अग्निजन्य प्रदूषण को देवयजन अग्नि के माध्यम से दूर किया जा सकता है। सामान्यतया समस्त प्रकार के प्रदूषण अग्नि के माध्यम से दूर किये जा सकते हैं, लेकिन जब अग्नि ही प्रदूषित हो जाए तो उसको दूर करने का उपाय अग्नि ही है, ऐसा वेद का अभिमत है। अथर्ववेद के प्रथम मन्त्र 1/1/1 के अनुसार पर्यावरण की दृष्टि से इक्कीस तत्त्वों का संरक्षण अपेक्षित है। इक्कीस तत्त्व समस्त रूपों को धारण करके चारों ओर विचरण करते हैं, वाचस्पति देव की कृपा से ये शरीर में स्थित होते हैं।
16 सितम्बर- विश्व ओज़ोन परत संरक्षण दिवस
पाश्चात्य विज्ञान के अनुसार ओजोन की परत की खोज 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की थी, लेकिन हैरतअंगेज सत्य यह है कि संसार के सर्वप्राचीन ग्रंथ वेद में भी जरायु के समान प्रकृति को आच्छादित करने वाली अत्यधिक स्थूल वर्तमान के ओज़ोन परत सरीखी आवरण का वर्णन उल्लिखित है। परमेश्वरोक्त ग्रंथ ऋग्वेद और अथर्ववेद में भूमि के चारों ओर विद्यमान ओजोन परत का उल्लेख प्राप्त होता है। पर्यावरण प्रदूषण से स्वाभाविक और सहज रूप से मुक्ति दिलाने वाले तत्त्व -प्राकृतिक सम्पदाओं से सम्पन्न हरे भरे पर्वत, जल, वायु, मेघ और अग्नि हैं।
सामान्य रूप से आज भी प्रकृति प्रदूषणजन्य विकृतियों का स्वत: शमन करती है। ये ऐसे उपाय हैं जो क्रव्याद (जिसमें शरीर का मांस सूख जाता है) ऐसे भयंकर प्रदूषण का भी शमन करने में सक्षम हैं। माता के द्वारा अपने शिशु के निर्बाध विकास के लिए अनेक उपाय किए जाने की भांति ही प्रकृति ने भी जीव जगत की सुरक्षा के लिए अनेक आवरणों का निर्माण कर रखा है। इनमें से ओजोन नामक आवरण से प्रमुख है। अथर्ववेद में ओजोन सरीखी आवरण का वर्णन करते हुए कहा गया है-
आपो वत्सं जनयन्तीर्गर्भं अग्रे सं ऐरयन् ।
तस्योत जायमानस्योल्ब आसीद्धिरण्ययः कस्मै देवाय हविषा विधेम।।
-अथर्ववेद 4/2/8
अर्थात -जब प्रकृति ने जल रूप वत्स को गर्भ में धारण किया, उस समय उसको उल्ब अर्थात गर्भस्थ शिशु को घेरने वाली झिल्ली के समान एक आवरण घेरे हुए था, इस आवरण का वर्ण हिरण्यय अर्थात पीत या लोहित के समान रक्ताभ था। इस मंत्र में सूर्यकिरणजन्य प्रभाव को वर्ण के रूप में उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद में उक्त आवरण के आकार का वर्णन करते हुए कहा गया है-
महत्तदुल्बं स्थविरं तदासीद्येनाविष्टितः प्रविवेशिथापः।- ऋग्वेद 10/51/1
अर्थात-वह जरायु के समान प्रकृति को आच्छादित करने वाली परत अत्यधिक स्थूल है और इस परत के साथ जल प्रविष्ट है। यह तथ्य विज्ञान से भी प्रमाणित हो जाता है। वर्तमान विज्ञान के अनुसार भी ओजोन का सम्बन्ध ऑक्सीजन से है और इस प्राणवायु का आधार जलतत्त्व है, परन्तु वेद के ये मंत्र पृथ्वी को आवृत करने वाली ओजोन परत के साथ जलतत्त्व प्रविष्ट कहकर वैज्ञानिक सत्य को प्रतिपादित कर रहे हैं।
अथर्ववेद के अनुसार जल, वायु, औषधि अर्थात वनस्पति और अग्नि छन्दस् (अथर्ववेद 18/1/17) अर्थात परिधि, वर्तमान का पर्यावरण के मुख्य घटक हैं। जिस प्रकार पर्यावरण शब्द चारों ओर से आवृत करने के कारण पड़ा है, उसी प्रकार का अर्थ छन्दस् का भी है-जो सब प्रकार से आच्छादित किये हुए है, उसको अथर्ववेद 18/1/17 में छन्दस् (छन्दस) कहा गया है। जैमिनीय ब्राह्मण 1/128 के अनुसार देवताओं ने छन्दस् से मृत्यु अर्थात पाप को आच्छादित किया, इसलिए यह छन्दस् कहा जाता है। यह प्रदूषण मृत्यु का कारण है, इसे छन्दस् के द्वारा रोका जा सकता है। इसके आवरण से प्रदूषण अवरुद्ध होता है। अथर्ववेद12/2/8 में अग्नि को प्रदूषण का कारक मानते हुए तीन प्रकार की अग्नियों का उल्लेख किया गया है- क्रव्याद, अक्रव्याद और देवयजन। इनमें से अक्रव्याद अग्नि एक सामान्य भौतिक अग्नि है। देवयजन अग्नि यज्ञाग्नि है, जिसके द्वारा यजन किया जाता है। और क्रव्याद अग्नि वह है, जो प्राणी के मांस का भक्षण कर जाती है, जिसके द्वारा व्यक्ति नाना प्रकार के असाध्य यक्ष्मा सदृश रोगों से आक्रान्त होता है। इस अग्नि को वेद क्रव्याद अर्थात मांस का भक्षण करने वाली कहता है। इसके प्रभाव से प्राणिजगत प्रभावित न हो, इसलिए देवयजन अग्नि को करने का विधान है-
