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ज्ञान व चेतना की देवी स्कन्दमाता

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स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं, और ज्ञान को कर्म में परिवर्तित करती हैं। शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। वहीं, देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। पौराणिक मान्यतानुसार देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है।

 शारदीय नवरात्र-19 अक्टूबर- पांचवां दिन

माता भगवती दुर्गा के पंचम स्वरूप देवी स्कन्दमाता की पूजा– अर्चना नवरात्रि के पांचवें दिन किए जाने की परिपाटी है। इस वर्ष 2023 में शारदीय नवरात्र का पंचम दिन 19 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार को पड़ने के कारण इस दिन भगवती के पांचवें स्वरूप स्कन्दमाता की उपासना की जाएगी। वे ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के सूचक देवता स्कन्द, जिन्हें कुमार कार्तिकेय भी कहा जाता है, की माता हैं। स्कन्द को देवासुर संग्राम में देवताओं का सेनापति बनाया गया था। इन्हें कुमार शौर शक्तिधर भी कहा जाता है। इनका वाहन मयूर है। इसलिए इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण भगवती के पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता के नाम से अभिहित किया गया है। स्कन्द ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति, दोनों के मिश्रण का परिणाम हैं।

स्कन्दमाता वह दैवीय शक्ति हैं, जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती हैं, और ज्ञान को कर्म में परिवर्तित करती हैं। शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। वहीं, देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। पौराणिक मान्यतानुसार देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्तियों  के साथ होता है, तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कन्दमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत के  आरम्भ का प्रतीक है। क्रियात्मक ज्ञान अथवा सत्य ज्ञान से प्रेरित क्रिया ही कर्म है।

ज्ञान होने के बाद भी लोग उसका कुछ सार्थक प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं करते। लेकिन ज्ञान का ठोस प्रयोजन व लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। विद्यालय –महाविद्यालय में विज्ञान पढ़ने वाले विद्यार्थी दैनिक जीवन में विज्ञान का कुछ प्रयोग करते दिखाई देते हैं। इसी तरह चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन- प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। किसी यंत्र के खराब हो जाने पर उसे ठीक करना जानने वाले उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। स्कन्द सत्य व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मातृ देवी का एक और रूप है।

यह सर्वविदित है कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु सामने कोई चुनौती अथवा मुश्किल स्थिति आने पर लोग इस ऊहापोह में पड़ जाते हैं कि इस स्थिति में किस प्रकार कौन सा ज्ञान लागू किया जाए, अथवा प्रयोग में लाया जाए?  लेकिन समस्या अथवा मुश्किल स्थिति में तत्क्षण क्रियात्मक होने की आवश्यकता होती है। कर्म के सत्य व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होने पर ही स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं। ऐसे में स्कन्दमाता की पूजा उनकी बीज मन्त्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमा‍तायै नम: – के जाप से करना लाभदायी माना गया है। स्कन्दमाता का ध्यान मंत्र है-

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

पौराणिक मान्यताओं में स्कन्दमाता को पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप माना गया है। इस रूप में प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं। आयुर्वेद में ब्रह्म के दुर्गा कवच में भगवती की पंचम स्वरूप देवी स्कन्दमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है। नवरात्रि के पंचम दिन साधक भक्तों का मन विशुद्ध चक्र में स्थित रहता है। इस चक्र में अवस्थित रहने वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाएं एवं चित्र वृत्तियों का लोप हो जाता है। और उसका ध्यान चैतन्य स्वरूप की ओर होता है। समस्त लौकिक, सांसारिक, मायाविक बन्धनों को त्याग कर वह पद्मासन माता स्कन्दमाता के रूप में पूर्णतः समाहित होता है।

ऐसे में साधक को मन को शुद्ध, एकाग्र रखते हुए साधना के पथ पर आगे बढ़ना चाहिए। नवरात्रि की पंचमी को हरा रंग का वस्त्र धारण करना शुभ माना गया है, क्योंकि हरा रंग प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के लिए आवश्यक वृद्धि और उर्वरता का प्रतीक है। शुभ्रवर्णा देवी स्कन्दमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं। इसलिए इन्हें पद्मासन देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। पौराणिक ग्रंथों में नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन इनकी पूजा -अर्चना महत्व पुष्कल महत्व के समान बताया गया है। पौराणिक वर्णनों में दुर्गा के पांचवें स्वरूप मातृस्वरूपिणी देवी स्कन्दमाता की चार भुजायें हैं। सिंह में सवार माता अपनी दाहिनी ऊपरी भुजा में बालक स्कन्द को गोद में पकड़ी हुई हैं, और ऊपर को उठी हुई दाहिनी निचली भुजा में कमल।

इनकी पूजन का उत्तम काल नवरात्र के शुक्ल पंचमी को प्रात: काल का माना गया है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता स्कन्दमाता परम सुखदायी हैं। माता अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। देवी स्कन्द माता की उपासना से भक्त की समस्त इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। इस मृत्युलोक में ही उसे परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वमेव सुलभ हो जाता है। स्कन्दमाता की उपासना से बालरूप स्कन्द भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है।

यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है। इसलिए एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माता की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। इस घोर भवसागर के दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ बनाने का इससे उत्तम उपाय दूसरा नहीं है। पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कन्दमाता की कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। भक्त की सारी इच्छाएँ पूरी हो जाती हैं। मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कान्तिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।

यह देवी चेतना का निर्माण करने वाली है। विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। मान्यता है कि कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएँ स्कन्दमाता की कृपा से ही संभव हुईं। यही कारण है कि सत्य ज्ञान के आग्रही, विद्वतजन नित्यप्रति के साथ ही नवरात्र में पांचवें दिन माता स्कन्दमाता की विधि- विधान से पूजा- उपासना कर सन्मार्ग पर चलने और सत्य चेतना के निर्माण करने के लिए माता से प्रार्थना करते हैं।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

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