Constitution of india : विडम्बना देखिए कि संविधान पर हमला करने, उसकी मूल भावना को कुचलने और अनगिनत मनमाने संशोधन करने वाली पार्टी कांग्रेस के नेता इन दिनों संविधान की सुरक्षा का अभियान चला रहे हैं और जिन लोगों ने संविधान की रक्षा के लिए अपना जीवन और सब कुछ दांव पर लगाया उनसे संविधान को खतरा बता रहे हैं! वास्तविकता यह है कि संविधान पर कोई खतरा नहीं है। खतरा कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर है।
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‘हम भारत के लोग’ द्वारा संविधान अंगीकार करने के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं। समस्त देशवासियों के लिए यह गर्व और प्रेरणा का दिन है।(Constitution of india)
एक गणतंत्र के रूप में भारत के 75 वर्ष पूरे करना कई मायनों में बहुत विशेष और महत्वपूर्ण है। संविधान के 75 वर्ष की यात्रा में शायद ही कोई समय रहा होगा, जब इसे लेकर इतनी चर्चा हुई होगी, जितनी अभी हो रही है।
ठीक 50 साल पहले 1975 में जब संविधान पर सबसे बड़ा हमला हुआ था यानी इमरजेंसी लगाई गई थी और देश के समस्त नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए थे तब भी इसकी इतनी चर्चा नहीं हुई थी।
हालांकि तब देश के नागरिकों ने मन ही मन यह संकल्प बनाया था कि देश के पवित्र संविधान पर हाथ डालने वालों को छोड़ना नहीं है।(Constitution of india)
संविधान पर हुए उस हमले के बाद देश की जनता ने कांग्रेस पार्टी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी को सजा दी और यह स्पष्ट कर दिया कि संविधान पर हमला उसे स्वीकार्य नहीं होगा।
संविधान पर कोई खतरा नहीं
परंतु विडम्बना देखिए कि संविधान पर हमला करने, उसकी मूल भावना को कुचलने और अनगिनत मनमाने संशोधन करने वाली पार्टी कांग्रेस के नेता इन दिनों संविधान की सुरक्षा का अभियान चला रहे हैं और जिन लोगों ने संविधान की रक्षा के लिए अपना जीवन और सब कुछ दांव पर लगाया उनसे संविधान को खतरा बता रहे हैं!
वास्तविकता यह है कि संविधान पर कोई खतरा नहीं है। खतरा कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर है। खतरा कांग्रेस के शाही खानदान की राजनीति पर है। खतरा तुष्टिकरकण की राजनीति करने वाली जातिवादी पार्टियों के ऊपर है।
अपने अस्तित्व, अपनी राजनीति और पार्टी के ऊपर आए खतरे को इन पार्टियों ने संविधान पर खतरा बताना शुरू किया है।(Constitution of india)
विपक्षी पार्टियों की इस राजनीति की वजह से संविधान की चर्चा शुरू हुई है और संविधान निर्माण में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की भूमिका पर चर्चा भी घर घर पहुंची है।
इस क्रम में लोगों को इस बात की भी जानकारी मिली है कि कांग्रेस ने बाबा साहेब अंबेडकर के साथ किस तरह का बरताव किया।
भारत का संविधान कोई दस्तावेज भर नहीं
भारत के संविधान को खतरे में बताने वाली पार्टी और नेता असल में इसकी शक्ति को न जानते हैं और न समझते हैं।(Constitution of india)
भारत का संविधान कोई मामूली किताब या कागजों का दस्तावेज भर नहीं है। इसमें देश के 140 करोड़ लोगों की आत्मा बसती है। इसलिए यह कहना अपने आप में बचकाना है कि संविधान खतरे में है।
संविधान एक जीवित दस्तावेज है और उसमें समय की जरुरतों के हिसाब से संशोधन होते हैं। इसका प्रावधान संविधान निर्माताओं ने ही किया है।
