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ऐसे तो खेल महाशक्ति नहीं बन पाएंगे!

ओलंपिक तो बहुत दूर की बात है। यह ना भूलें कि एथलेटिक, तैराकी और जिम्नास्टिक में सबसे ज्यादा पदक दांव पर होते है। यहां तक माना जाता है कि जो देश एथलेटिक, तैराकी और जिम्नास्टिक में कमजोर हैं, खेल में कभी बड़ी ताकत नहीं बन सकते। टीम खेलों में भारतीय खिलाड़ी महां फिसद्दियों में शामिल हैं।

ग्वांगझाउ एशियाई खेलों में भारतीय खिलाड़ियों के रिकर्डतोड़ प्रदर्शन के बाद भारतीय खेल आका गदगद हैं और  यह मान चुके हैं कि भारत खेल महाशक्ति बनने की दिशा में चल निकला है। सरकार , खेल प्राधिकरण , खेल संघ और बड़े औद्योगिक घराने देश में ओलंपिक आयोजन कराने के बारे में एकजुट हो रहे हैं। बेशक, 107 पदक जीत कर हमारे खिलाड़ियों ने सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का मान रख लिया, विदेशी कोचों के शिक्षण प्रशिक्षण की भी लाज बची है। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे खिलाड़ियों को बड़ी कामयाबी निशानेबाजी, एथलेटिक और कुछ अन्य खेलों में मिली है।

यह भी सच है कि नीरज चोपड़ा के अलावा बाकी ओलंपिक पदक विजेता खिलाड़ी अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाए। भारतीय खिलाड़ियों के भारी भरकम दल ने सौ पदक जरूर जीते परंतु डेढ़ दर्जन से ज्यादा खेल ऐसे हैं जिनमें हमारे खिलाड़ी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाए। मसलन मार्शल आर्ट्स खेलों में हमेशा की तरह निराशा हाथ लगी है।

गुटबाजी और लूट खसोट से घिरे मार्शल आर्ट्स खेलों में कहीं कोई सुधार नजर नहीं आता। हैरानी वाली बात यह है कि जूडो, कराटे, तायकवांडो जैसे खेल आपस में लड़  भिड़ रहे हैं। खेल मंत्रालय , खेल संघ और राज्य इकाइयां इन खेलों का नंगा नाच देख रहे हैं । हर एशियाड और किसी भी  बड़े आयोजन से पहले टीमों के चयन में जमकर धांधली होती है। मामला कोर्ट तक जाता है लेकिन कोई हल नहीं निकल पाता। कुश्ती फेडरेशन के चुनाव बार बार टाले गए।

पूर्व अध्यक्ष पर आरोप लगे , जिनका आज तक निपटारा नहीं हो पाया है। फेडरेशन बस कागजों में चल रही है। हो सकता है अंतरराष्ट्रीय कुश्ती महासंघ किसी दिन भारतीय फेडरेशन को प्रतिबंधित करने का फरमान जारी कर दे। यह सही है कि कुछ खेलों में हमारा प्रदर्शन सुधरा है और हमारे खिलाड़ी पदक भी जीत रहे हैं लेकिन कुछ खेल ऐसे भी हैं जिनमें भारत जीरो पर खड़ा है। मसलन जिम्नास्टिक और तैराकी को ही देख लें। इन खेलों में हमारा एक भी खिलाड़ी एशियाड में भी पदक नहीं जीत पाया।

ओलंपिक तो बहुत दूर की बात है। यह ना भूलें कि एथलेटिक, तैराकी और जिम्नास्टिक में सबसे ज्यादा पदक दांव पर होते है। यहां तक माना जाता है कि जो देश एथलेटिक, तैराकी और जिम्नास्टिक में कमजोर हैं, खेल में कभी बड़ी ताकत नहीं बन सकते। टीम खेलों में भारतीय खिलाड़ी महां फिसद्दियों में शामिल हैं। हॉकी और कबड्डी में कभी कभार बेहतर कर जाते हैं लेकिन कबड्डी को ओलंपिक का दर्जा हासिल नहीं। वॉलीबॉल, हैंडबॉल,  बास्केटबॉल, रग्बी और तमाम  टीम खेलों में हालत किसी से छिपी नहीं है। फुटबाल का हाल भी जग जाहिर है। भारतीय फुटबाल की हैसियत महाद्वीप में फिसड्डी देश की है। ऐसे में ओलंपिक पदक तो शायद सालों बाद भी नहीं जीत पाएंगे। तो फिर खेल महाशक्ति कैसे बनेंगे?

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