राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

ज़िद जो न कराए: ‘सिकंदर का मुकद्दर’

Sikandar ka MuqaddarImage Source: ANI

Sikandar ka Muqaddar: निर्देशक नीरज पांडे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वे थ्रिलर शैली के मास्टर हैं। ‘सिकंदर का मुकद्दर’ एक ऐसी हाइस्ट ड्रामा फिल्म है, जो रोमांचक और गहराई में जाकर सोचने पर मजबूर करती है।

अविनाश तिवारी, जिम्मी शेरगिल, तमन्ना भाटिया और दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों की दमदार अदाकारी और कहानी की पकड़ दर्शकों को फ़िल्म खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक याद रहेगी।

also read: HMPV: चीन से एक और महामारी की दस्तक, China में फिर लगा आपातकाल

सिने-सोहबत

घर बैठ कर अपनी सुविधा से ओटीटी पर फ़िल्में देखने का ट्रेंड पिछले साल भी अपने परवान पर रहा। फ़िल्मकारों के लिए भी ये ट्रेंड कई मायनों में वरदान साबित हुआ है।

पहले जिस कंटेंट को परदे पर लाने के लिए फ़िल्मकारों को बड़े सितारों का इंतज़ार रहता था, अब उन्हीं कहानियों को बहुत उम्दा कलाकारों की मदद से फ़िल्मों में तब्दील करने की सुविधा बढ़ गई है।

2024 में ओटीटी पर आई ‘सिकंदर का मुकद्दर’ ऐसी ही एक कोशिश है। निर्देशक नीरज पांडे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वे थ्रिलर शैली के मास्टर हैं।

‘सिकंदर का मुकद्दर’ एक ऐसी हाइस्ट ड्रामा फिल्म है, जो रोमांचक और गहराई में जाकर सोचने पर मजबूर करती है।

अविनाश तिवारी, जिम्मी शेरगिल, तमन्ना भाटिया और दिव्या दत्ता जैसे कलाकारों की दमदार अदाकारी और कहानी की पकड़ दर्शकों को फ़िल्म खत्म होने के बाद भी लंबे समय तक याद रहेगी।

जटिल कहानी बुनने की कला का प्रमाण

अपनी सफल फिल्मों जैसे ‘ए वेडनसडे’ और ‘स्पेशल 26’ की राह पर चलते हुए, नीरज पांडे ने एक ऐसी कहानी गढ़ी है, जो इंसानी महत्वाकांक्षा, नैतिकता और शक्ति पाने की कीमत पर गहराई से रोशनी डालती है।

‘सिकंदर का मुकद्दर’ उनकी जटिल कहानी बुनने की कला का प्रमाण है, जिसमें अप्रत्याशित मोड़, भावनात्मक गहराई और लगातार बढ़ता तनाव शामिल है, यही उनके निर्देशन को ख़ास बनाता है।

फ़िल्म की कहानी सिकंदर (अविनाश तिवारी) के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो एक चालाक और रहस्यमयी मास्टरमाइंड है। वह एक साहसिक डकैती की योजना बनाता है, जो उसका भाग्य हमेशा के लिए बदल सकती है।

एक तेज़ी से बदलते और नैतिक दृष्टि से अस्थिर शहरी परिदृश्य में स्थापित यह कहानी धोखा, विश्वासघात और निराशा की परतों के साथ आगे बढ़ती है।

जिम्मी शेरगिल इंस्पेक्टर जसविंदर सिंह की भूमिका निभा रहे हैं, जो एक अनुभवी और ईमानदार पुलिस अधिकारी हैं। न्याय के प्रति उनकी निष्ठा उनकी ताकत और कमजोरी दोनों है।

जसविंदर को सिकंदर को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जिससे एक हाई स्टेक्स चूहे बिल्ली का खेल शुरू होता है।

तमन्ना भाटिया का किरदार कहानी में गहराई लाता है, जो प्यार और वफादारी के बीच संघर्ष करती नजर आती हैं। वहीं दिव्या दत्ता अपने छोटे से ही लेकिन अहम् किरदार में बेहद प्रभावशाली प्रदर्शन करती हैं।

नायक एक संश्लिष्ट किरदार

जैसे जैसे डकैती सामने आती है, वैसे वैसे क़िरदारों की ज़िंदगियों की निजी वजहें भी खुलने लगती हैं। हाल के दशकों में फ़िल्मों की कहानियों ने वास्तविक जीवन से एक काफ़ी अच्छी सीख ली है।

पहले की फ़िल्मों में हीरो सर्वगुण सम्पन्न होते थे। उनमें कोई बुराई नहीं होती थी। लेकिन मौजूदा दौर में कई फिल्में ऐसी आती हैं, जिनका नायक एक संश्लिष्ट किरदार होता है।

इन किरदारों में नायक और खलनायक के बीच की रेखा धुंधली हो जाती है। ‘सिकंदर का मुकद्दर’ की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह अपने किरदारों को साधारण अच्छाई या बुराई तक सीमित नहीं रखती।

नीरज पांडे ने ऐसे खामियों वाले पात्र दिखाए हैं, जो एक ऐसे समाज में नैतिकता के तरल स्वरूप को नेविगेट कर रहे हैं, जहां शक्ति की खोज अक्सर विनाशकारी कीमत के साथ आती है।

नीरज पांडे की कहानी कहने की शैली ‘सिकंदर का मुकद्दर’ में पूरी तरह से झलकती है। फ़िल्म की शुरुआत एक तेज़ तर्रार दृश्य से होती है, जो फ़िल्म के तनावपूर्ण और अप्रत्याशित माहौल को तुरंत स्थापित करता है।

