रूप से कॉम्बीनेशन पिल्स को। पिल्स लेने से अगर सिर, पेट या सीने में दर्द उठे, सांस फूलने लगे, नजर धुंधला जाये, पैरों में सूजन के साथ दर्द महसूस हो तो डॉक्टर की सलाह लें।
परिवार नियोजन का सबसे आसान तरीका है कोन्ट्रासेप्टिव यानी गर्भ निरोधक गोलियां। रोज एक गोली खाओ, लाइफ टेंशन फ्री। न प्रेगनेन्सी की चिंता, न अबार्शन की। खुलकर जियो। लेकिन ये इतना आसान नहीं, जितना लगता है। अगर आराम है तो इनके साइड इफेक्ट्स भी हैं।
अगर आपसे पूछा जाये कि 8 अरब लोगों की ये दुनियां कैसे बनी? तो क्या जबाब देगें। जरा सोचकर बताइये। नहीं समझ आ रहा। तो जान लीजिये, ये दुनिया बनी है एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन और टेस्टोस्टेरॉन जैसे हारमोन्स के कारण। प्यूबर्टी, मेन्सुरेशन, ओव्यूलेशन, प्रेगनेन्सी सबके पीछे हैं यही तीनों। एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन बनते हैं ओवरी में, जबकि टेस्टोस्टेरॉन बनता है टेस्टीकल्स में।
अगर इनका बनना डिस्टर्ब हो जाये तो प्रेगनेन्सी नहीं ठहरेगी। महिला शरीर में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरॉन का बैलेंस बिगाड़कर प्रेगनन्सी रोकती हैं गर्भ निरोधक गोलियां। बैलेंस बिगाड़ने के लिये इनमें होते हैं इन्हीं हारमोन्स के सिंथेटिक वर्जन। ये कृत्रिम हारमोन ओवरी में अंडा बनने की प्रक्रिया रोक देते हैं। और जब अंडा नहीं तो प्रेगनेन्सी भी नहीं।
कितनी तरह की गोलियां?
बाजार में दो तरह की पिल्स उपलब्ध हैं कॉम्बीनेशन और मिनी। कॉम्बीनेशन में होता हैं एस्ट्रोजन, प्रोजेन्सटेरॉन हारमोन्स का सिंथेटिक वर्जन जबकि मिनी में केवल प्रोजेन्सटेरॉन का। हालांकि, अक्सर इनकी वजह से मुंहासे, हैवी मेन्सुरेशन, एनीमिया, एंडोमेट्रियोसिस, पीओएस जैसी समस्यायें ठीक हो जाती हैं, पीरियड रेगुलर हो जाते हैं। फिर भी इनसे होने वाला नुकसान, फायदों से कहीं ज्यादा है।
कॉम्बीनेशन पिल्स में एस्ट्रोजन, प्रोजेन्सटेरॉन की अलग-अलग डोज होती है। ये ओवरी में अंडा नहीं बनने देती, स्पर्म को यूट्रेस लाइनिंग से जुड़ने नहीं देती। इससे प्रेगनेन्सी रोकने का पुख्ता इंतजाम हो जाता है। मिनी की तुलना में इनकी विश्वसनीयता ज्यादा है।
शुरूआती साइड इफेक्ट्स
शरीर में नेचुरल प्रोसेस डिस्टर्ब करने का मतलब है नेचर के खिलाफ जाना। अगर नेचर के खिलाफ जायेंगे तो कुछ न कुछ नुकसान तो उठाना पड़ेगा। गर्भ निरोधक गोलियों के शुरूआती साइड इफेक्ट नजर आते हैं स्पॉटिंग, मतली, सिरदर्द, वेट गेन और बाल झड़ने के रूप में। जरूरी नहीं ये सभी लक्षण एक साथ महसूस हों। किसी को सिरदर्द आता है तो किसी को मतली। हां, स्पॉटिंग और बाल झड़ने जैसी प्रॉब्लम्स लगभग सभी को आती हैं।
स्पॉटिंग यानी पीरियड् के बाद ब्लड आना, गर्भ निरोधक गोलियों का कॉमन साइड इफेक्ट है। ये होता है यूट्रेस लाइनिंग के सिंथेटिक हारमोन्स के साथ तालमेल बिठाने के दौरान। आमतौर पर, समायोजन की प्रक्रिया दो-तीन महीने में सेट हो जाती है। अगर न हो को गोली खाने का समय तय करें। यानी अगर सुबह 10 बजे गोली लेती हैं तो रोज सुबह दस बजे के आस-पास ही लें।
पिल्स लेने के बाद मतली फील हो तो इसे भोजन के साथ या सोते समय लें। ब्रेस्ट टेंडरनेस दूर करने के लिये सपोर्टिव ब्रा पहनें। अगर ब्रेस्ट में पेन या गांठ फील हो तो इसे गम्भीरता से लें। ब्रेस्ट में बिना पेन की गॉठ, कैंसर का संकेत हो सकती है। पिल्स में मौजूद हारमोन सिरदर्द और माइग्रेन की फ्रिकवेंसी बढ़ा देते हैं। ऐसी किसी भी स्थिति में डॉक्टर से डोज एडजस्ट करने को कहें।
