भोपाल। तीन राज्यों में विधान सभा चुनावों का ताप बढ़ने के साथ मोदी जी के हवाई दौरे और आभासी उद्घाटनों के सरकारी आयोजनों की सूचना के विज्ञापनों से भरे समाचार पत्रों के बाद भी भीड़ एकत्र करने का दायित्व भी पार्टी का नहीं – सरकार की जिम्मेदारी है ! परंतु ऐसे आयोजनों में उनके भाषण अभी भी कॉंग्रेस केंद्रित होते हैं, अब ऐसे अवसर पर दलीय प्रचार कितना उचित है। यहां पर इलाहाबाद उच्च न्यायलय का जस्टिस जगमोहन लाल का विख्यात फैसले का जिक्र करना जरूरी है, जिसमें उन्होंने इन्दिरा गांधी जी के रायबरेली से संसद के चुनाव को सिर्फ इसलिए अवैध “ घोषित कर दिया था कि उनकी सुरक्षा के लिए सरकारी खर्चे पर “डी” बनवाया गया था ! अब इस फैसले के मद्दे नज़र अगर हम देखें तब उनके आयोजन, जो पूरी तरह से सरकार द्वारा इंतजाम किया जाता है – उनमंे मोदी जी का राजनीतिक प्रचार कितना वैधानिक है?
भोपाल में उन्होंने अपने भाषण में कहा कि मोदी के वचन ही मोदी की गारंटी है, अब इस बयान को उनके बड़े – बड़े वादों में परखे तब हक़ीक़त कहा था “ काला धन को देश मे वापस लाना, और उसको देश के लोगों को 15 पंद्रह लाख वितरित करना! भाइयों बताए कितने लोगो को यह वादा मिला। फिर दूसरा वादा हर साल करोड़ों युवा लोगों को रोजगार सुलभ करना था ! आज सभी सर्वे और रिपोर्ट बता रहे है कि देश में रोजगार के अवसर घटे हंै। चाहे वह कारपोरेट सेक्टर हो अथवा इनफारमल सेक्टर हो, सब जगह एक जैसी हालत है। प्रधानमंत्री द्वारा आभासी रूप से नौजवानंो को नियुक्ति पत्र देने के आयोजनों का प्रचार विज्ञापनों में तो होता है परंतु इन नियुक्तियों की संख्या – विभाग और नियुक्तिकर्ताओं का विवरण गायब रहता है। इनकी जानकारी का विवरण सरकारी वेबसाइटों पर भी नहीं उपलब्ध है। इससे भी अचरज की बात है की वे कांग्रेस सरकारों की राहत योजनाओं की खिल्ली उड़ाते हंै ! मतलब हम कहे तो ठीक, तुम कहो तो गलत !
जिस प्रकार चुनाव की जमीनी इंतेजाम को गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हंै, उसको देखे तो पता चलता है कि उनकी अपने गठबंधन एनडीए से ही नहीं वरन भारतीय जनता पार्टी से भी लोग भाग रहे हैं, इसे मध्यप्रदेश में देखा और महसूस किया जा रहा है। सबसे पहले तो सनातन धर्म को लेकर द्रविड मुनेत्र कड्ड्गम के मंत्री द्वारा की गयी गैर शालिन टिप्पणी को लेकर जिस प्रकार बीजेपी के नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी से जवाब तलब कर रहे थे, तब उन्होंने दक्षिण के कड्ड्गम आंदोलन की तमिल बहुसंख्यकों में जमी जड़ों को नहीं समझा था। उन्होंने उत्तर भारत में राम मंदिर आंदोलन से उपजी राजनीतिक सफलता को सर्वव्यापी फार्मूला मान लिया था। परिणाम स्वरूप एआईडीएमके ने एनडीए से नाता तोड़ लिया और कहा कि वे अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। क्यूंकि सनातन का मसला राजनीतिक से कहीं ज्यादा सामाजिक हैं ! अब बीजेपी तमिलनाडु के ब्राह्मणों के आसरे वहां चुनाव लड़ेगी। काँग्रेस का पराभव भी कडगम आंदोलन को नहीं समझा पाने से ही हुआ था। यद्यपि काँग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री के कामराज दलित थे पर तब तक ब्राह्मणों और चेट्टियार से नाराजगी इतनी तीव्र नहीं थी। आज वही गलती मोदी जी कर गए।
दक्षिण में धर्म मंदिरो में बसता है, वनहा के लोग मंदिर दरसन और संगीत एवं कला के प्रति संवेदनशील है। जिसे उनके संगीत और न्रत्य तथा सिनेमा में देखा जा सकता है। परंतु राजनीति से उनके दिन प्रतिदिन की आस्था का कोई संबंध नहीं है। बीजेपी ने राम मंदिर आंदोलन को कसौटी मान लिया था जिसमे साधारण जन धार्मिक आस्था को ही राजनीतिक चयन मान कर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को चुनाव जीता दिया। यही अंतर है उत्तर और दक्षिण का है। मोदी जी काँग्रेस को भ्रष्ट और अर्बन नक्सलियों द्वारा चलाये जाने का आरोप लगाते हैं – जैसा उन्होंने भोपाल में भाषण दिया था वे भूल जाते है कि यही पार्टी है जिसने देश को आज़ाद कराया, इसी पार्टी के दो प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी देश के लिए शहीद हुए है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बदौलत ही देश में स्टील के कारखाने और आईआईटी तथा आईआईएम एवं एम्स बने, बड़े बांध बिजली घर बने। ऐसी पार्टी को जंग खाई पार्टी बताना और देश विरोधी बताने का प्रयास कितना जनता के गले उतरेगा यह वक़्त बताएगा। वैसे सत्तधारी दल के आनुषंगिक संगठन बजरंग दल और विश्व हिन्दू परिषद का काम सिर्फ और सिर्फ किसी न किसी बहाने चंदा उगाहना है। बजरंग दल के लोगों को बिलकीस बानो मामले में सज़ा हुई, और गुजरात सरकार ने उनकी सज़ा मे कमी कर दी, जब सुप्रीम कोर्ट ने जवाब तलब किया तब नियम कायदे बताने लगी थी प्रदेश की सरकार। मणिपुर में बीजेपी की सरकार होने के बावजूद जिस प्रकार नस्लीय और जातीय हिंसा विगत दो माह से ज्यादा दिनो से हो रही है – वह पंजाब में भिंडरानवाले के गुट द्वरा आतंक फैलाये जाने के समान ही है। तब प्रधान मंत्री ने इन्दिरा गांधी ने आपरेशन ब्ल्यू स्टार किया था। मिजोरम में जब आतंकवादी गुटों ने आकाशवाणी और शासन के मुख्यालय पर कब्जा कर लिया था तब उन्होंने हवाई हमला कर आतंकवादियों का खत्म किया था। यह बात और है कि सिखों की नाराजगी ही उनकी हत्या का कारण बनी। परंतु पंजाब में कैरो की भी हत्या हुई थी परंतु उनके हत्यारों को नेपाल से बंदी बना कर लाया गया था। दूसरे मुख्यमंत्री के हत्यारे आज भी जेल में बंद है। यह है अंतर प्रधान मंत्री इन्दिरा गांधी और आज के नरेंद्र मोदी में। जो मणिपुर को धार्मिक उन्माद में जलने दे रहे हैं, पहले देश में, हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ जहर भरा और अब ईसाई जन जाति के कूकियों के खिलाफ मतेई समुदाय को शह दे रहे हैं।
सभी धर्म परमात्मा या सर्व शक्तिमान नियंता की कल्पना करते हैं- कुछ निराकार रूप में और बाकी मूर्ति पूजक होते है। इतिहास में धर्म के नाम पर अनेक कुरीतियां पनपी जिनका कारण धर्म के ठेकेदारों का लालच था मंदिर की मूर्ति के अरचकों द्वारा साधारण जनों को नियंत्रित करने के लिए अनेक प्रकार की अफवाहों का सहारा भी लिया गया। मिश्र में फरौन के समय की मूर्ति के पुजारी जनमानस और यहां तक कि राजसत्ता को भी, नहीं मानते थे। तब हज़रत मूसा ने उनके देवता को निरर्थक सिद्ध कर दिया था। निराकार ईश्वर की कल्पना शायद इसीलिए की गयी होगी कि उपासकों में उंच – नीच या छोटे बड़े का भाव नहीं पनपे। परंतु मानव की फितरत है देखने और दिखाने की, जिस कारण उन धर्मो भी मूर्ति पूजा प्रकारांतर में शुरू हो गयी। इसका उदाहरण बौद्ध और जैन ध्रमों का है। दोनों वेदिक धरम के कर्म कांड और ब्रांहणवाद से उपजे आशंतोष से उपजे थे। परंतु बुद्ध और जैन धर्म के तीर्थंकरों की बड़ी बड़ी प्रतिमाए प्रमाण है। दोनों ही धर्म ईश्वर की अवधारणा को खारिज करते हैं एवं आत्मशुद्धि को मानव की अंतिम उपलब्धि मानते हैं। कुछ ऐसा ही सनातन धर्म में हुआ कि ईश्वर से बड़े उनके पुजारी हो गये।