इसके बाद कहानी धीरे धीरे सामने आती है, जिससे दर्शकों को पात्रों की मनोवैज्ञानिक गहराइयों में उतरने का समय मिलता है, जबकि सस्पेंस लगातार बना रहता है।

इस फ़िल्म की पटकथा बेहद सावधानी से तैयार की गई है। हर दृश्य कहानी को आगे बढ़ाने या पात्रों की गहराई को समझाने में योगदान देता है।

संवाद चुभते हैं और कई बार सामाजिक मुद्दों पर दार्शनिक दृष्टिकोण पेश करते हैं, लेकिन यह प्रवचनपूर्ण नहीं लगता।

महत्वाकांक्षा, न्याय और लालच की मानवीय कीमत जैसे विषयों को कहानी में इस तरह पिरोया गया है कि यह एक साधारण हाइस्ट ड्रामा के बजाय गहरी कहानी बन जाती है।

डकैती के दृश्य फिल्म की जान

फिल्म में तनाव लगातार बना रहता है। नीरज पांडे माहौल को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लोज़ अप शॉट्स और बैकग्राउंड स्कोर का कुशलता से उपयोग करते हैं।

खासकर डकैती के दृश्य फिल्म की जान हैं। इन्हें तकनीकी सटीकता और भावनात्मक दांव के साथ बखूबी कोरियोग्राफ किया गया है।

फिल्म की कास्ट ने अपने बेहतरीन प्रदर्शन से ‘सिकंदर का मुकद्दर’ को और ऊंचाई पर पहुंचाया है। अविनाश तिवारी (सिकंदर) ने अपने किरदार को गहरी गंभीरता के साथ निभाया है।

उन्होंने अपने किरदार के आकर्षण और निर्दयता को बेहतरीन ढंग से संतुलित किया है। उनका प्रदर्शन सिकंदर को एक रहस्यमयी शख्सियत बनाए रखता है।

जिम्मी शेरगिल ने इंस्पेक्टर के रूप में शानदार काम किया है। उन्होंने कानून प्रवर्तक की दृढ़ता और मानवीय कमजोरी को बखूबी दिखाया है।

उनकी सूक्ष्म अभिव्यक्ति फिल्म का एक खास पहलू है। तमन्ना भाटिया  ने अपने किरदार की द्वंद्वात्मकता को बड़ी ही खूबसूरती से निभाया है।

उनके प्रदर्शन ने कहानी को और गहराई दी है। दिव्या दत्ता हर दृश्य में प्रभावशाली हैं। उनकी एक पत्रकार के रूप में भूमिका प्रेरणादायक और दिल तोड़ने वाली दोनों है। पात्रों के बीच की केमिस्ट्री फिल्म में और अधिक गहराई जोड़ती है। सभी बातचीत स्वाभाविक और भावनात्मक रूप से प्रासंगिक लगती है।

बैकग्राउंड स्कोर सस्पेंस…

तकनीकी रूप से, ‘सिकंदर का मुकद्दर’ एक उत्कृष्ट कृति है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी पात्रों की विपरीत दुनिया को खूबसूरती से दिखाती है, शहर के अमीरों की भव्यता और उसकी अंधेरी सच्चाई।

प्रकाश और छाया का उपयोग कहानी की नैतिक अस्पष्टता को दर्शाने के लिए किया गया है। एडिटिंग तेज और प्रभावशाली है, जिससे कहानी कहीं भी धीमी नहीं पड़ती। दो घंटे से थोड़ी अधिक की अवधि में, फिल्म कॉम्पैक्ट और सटीक लगती है। बैकग्राउंड स्कोर सस्पेंस को बढ़ाता है लेकिन दृश्यों को कभी ओवरशैडो नहीं करता।

हाल के वर्षों में, थिएटर रिलीज़ को छोड़कर सीधे स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर फिल्में रिलीज़ करने का चलन बढ़ा है। ‘सिकंदर का मुकद्दर’ इस बात का शानदार उदाहरण है कि यह क्यों एक अच्छा कदम हो सकता है।

नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ करके, फिल्म ने बॉक्स ऑफिस के दबाव को दरकिनार करते हुए कहानी को मुख्य स्थान पर रखा है।

इस कदम ने फिल्म को एक वैश्विक दर्शक वर्ग तक पहुंचने का मौका दिया है, जो नीरज पांडे की कहानी कहने की प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर करता है।

डकैती केवल एक तमाशा नहीं

जहां हॉलीवुड में हाइस्ट ड्रामा एक स्थापित शैली है, भारतीय सिनेमा ने हाल ही में इसे गहराई से एक्सप्लोर करना शुरू किया है। ‘सिकंदर का मुकद्दर’ इस शैली के लिए एक नया मानक स्थापित करता है।

फ़िल्म का सबसे खास पहलू इसका मानव केंद्रित दृष्टिकोण है। डकैती केवल एक तमाशा नहीं है, बल्कि पात्रों की प्रेरणाओं, भय और इच्छाओं को उजागर करने का एक साधन है।

यह भावनात्मक गहराई, पांडे के अप्रत्याशित मोड़ों के साथ मिलकर, इस फिल्म को न केवल रोमांचक बनाती है, बल्कि बेहद संतोषजनक भी। ‘सिकंदर का मुकद्दर’ कहानी कहने की एक बेहतरीन मिसाल है।

नीरज पांडे ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह क्यों भारत के सबसे सम्मानित फिल्मकारों में से एक हैं।

‘सिकंदर का मुकद्दर’ केवल एक फ़िल्म नहीं है; यह एक बयान है, सिनेमा की शक्ति को चुनौती देने, मनोरंजन देने और प्रेरित करने की याद दिलाने वाला।

देख लीजिएगा।(पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़” के होस्ट हैं।)

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *