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विश्व खाद्य दिवस: एक अहम चिंता : 83 करोड़ भूखे पेट सो रहें …?

भोपाल। भारत सहित पूरे एशिया में अब भूख विकराल रूप धारण कर सामने आ रही है, इसके लिए और कोई नहीं हम स्वयं दोषी हैं, जिन्होंने न सिर्फ हमारी 80% खेतीहर जमीन पर सीमेंट के जंगल खड़े कर लिए, बल्कि हमारे बच्चे पैदा करने की क्षमता पर भी नियंत्रण नहीं किया, फलस्वरुप जनसंख्या बढ़ती गई और खेती की जमीन पर बहुमंजिला बिल्डिंग में खड़ी करते रहे, भारत सहित पूरे एशिया में खाद्य समस्या विकराल होने का यही एकमात्र कारण है।

आज स्थिति यह है कि एक और जहां खाद्य सामग्री के अभाव में पूरी दुनिया में 83 करोड लोग भूखे पेट सो रहे हैं, तो दूसरी ओर 10 करोड़ हेक्टेयर खेत खाली पड़े हैं, इस कारण पिछले कुछ ही समय में दुनिया में इस्तेमाल न होने वाली जमीन में 25 फ़ीसदी का इजाफा हो गया।

विश्व में सबसे अधिक खाली पड़ी जमीन एशिया में है, जो पूरी दुनिया की जमीन का एक तिहाई हिस्सा है, दूसरे क्रम पर यूरोप है, यदि विश्व में खाली पड़ी इस जमीन का 60 फ़ीसदी हिस्सा भी उपयोग में ले लिया जाए और इस पर खेती की जाए तो दुनिया के 48 करोड़ भूखे लोगों को भोजन उपलब्ध हो सकता है। दुनिया में सबसे अधिक खाली जमीन 124 करोड़ हेक्टेयर रूस में है, चीन में 67 लाख, ब्राजील में 54 लाख जमीन खाली पड़ी है, वैज्ञानिकों ने इसे छोड़े जाने के लिए जमीन की गुणवत्ता में कमी, सामाजिक बदलाव, आपदा तथा संघर्ष जैसे कारणों को जिम्मेदार बताया है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि इस छोड़ी गई खेती की जमीन में से 6.1 करोड़ हेक्टेयर यानी करीब 60 फ़ीसदी जमीन का खेती के लिए दोबारा उपयोग किया जा सकता है दोबारा खेती करके हर वर्ग 363 पेटा कैलोरी की अतिरिक्त खाद्य सामग्री भी आपूर्ति की जा सकती है जो हर वर्ष करीब 48 करोड़ लोगों का पेट भर सकती है। रिसर्च के मुताबिक हर जमीन में से 11 फ़ीसदी जमीन ऐसी है जिस पर केवल खेती ही की जा सकती है, जबकि 33 फीसदी ऐसी है जो केवल वन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, वहीं 7 फीसदी ऐसी है जो दोनों ही कार्यों के लिए अनुपयुक्त है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर किए जा रहे प्रयासों के बावजूद 2021 में दुनिया की 9.8 फ़ीसदी आबादी कुपोषित और खाने की कमी से जूझ रही है, यानी अभी भी करीब 82.08 करोड़ लोगों के लिए पर्याप्त भोजन की व्यवस्था नहीं है, दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर हर साल औसतन 36 लाख हेक्टेयर से ज्यादा कृषि जमीन को खाली छोड़ दिया जाता है, यह वो जमीन है जिस पर खेती की जा सकती थी, खाली छोड़े जाने से धीरे-धीरे इस जमीन की गुणवत्ता में कमी आने लगी, भू स्थानिक आंकड़ों के विश्लेषण से यह पता चलता है कि वैश्विक स्तर पर कुल 10.3 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि को ऐसे ही खाली छोड़ दिया गया है, जो आकार में 1992 की कुल कृषि भूमि के करीब सात फीसदी के बराबर है।

नेशनल यूनिवर्सिटी सिंगापुर के सहयोग से वैश्विक स्तर पर हुए इस अध्ययन की रिपोर्ट एक पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित हुई है, जिसमें इन तथ्यों का खुलासा किया गया है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा खाली जमीन एशिया में छोड़ी गई है, जो करीब 3.3 करोड़ हेक्टेयर है, यह विश्व की कुल खाली जमीन का एक तिहाई हिस्सा है, इसके बाद यूरोप में 2.2 करोड़ हेक्टर, अमेरिका में 1.9 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि को खाली छोड़ दिया गया है, 2020 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक तब दुनिया भर में 8 करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा कृषि भूमि खाली पड़ी थी, यानी तबसे गैर उपयोगी जमीन में 25 फ़ीसदी का इजाफा हो गया। इस शोध से यह भी पता चला है कि इस खाली पड़ी जमीन के 75 फ़ीसदी भाग पर खेती हो सकती है या फिर उसका उपयोग नए जंगल विकसित करने पर भी हो सकता है।

यह नतीजे दर्शाते हैं कि यदि इस जमीन पर पेड़ लगाए जाए तो उस पर बसे जंगल सालाना करीब 108.6 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकते हैं, यह जापान के कुल वार्षिक उत्सर्जन जितना होगा, एसे में यह जलवायु में आते बदलावों और बढ़ते तापमान की रोकथाम की दृष्टिकोण से भी फायदेमंद होगा।

पर, पर्यावरण, शुद्ध हवा, वातावरण से भी जरूरी खाद्य सामग्री है, जिसकी कमी इस खाली पड़ी जमीन पर अन्न पैदा कर की जा सकती है, क्योंकि आज की विश्व की सबसे बड़ी और अहम समस्या यही है।

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