गर्भनिरोधक गोलियों से वजन बढ़ने की समस्या आम है। इसके पीछे कारण होता हैं गोलियों की वजह से शरीर में पानी रूकना। ऐसे में शरीर से अतिरिक्त पानी निकालने के लिये खाने में नमक कम करके डेली वाटर इनटेक कम से कम तीन लीटर करें। पिल्स लेने से बहुत सी महिलाओं के पीरियड कम या पूरी तरह बंद हो जाते हैं। इसके लिये चिंता करने की जरूरत नहीं।
डेनमार्क में 1 मिलियन महिलाओं हुयी एक रिसर्च में सामने आया कि पिल्स के सिंथेटिक हारमोन मूड स्विंग और डिप्रेशन का रिस्क बढ़ाते हैं। अगर ऐसा कुछ महसूस हो डॉक्टर से गोली बदलने की बात करें। ऐसे केस भी सामने आये जिनमें पिल्स लेने से आंखों का कॉर्निया मोटा हो गया जिससे कॉन्टैक्ट लेंस पहनने में दिक्कत हुयी। इसलिये जो लोग कॉन्टैक्ट लेंस पहनते हैं उन्हें पिल्स शुरू करने से पहले डॉक्टर से बात करनी चाहिये।
कुछ महिलाओं में पिल्स का असर नजर आता है यौनेच्छा में कमी तो कुछ में यौनेच्छा बढ़ने के रूप में। यौनेच्छा बढ़े तो चिंता की जरूरत नहीं। घटे तो गम्भीरता से लें। असल में ये परिणाम है शरीर में हारमोन्स समायोजन के दौरान योनि स्राव घटने-बढ़ने का। स्राव घटने से बढ़ती है ड्राइनेस। जिससे होता है असहनीय दर्द। इससे कामेच्छा घट जाती है। इसके विपरीत बढ़ा योनि स्राव कामेच्छा बढ़ाता है लेकिन उस कंडीशन में जब स्राव में कोई गंध बगैरा न हो। गंध का मतलब है योनि में संक्रमण। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से बात करें।
किनके लिये ज्यादा हानिकारक?
हालांकि, ज्यादातर महिलाओं के लिये ये गोलियां सुरक्षित हैं लेकिन वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात के अच्छे-खासे प्रमाण है कि पिल्स लेने से ब्लड क्लॉटिंग और हाइपरटेंशन का रिस्क बढ़ता है। अगर क्लॉट, फेफड़ों में चला जाये तो मृत्यु हो सकती है। कुछ महिलाओं को हार्ट अटैक या स्ट्रोक भी हुआ लेकिन यह रेयर है। इसलिये ये पिल्स उन महिलाओं को नहीं लेनी चाहिये जिनका बीपी हाई रहता हो। स्मोकिंग करती हों। उम्र 35 से ज्यादा हो और माइग्रेन, हार्ट डिजीज, ब्रेस्ट कैंसर की हिस्ट्री हो।
नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट के अनुसार, गर्भनिरोधक गोलियाँ लेने से ब्रेस्ट और सर्विकल कैंसर का रिस्क बढ़ता है लेकिन लगातार 5 साल पिल्स लेने के बाद। लेकिन ये ओवेरियन, एंडोमेट्रियल और कोलोरेक्टल कैंसर का रिस्क घटाती भी हैं।
अलग-अलग महिलाओं में पिल्स का असर भी अलग-अलग होता है। पिल्स लेने से प्रेगनेन्ट न होने के चांस 9% होते हैं। अगर 100 महिलायें पिल्स ले रही हैं तो कम से कम 9 पर ये काम नहीं करेगी। इसके अलावा इन गोलियों की सबसे बड़ी समस्या है कि ये एड्स और सेक्सुअली ट्रांसमिट डिजीज नहीं रोक सकतीं बल्कि निश्चिंतता होने से इनके चांस ज्यादा हो जाते हैं। यह भी देखा गया कि बहुत सी महिलाओं में पिल्स के कुछ साइड इफेक्ट तीन-चार महीनों में अपने आप ठीक हो गये। लेकिन सबके साथ ऐसा हो जरूरी नहीं।
किन्हें नहीं लेनी चाहिये गर्भ-निरोधक गोलियां?
कुछ मेडिकल कंडीशन में इन्हें लेने की मनाही है जैसे डॉयबिटीज, वीक आई साइट, वेरीकोज वेन्स, डीवीटी, पलमोनरी एम्बोलिज्म, गॉल स्टोन, लीवर सोराइसिस, किडनी डिजीज और अनएक्सप्लेंड यूट्राइन ब्लीडिंग। अगर ब्रेस्ट फीडिंग का पहला महीना है या डिलीवरी को कुछ सप्ताह ही हुए हैं तो इन्हें न लेना ही अच्छा है विशेष रूप से कॉम्बीनेशन पिल्स को। पिल्स लेने से अगर सिर, पेट या सीने में दर्द उठे, सांस फूलने लगे, नजर धुंधला जाये, पैरों में सूजन के साथ दर्द महसूस हो तो डॉक्टर की सलाह लें।