डेमोक्रेट हार के कारणों का विश्लेषण करेंगे। वहां के अख़बार भी करेंगे। न्यूज चैनल भी। समाज विज्ञानी भी। ठोस चीजें निकलकर सामने आएगी। हो सकता है उसके पीछे महिला विरोध, गैर श्वेत से नफरत और भी कारण हों। वैसे यह एक अवसर था जिसमें गैर श्वेत और महिला दोनों कवर होते थे। मगर डेमोक्रेटस के कमजोर चुनाव प्रबंध की वजह से नहीं हो पाया। ट्रंप अमेरिकियों के लिए मजबूरी का सौदा है।
शकील अख्तर
अमेरिका में क्या सिद्ध हुआ है? ट्रंप पसंद नहीं मगर सामने कोई थानहीं। यह ट्रंप की जीत नहीं बल्कि डेमोक्रेटस की हार है। कमजोर बाइडन को प्रत्याशी बनाना और जब उन्होंने अपनी बढ़ती उम्र और घटती याददाश्त से सारा चुनाव खराब कर दिया तब लास्ट मिनट में कमला हैरिस को लाना। कमला हैरिस ने अच्छा चुनाव लड़ा। मगर उनके पास समय कम था और ट्रंप के झूठ और बदतमीजी का मुकाबला करना एक सभ्य महिला के लिए बहुत मुश्किल।
जो ट्रंप पिछला चुनाव हार कर उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। अपने समर्थकों को संसद में घुसा दिया था अमेरिका के तीन सौ साल पुराने लोकतंत्र का मजाक बना दिया था उन्हें फिर से चुना जा रहा है। इसका विश्लेषण होगा। बारीक होगा। हमारे यहां जैसा नहीं है कि मोदी की जीत को उनकी बड़ी लोकप्रियता बता दिया जाता है।
हमारे यहां तो स्थिति इतनी खराब है कि राजनीतिक विश्लेषक, समाजविज्ञानी तो विश्लेषण करते ही नहीं है विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस भी नहीं करती।
वह ललगातार तीसरा चुनाव हारी है। और तीसरी बार भी सौ को क्रास नहीं कर पाई है। मगर क्या अभी तक उसका कोई इन्टरनल रिव्यू पेपर भी बना? नहीं! कोई आन्तरिक समीक्षा? नहीं।
मिलिट्री साइंस (सैन्य विज्ञान) में जीत के तरीकों से ज्यादा हार से सबक सीखने का पाठ पढ़ाया जाता है।
चलिए छोड़िए 2014 के लोकसभा चुनाव को जिसके बाद हमने लिखा था कि पत्ता भी नहीं खड़केगा! कांग्रेस के शर्मनाक 48 पर गिर जाने के बाद भी। इस बार मोदी 240 पर रूक गए। कांग्रेस 100 से पहले। मगर सहयोगियों के साथ उसने 234 सीटें ले लीं। एक माहौल बन गया। मोदी को हराया जा सकता। भाजपा भी दबाव में आ गई। प्रधानमंत्री मोदी बुझे बुझे से दिखने लगे। हरियाणा में कम गए।
मगर जीती बाजी हरवाने में महारत रखने वाले कांग्रेसियों ने हरियाणा बीजेपी को गिफ्ट कर दिया। ऐसी हार जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। और ऐसी जीत जिसके बारे में भाजपा ने सपने में भी नहीं सोचा था। ईवीएम में गड़बड़ी है। सब कहते हैं। कांग्रेस तो बस यही यही कह रही थी। मगर खुद उसकी गलतियां भी कम नहीं थीं।
अगर बेट्समेन के पांव (पेड) पर बाल नहीं लगेगी तो अंपायर एलबीडब्ल्यू दे नहीं सकता। यहां कांग्रेसी तो सीधे स्टंप पर आ रही बाल को पेड करके ( पांव से रोककर) कहते हैं अंपायर ने आउट दे दिया। जिस किस्म की भयानक गुटबाजी वहां कांग्रेसियों ने की उसने भाजपा का या जिसे आजकल भाजपा का सहयोगी संगठन कहते हैं चुनाव आयोग उसका काम आसान कर दिया।
एक समय में पाकिस्तान के अंपायर इतने बदनाम हो गए थे कि बाल कहीं भी जा रही हो, आफ स्टंप से कितनी ही बाहर हो पेड के पास से निकलने पर भी उंगली उठा देते थे। ऐसे में स्कोर वही बेट्समेन कर पाते थे जो बाल पेड पर आने ही नहीं देते थे। डेड बाल को भी किक नहीं करते थे।
कांग्रेसी और उनके भी अंध समर्थक हैं यह भूल जाते हैं कि चुनाव आयोग यह सब करेगा। वह क्या आज सारे इन्सटिट्यूशन मोदी के इशारे पर काम कर रहे हैं। भारत का चीफ जस्टिस रोज सफाइयां दे रहा है। क्या पहले कभी ऐसा देखा चीफ जस्टिस तो बड़ी चीज है किसी राज्य का चीफ सैकेट्री भी इस तरह सफाइयां नहीं देता है। जब न्याय खुद ही अपने आप पर शंका करने लगे तो समझ लीजिए की बाकी संस्थाओं का क्या हाल होगा।
तो इन्हीं परिस्थितियों में कांग्रेस और विपक्ष का काम करना होगा। तब तक जब तक कि मोदी को नहीं हटा देते। मोदी है तो यह चुनाव आयोग ऐसा ही रहेगा। खराब और ज्यादा हो सकता है। कभी मतदान से पहले ही चुनाव नतीजे भी घोषित कर सकता है। समझ गए! समझ गए ! जनता ने अपना मन बता दिया। बेकार की
एक्सरसाइज से कोई फायदा नहीं। यह रहा रिजल्ट! अभी मतदान की तारीखें घोषित होने के बाद रोज बदल ही रहे हैं ना! पहले हरियाणा की बदलीं। अभी विधानसभा के उपचुनावों की। तारीख बदलते बदलते कुछ भी कर सकते हैं।
तो इन्हीं हालातों में चुनाव लड़ना है। और वही बात याद रखना है कि बाल पेड से लगने न पाए। इतना साफ खेलो की अंपायर गालियां देने लगे। सर्वे समीक्षा करो। आफिस में बैठो। तेलंगाना, कर्नाटक कैसे जीत गए?
राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ अभी हरियाणा क्यों हारे? जम्मू में क्यों हारे? यूपी में क्यों जीते?
सब का पाइंट टू पाइंट विष्लेषण। यह सुनील कानुगोले इतना पैसा ले रहा है।
काहे कि लिए? चुनाव तो सारे हरवा दिए इसने। अब कहो कि हार के कारणों पर एक स्टडी तो करे। खुद के बारे में न लिखे। मगर बाकी कारण तो तथ्यों, उदाहरणों के साथ बताए। प्रशांत किशोर ने तो बता दिया कि वह सौ सौ करोड़ रूपए लेता था। और कह रहा है कि इतना पैसा मिला कि पार्टी चलाने चुनाव लड़ने में कोई परेशानी नहीं है।
कांग्रेस इसी पर विचार कर ले कि प्रशांत किशोर, सुनील कानुगोले और भी कुछ होंगे को इतना पैसा देकर क्या फायदा हुआ? और अगर यही चुनाव जीताने वाले हैं, जो कि जिताते नहीं है तो फिर कांग्रेसी क्या करते हैं? इनका क्या उपयोग है?
केवल यही कि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अर्नब गोस्वामी को राहुल का इंटरव्यू करवा दिया। और अभी राहुल का लेख एक ऐसे हिन्दी अख़बार में छपवाया जो खुले आम बीजेपी संघ का समर्थक है और राहुल कांग्रेस का घोर विरोधी। ऐसे अख़बार को विश्वसनीयता देकर कांग्रेसी क्या साबित करना चाहते हैं?
कभी गोदी मीडिया का बहिष्कार करते हैं। लेकिन उसी दौरान इनके कई बड़े नेता उन्हें अपने जहाज में घुमाते हैं, सार्वजनिक लंच में बुलाते हैं। अपने साथ फोटो खिंचाकर अपने ट्वीटर हेंडल पर डालकर गौरवान्वित होते हैं।
एक नेता तो इसलिए परेशान थे कि एक एंकर के बाथरुम का काम पूरा नहीं हो रहा है। और आप लोग कहते हैं कि इस गोदी मीडिया को बहुत पैसे मिलते हैं।
नेता किसी पत्रकार की किताबों की अलमारी टूटी होने की बात कहे तो समझ में आता है मगर लक्जिरियस बाथरूम के लिए मदद! यह कांग्रेसी ही कर सकता है। और फिर उसे बनने वाले शाही महल के उद्घाटन में बुलाया भी नहीं जाता। क्योंकि पत्रकारिता, एंकरिंग जिनकी सेवा के लिए है वे नाराज हो सकते थे।
खैर! डेमोक्रेट हार के कारणों का विश्लेषण करेंगे। वहां के अख़बार भी करेंगे। न्यूज चैनल भी। समाज विज्ञानी भी। ठोस चीजें निकलकर सामने आएगी। हो सकता है उसके पीछे महिला विरोध, गैर श्वेत से नफरत और भी कारण हों। वैसे 235 साल के इतिहास में अभी तक कोई महिला वहां राष्ट्रपति नहीं बनी है। इससे पहले श्वेत हैलरी क्लिंटन भी हार चुकी हैं। और ब्लैक तो पहले बराक ओबामा ही बने थे। उनके पहले और बाद में कोई नहीं।
यह एक अवसर था जिसमें गैर श्वेत और महिला दोनों कवर होते थे। मगर डेमोक्रेटस के कमजोर चुनाव प्रबंध की वजह से नहीं हो पाया। ट्रंप अमेरिकियों के लिए मजबूरी का सौदा है।
क्या भारत में भी मोदी मजबूरी हैं? इसका जवाब मीडिया, चुनाव विश्लेषक, प्रबंधक कोई नहीं देगा। कांग्रेस को ही स्टडी करके देना होगा। हरियाणा बेस्ट स्टडी केस है।
बिना हार के कारणों को समझे कोई फौज जीत का इतिहास नहीं लिख सकती। तीन लगातार लोकसभा हारना बहुत बड़ी बात है। साथ ही कई विधानसभा। जिसमें कई हारने वाले नहीं थे।
कांग्रेस में हैं कई पढ़े लिखे समझदार प्रतिबद्ध लोग। राहुल को उन्हें पहचानना होगा। ऐसी स्टडी के काम में लगाना होगा। उसमें यह भी तरीका निकल कर आएगा कि चुनाव आयोग की धांधलियों को काफी हद तक कैसे रोका जा सकता है। राहुल को कांग्रेस को काम करने का तरीका पूरा बदलने की जरूरत है।