उन्हीं प्रावधानों के आधार पर संविधान में अब तक सवा सौ से ज्यादा संशोधन हो चुके हैं। संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्र की श्री नरेंद्र मोदी सरकार ने 129वें संविधान संशोधन का विधेयक पेश किया।
इसके जरिए पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने का कानून बनाया जाना है। इस विधेयक को एक संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया है, जो इस पर विचार कर रही है।
यह संशोधन भी संविधान की मूल भावना को स्थापित करने के लिए लाया गया है। ध्यान रहे आजादी के बाद पहले चार लोकसभा चुनावों के साथ ही लगभग पूरे देश के विधानसभा चुनाव हुए थे।(Constitution of india)
उसके बाद कांग्रेस की केंद्र सरकार द्वारा मनमाने तरीके से राज्यों की सरकार बरखास्त करने के कारण यह चक्र टूटा। अब इस चक्र को फिर से बहाल करने का प्रयास हो रहा है।
इमरजेंसी में मनमानियां संविधान के नाम पर (Constitution of india)
संविधान अंगीकार किए जाने के 75 साल पूरे होने के अवसर पर यह विचार करने की भी आवश्यकता है कि तीन चौथाई सदी का संविधान का सफर कैसा रहा?
सबसे पहले तो यह बुनियादी बात समझने की जरुरत है कि कोई भी संविधान उतना ही अच्छा या उतना ही सफल होता है, जितने अच्छे उसे लागू करने वाले होते हैं।
अगर संविधान जैसा पवित्र दस्तावेज भी गलत लोगों के हाथ में हो उसका दुरुपयोग हो सकता है। श्रीमति इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 में किए गए प्रावधानों का इस्तेमाल करके ही देश में इमरजेंसी लगाई थी।
पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से लेकर बाद की सभी कांग्रेस सरकारों ने अनुच्छेद 356 के प्रावधानों का दुरुपयोग करके ही देश के अनेक राज्यों की चुनी गई सरकारों को मनमाने तरीके से बरखास्त किया।
इमरजेंसी के समय तमाम किस्म की मनमानियां संविधान के नाम पर ही की गईं। नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए। विपक्ष के नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
उच्च न्यायपालिका में मनमाने तरीके से वरिष्ठता का उल्लंघन करके जूनियर और प्रतिबद्ध जज को चीफ जस्टिस बनाया गया।(Constitution of india)
संविधान में मनमाने तरीके से संशोधन किए गए। हैरानी की बात है कि इतना सब कुछ करने वाली पार्टी अपने को संविधान का रक्षक बता रही है!
संविधान की संपूर्ण अनुपालना सुनिश्चित
दूसरी ओर पिछले 10 साल के श्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल को देखें तो आजाद भारत के इतिहास में कोई भी कालखंड ऐसा नहीं रहा है, जब संविधान की संपूर्ण अनुपालना सुनिश्चित की गई हो।
इस अवधि में एक भी राज्य सरकार अनुच्छेद 356 का इस्तेमाल करके नहीं बरखास्त की गई है। एक जम्मू कश्मीर को छोड़ कर कहीं भी राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया गया।
संविधान में न्यूनतम संशोधन किए गए और जो भी संशोधन हुआ वह देश और समाज के वृहत्तर हित के लिए हुआ। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हर कीमत पर संविधान और आरक्षण की रक्षा का संकल्प जताया हुआ है।
उनकी सरकार ने संविधान रचयिता बाबा साहेब अंबेडकर के सम्मान में पंचतीर्थों का विकास किया और उनके आदर्शों को हर व्यक्ति तक पहुंचाने का काम किया।(Constitution of india)
इसलिए संविधान पर खतरे की धारणा बनाने का प्रयास कर रही पार्टियां और उनके नेता सफल नहीं हो पा रहे हैं। देश की जनता बार बार उन्हें नकार रही है।
इमरजेंसी इंदिरा गांधी की सरकार की देन
बहरहाल, संविधान की 75 वर्ष की यात्रा के बाद इस अहम पड़ाव पर एक विसंगति की चर्चा अनिवार्य है। वह विसंगति 1975 में लगाई गई इमरजेंसी के दौरान श्रीमति इंदिरा गांधी की सरकार की देन है।
उनकी सरकार ने संविधान के 42वें संशोधन के जरिए दर्जनों प्रावधानों को बदला। यहां तक कि संविधान की प्रस्तावना को भी बदला गया।
श्रीमति इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवाद’ शब्द जोड़े। ऐसा नहीं है कि भारत राष्ट्र राज्य के लिए या भारत की शासन व्यवस्था के लिए ये दोनों नए शब्द थे या नए विचार थे।
भारत हमेशा से सभी धर्मों का सम्मान करने वाला राष्ट्र रहा है और समाजवाद भी इसकी नींव में है क्योंकि अनादि काल से हम भारत के लोग ‘सर्वे भवंतु सुखिन’ की संकल्पना के साथ जीते हैं।
संभवतः इसलिए संविधान बनाने वाले हमारे पूर्वजों ने अलग से इन शब्दों का उल्लेख करने की जरुरत नहीं समझी थी।
नागरिक के साथ भेदभाव नहीं हो(Constitution of india)
संविधान के हर प्रावधान को बड़ी सावधानी से इस तरह से बनाया गया था कि धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या किसी भी अन्य आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं हो।
परंतु श्रीमति इंदिरा गांधी ने तुष्टिकरण की राजनीति के तहत ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया और ‘गरीबी हटाओ’ के नारे को न्यायसंगत बनाने के लिए ‘समाजवाद’ शब्द जोड़ा।
ये दोनों शब्द प्रस्तावना में जोड़े जाने से पहले भी भारत धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी राष्ट्र के रूप में ही काम कर रहा था।
पंडित नेहरू, श्री लाल बहादुर शास्त्री और खुद श्रीमति इंदिरा गांधी ने करीब 10 साल इन दो शब्दों के बगैर ही शासन चलाया।(Constitution of india
बाद में विशुद्ध राजनीतिक मकसद से इन दो शब्दों को प्रस्तावना में शामिल किया गया। वर्तमान समय में इनकी कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
इसलिए समय आ गया है कि इन दोनों शब्दों को हटा कर संविधान की प्रस्तावना को उसके मूल रूप में स्थापित किया जाए।
संविधान की यात्रा के कुछ अहम पड़ाव
संविधान की यात्रा के कुछ अहम पड़ावों की अगर बात करें तो केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट की ओर से बुनियादी ढांचे के सिद्धांत का प्रतिपादन एक अहम पड़ाव है।
जस्टिस हंसराज खन्ना ने केशवानंद भारती मामले में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि भारत के संविधान में कुछ बुनियादी विशेषताएं हैं, जिनको संसद भी संशोधनों के जरिए समाप्त नहीं कर सकती है।
संविधान की सर्वोच्चता से लेकर देश की लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक संरचना, नागरिकों के मौलिक अधिकार, शासन की संघीय व्यवस्था, न्यायिक समीक्षा, शक्तियों के पृथक्करण, नागरिकों की स्वतंत्रता व समानता आदि को बुनियादी ढांचे के सिद्धांत में समाहित किया गया।
श्रीमति इंदिरा गांधी की सरकार ने इमरजेंसी के समय बुनियादी ढांचे को ही बदलने का प्रयास किया था, लेकिन देश के सजग नागरिकों ने उनका प्रयास विफल कर दिया।
उसके बाद से किसी भी सरकार ने, चाहे उसके पास कितना भी बड़ा बहुमत क्यों न रहा हो, संविधान के बुनियादी ढांचे से छेड़छाड़ का प्रयास नहीं किया।(Constitution of india)
भारतीय लोकतंत्र की यह शक्ति संविधान के हमेशा सुरक्षित रहने का भरोसा दिलाती है। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)