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आतंकियों से लड़ता ‘द फ्रीलांसर’

आतंकियों से लड़ता ‘द फ्रीलांसर’

हमारे बहुत से फिल्मकार अब यह कहने से बचते हैं कि बाबरी मसजिद को गिराया गया था। हंसल मेहता की ‘स्कैम 2003’ में भी उसे ‘हादसा’ कहा गया है। बेहतर होता कि इसकी जगह ‘ध्वंस’ अथवा ‘कांड’ का प्रयोग किया जाता। इन दोनों शब्दों से भी यह जाहिर नहीं होता कि ऐसा किसने किया, मगर लेखन के स्तर पर ‘हादसा’ के मुकाबले ये कम निरपेक्ष हैं। इसी तरह डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई नीरज पांडे की वेब सीरीज़ ‘द फ्रीलांसर’ बताती है कि अफ़गानिस्तान को तालिबान के हवाले कर जब अमेरिका वहां से लौट रहा है, तमाम विदेशी और हजारों अफगानी वहां से भागना चाहते हैं, काबुल हवाईअड्डा अमेरिकी सेना के कब्जे में है, ऐसे में कुछ मरजीवड़ों के एक ग्रुप को इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद एक ईरानी व्यक्ति को मारने का ठेका देती है जिसका संबंध हिज़्बुल्ला से था और जिसने कई इजराइली दूतावासों पर हमले करवाए थे। यह व्यक्ति इस समय काबुल हवाईअड्डे पर अमेरिकी हिरासत में है। कमाल यह कि वहां की भारी सुरक्षा के बावजूद मरजीवड़ों का वह ग्रुप एक अमेरिकी हेलीकॉप्टर से अमेरिकी सैनिकों के वेश में वहां उतरता है और अपने लक्ष्य को मारने में ही नहीं, वहां से सुरक्षित निकल जाने में भी कामयाब हो जाता है। इस ग्रुप का सरगना हमारा हीरो है। नीरज पांडे चाहते हैं कि आप इसे जज़्ब कर लें। नहीं करेंगे तो ‘द फ्रीलांसर’ को आगे कैसे देख पाएंगे।

मगर यह भी सही है कि नीरज पांडे ऐसा तिलिस्म बुनते हैं कि इसे देखते हुए नज़र हटाना या कुछ और सोच पाना मुश्किल है। उन्होंने भी क्राइम, टेरर, एक्शन और थ्रिल का अपना एक अलग यूनिवर्स बना लिया है जिसे वे बखूबी निभा भी रहे हैं। इस मामले में विदेशी लोकेशनों का उनसे बेहतर इस्तेमाल शायद कोई और फिल्मकार नहीं कर पाता। मुंबई पुलिस के दो बहादुर अफसर इनायत खान और अविनाश कामत अपने सीनियरों की बात नहीं मानने पर सस्पेंड हो जाते हैं और बिछड़ जाते हैं। बरसों बाद इनायत की बेटी शादी के बाद हनीमून पर इस्ताम्बुल जाकर लापता हो गई है। अब इनायत को अविनाश की ज़रूरत है, मगर वह तो बरसों से गायब है। उसे बुलाने के लिए इनायत अमेरिकी कौंसुलेट के बाहर हमलावर रवैया अपना कर खुद मारे जाने का रास्ता अपनाता है। सचमुच इस खबर को सुन अविनाश लौट आता है और फिर उसे आईसिस के कब्ज़े से आलिया को बचाने में जुटना पड़ता है।

ये दो दोस्त बने हैं मोहित रैना और सुशांत सिंह।  मोहित रैना अपने भावहीन चेहरे के साथ सबसे पहले भगवान महादेव बन कर परदे पर आए थे। उनके चेहरे पर भाव अभी भी कम हैं, लेकिन उनकी आवाज़ प्रभावी है। निखिल आडवानी की ‘मुंबई डायरीज़’ के बाद शायद अब उन्हें जोरदार भूमिका मिली है, हालांकि अभिनय में सुशांत उनसे आगे रहते हैं। ग्रुप के सलाहकार और विश्लेषक के तौर पर अनुपम खेर निरंतर एक ही भाव में नज़र आए। इनके अलावा कश्मीरा परदेशी, आयशा रजा मिश्रा, सारा जेन डायस और नवनीत मलिक को प्रमुख भूमिकाएं मिली हैं।

दिलचस्प बात यह है कि ‘द फ्रीलांसर’ भी एक किताब पर आधारित है। यह है ‘अ टिकिट टू सीरिया’ जिसके लेखक हैं शिरीष थोटे। इसे स्क्रिप्ट में नीरज पांडेय और रितेश ने मिल कर बदला है जबकि निर्देशन दिया है भव धूलिया ने। ये धूलिया साहब नीरज पांडे से इस कदर प्रभावित हैं कि आपको लगातार लगता रहता है कि उनका तो नाम दे दिय़ा गया है, काम नीरज पांडे का ही है। ‘स्कैम 2003’ की तरह ‘द फ्रीलांसर’ भी अभी आपको आधी ही देखने को मिलेगी। इसका दूसरा भाग बाद में आएगा। यह कुछ नया मामला है। दो बड़े फिल्मकारों की वेब सीरीज़ अलग-अलग ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ हुई हैं और दोनों ही अधूरी हैं। मतलब उनमें मौजूदा कहानी पूरी नहीं होती। क्या यह ओटीटी बिजनेस का कोई नया हथकंडा है? या केवल पहले से मुकाबले के लिए दूसरे ने भी अधूरी सीरीज़ ही रिलीज़ कर दी?

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Published by सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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