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कथा के सहारे सत्यप्रेम

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नो मीन्स नो। फिल्मों में और हमारी अदालतों में आने वाले केसों में काफी समय से यह मुद्दा चल रहा है। इसका मतलब है कि महिला और पुरुष के रिश्तों में शारीरिक संबंधों की सीमा वहीं तक होनी चाहिए जहां तक महिला की रज़ामंदी हो। अगर वह आगे बढ़ने से मना करती है तो उसके इस इन्कार का सम्मान होना चाहिए। ‘सत्यप्रेम की कथा’ जैसी नाच-गाने और मस्ती वाली फिल्म में ऐसा संदेश लोगों को चकित करता है। मगर यह फिल्म इस मुद्दे पर किसी गंभीर बहस की पक्षधर नहीं लगती। निर्माता साजिद नडियाडवाला और निर्देशक समीर विद्वांस इस बात का पूरा ख्याल रखते हैं कि युवा दर्शक इससे बोर न हो जाएं। फिर भी, यह मुद्दा और महिलाओं के प्रति झुकाव इस फिल्म की कहानी को नयापन देता है।

इस फिल्म का नाम पहले ‘सत्यनारायण की कथा’ रखा जाने वाला था जिसे बाद में बदल कर ‘सत्यप्रेम की कथा’ किया गया। नहीं बदला जाता तो फिल्म में कियारा आडवाणी तो कथा ही रहतीं, लेकिन कार्तिक आर्यन का नाम सत्यप्रेम की बजाय सत्यनारायण हो जाता। फिल्म में राजपाल यादव, गजराज राव, सुप्रिया पाठक और शिखा तल्सानिया भी हैं। अक्षय कुमार का विकल्प बनने में यह फिल्म कार्तिक को एक कदम और आगे ले जाती है। उन्हें ‘भूलभुलैया 2’ से मिली बढ़त पर ‘शहज़ादा’ ने जो धुंध चढ़ा दी थी उसे यह फिल्म हटा सकती है। लेकिन इस फिल्म को उनसे कहीं ज्यादा संबल कियारा आडवाणी ने दिया है। कार्तिक लगातार हीरो के तौर पर स्थापित होते जा रहे हैं जबकि कियारा हीरोइन से अभिनेत्री बनने की तरफ अग्रसर लगती हैं।

By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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