Kejriwal liquor policy: दिल्ली विधानसभा चुनाव आज का कुरुक्षेत्र बन चुका हैं, जिसमें एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह अपनी -अपनी सेनाओं के साथ आरोपों के बयान ‘आप’ सरकार को निशान बना के छोड़े जा रहे हैं।
उसमें 13 जनवरी को एक नया मोड़ आ गया जब, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस सचिन दत्त ने ‘आप’ सरकार को फटकार लगाई कि दिल्ली सरकार ने शराब नीति के मामले में कंट्रोलर जनरल एण्ड आडिटर जनरल की रिपोर्ट को विधानसभा में चर्चा क्यूं नहीं कराई ।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक बार पुनः मनमोहन सिंह सरकार के समय टूजी स्पेक्ट्रम की नीलामी में हुए तथा कथित घोटाले पर तत्कालीन सीएजी विनोद रॉय की रिपोर्ट और उनके बयानों की बरबस याद दिला दी.!
टूजी नीलामी को वर्तमान सत्ताधारी दल और उनके सहयोगी दलों ने उसे सदी का महानतम घोटाला बताया था।
लोकसभा चुनावों के पूर्व विनोद रॉय के कथन को भगवत् वाक्य मानकर देश की जनता ने भी काँग्रेस सरकार को भ्रष्ट मानकर उनको सत्ता से उतार दिया।
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तत्कालीन विपक्ष और वर्तमान सत्ताधारी दल के आरोपों को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ही निरधार बताया था।
हुआ कुछ यूं था कि सुप्रीम कोर्ट मे इस मुद्दे पर कैग की रिपोर्ट में बताए गए सरकार के राजस्व के नुकसान के आधार पर जब छानबीन की तब पता चला कि विनोद रॉय द्वारा जो आँकड़े दिए गए थे, वे सब काल्पनिक थे।
जब सुप्रीम कोर्ट ने विनोद रॉय को तलब किया तब उन्होंने एक शपथ पत्र देकर कहा कि उनके द्वारा दिए गए आँकड़े निजी अनुमान थे।
बस इसी तथ्य पर सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को निराधार घोषित किया ! विनोद रॉय ने बाद में सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। परंतु जस्टिस वाज़ डीलेड, और एक ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की प्रतिष्ठा धूमिल हो गई !
क्या न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की यह टिप्पणी की केजरिवल सरकार ने कैग की रिपोर्ट पर विधानसभा मे चर्चा क्यूं नहीं कराई.?
जिसमें कैग ने 2026 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप है, शायद न्यायमूर्ति को मालूम नहीं होगा कि कैग की रिपोर्ट पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब आदि राज्यों में भी आजकल चर्चा नहीं की जाती।
किस प्रकार भ्रष्टाचार किया
उनको स्वीकार कर लिया जाता हैं। इतना ही नहीं दिल्ली सरकार की शराब नीति में ठोस रूप से यह नहीं साबित किया गया कि किस प्रकार भ्रष्टाचार किया गया !
सिर्फ संदेह व्यक्त किया गया है जैसा कि बोफोर्स और टूजी मामले में हुआ। प्रचार तंत्र ने हकीकत को उजागर ही नहीं होने दिया और अब मोदी जी के राज में विज्ञापन से ही उपलब्धि गिनाई जाती हैं, धरातल पर नहीं, क्यूंकि विज्ञापनों में लिखा गया सच था ही नहीं।
सरकार से सवाल पूछने पर कोई जवाब नहीं मिलता। राइट टू इनफॉर्मेशन को संशोधन करके इतना पंगु कर दिया गया है सरकार चाहेगी तब ही प्रश्नकर्ता जानकारी पा सकता हैं। अन्यथा ठन ठन गोपाल।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को लेकर बीजेपी नेता विजेंदर गुप्ता ने कहा कि बतौर विधायक कैग रिपोर्ट पर बहस करना हमारा अधिकार हैं और इसलिए सदन का विशेष सत्र बुलाया जाए (चुनाव की प्रक्रिया आरंभ होने के बाद)।
अब यही अगर कोर्ट के निशाने पर गैर बीजेपी सरकार होती तब सरकार के बड़े नेता का बयान होता चुनाव होने दीजिए जनता तय कर देगी कि कौन ईमानदार और कौन नहीं।
पर इसी अवसर पर टूजी घोटाला और विनोद रॉय की रिपोर्ट (जो कि पूरी तरह से आधारहीन और तथ्यहीन अनुमानों पर थी) का याद आना जरूरी होता हैं।
2026 करोड़ रुपये का घोटाले
अब एक सवाल यह भी है कि आरोप के अनुसार 2026 करोड़ रुपये का घोटाले हुए हैं। अब महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि दिल्ली सरकार की आबकारी मुहकमे से कितनी कमाई है।(Kejriwal liquor policy)
क्यूंकि पूरी कमाई तो भ्रष्ट रूप से नहीं कमाई जा सकती। जब तक की आवक की मद पीएम केयर्स जैसी न हो। जिसमें पैसे के आने और जाने की कोई निर्धारित प्रक्रिया नही है।
सबसे बड़ी कमीशनखोरी का आरोप मध्यप्रदेश सरकार के लोक निर्माण विभाग पर है -जिसमें ठेके की राशि का पचास प्रतिशत विभाग और नेताओं के लिए वसूल जाता हैं,
इसलिए चाहे जबलपुर हो या भोपाल बनने वाले पूल उद्घाटन के पहले ही दरक जाते हैं। यह उदाहरण इसलिए कि कितना कमीशन सरकारी निर्माण या राजस्व मे अफसरों और नेताओ की जेब मे जाता हैं।