अग्ने अक्रव्यान्निः क्रव्यादं नुदा देवयजनं वह।।- अथर्ववेद 12/2/42
इस प्रकार स्पष्ट है कि अग्निजन्य प्रदूषण को देवयजन अग्नि के माध्यम से दूर किया जा सकता है। सामान्यतया समस्त प्रकार के प्रदूषण अग्नि के माध्यम से दूर किये जा सकते हैं, लेकिन जब अग्नि ही प्रदूषित हो जाए तो उसको दूर करने का उपाय अग्नि ही है, ऐसा वेद का अभिमत है। अथर्ववेद के प्रथम मन्त्र 1/1/1 के अनुसार पर्यावरण की दृष्टि से इक्कीस तत्त्वों का संरक्षण अपेक्षित है। इक्कीस तत्त्व समस्त रूपों को धारण करके चारों ओर विचरण करते हैं, वाचस्पति देव की कृपा से ये शरीर में स्थित होते हैं। इसमें इक्कीस तत्त्वों को पर्यावरण का आधार मानते हुए कहा गया है कि महत्, अहंकार और पञ्चतन्मात्रा (शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध)ये मिलकर सात होते हैं और ये सात तत्त्व ही सत्व, रजस् और तमस् के भेद से इक्कीस हो जाते हैं। समस्त रूपमय संसार इन्हीं पर आश्रित है। ये सात तत्त्व ही मूल रूप से पर्यावरण का आधार बनते हैं। अमूर्त को मूर्त होने की प्रक्रिया के ये सात पड़ाव हैं।
निराकार प्रकृति महत से आकार लेना प्रारम्भ करती है और पञ्चतन्मात्रा तक पहुंचते-पहुँचते उसकी यह प्रक्रिया पूर्ण हो जाती है। चेतनसत्ता के साथ अभिन्न रूप से सम्पृक्त रूपात्मक जगत जिन तत्त्वों से बनता है, उनमें विकृति आने के जो कारक हैं, वे ही पर्यावरण प्रदूषण के कारक हैं। इस प्रकार अथर्ववेद सात तत्त्वों को पुष्ट करने के लिए प्रार्थना करता है। उपर्युक्त सात तत्त्वों में विकृति आने से पर्यावरण प्रदूषण का जन्म होता है, तब उनके निवारण अर्थात समाधान अथर्ववेद के प्रथम मन्त्र में देते हुए बताया है कि वाचस्पति ही इन तत्त्वों को पुष्टकर हमारे शरीर में बनाये रखते हैं। वैदिक मतानुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का प्रारम्भ ध्वनि से होता है, यहाँ तक कि जीवन की आधारभूत इकाई वायु भी ध्वनि के कारण अस्तित्व में आती है। इसलिए समस्त प्रकार के प्रदूषण ध्वनि से शमन किये जा सकते हैं।
आदि सृष्टि काल में ही वेद में उल्लिखित इस जरायु के समान प्रकृति को आच्छादित करने वाली अत्यधिक स्थूल ओजोन परत सरीखी आवरण के सत्य से आधुनिक विज्ञान का सामना 1913 ईस्वी में हुआ, जब ओजोन की परत की खोज की घोषणा 1913 में फ्रांस के भौतिकविदों फैबरी चार्ल्स और हेनरी बुसोन ने की। पाश्चात्य विज्ञान में भी वेद में अंकित वर्णन के समान ही कहा गया है कि पृथ्वी के वायुमंडल की एक ऐसी परत, जिसमें ओजोन गैस की सघनता अपेक्षाकृत अधिक होती है, ओज़ोन परत कहते हैं। इस ओज़ोन परत के कारण ही धरती पर जीवन संभव है। पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक सूर्य के उच्च आवृत्ति के पराबैंगनी प्रकाश की 90-99 % मात्रा यह परत अवशोषित कर लेती है।
सूर्य का प्रकाश ओजोन परत से छनकर ही पृथ्वी पर पहुंचता हैं। यह खतरनाक पराबैंगनी विकिरण को पृथ्वी की सतह पर पहुंचने से रोकती है और इससे हमारे ग्रह पर जीवन सुरक्षित रहता है। ओज़ोन हल्के नीले रंग की गंधयुक्त गैस होती है। ओज़ोन परत में ओज़ोन गैस की मात्रा अधिक पाई जाती है। पृथ्वी के वायुमंडल का 91% से अधिक ओज़ोन यहां मौजूद है। ओज़ोन ऑक्सीजन का ही एक प्रकार है और इसे O3 के संकेत से प्रदर्शित किया जाता है। ऑक्सीजन के जब तीन परमाणु(अल्फा पराबैंगनी विकिरण के साथ) आपस में जुड़ते है तो ओज़ोन परत बनाते है। एक ओजोन एक परत है जो पृथ्वी के समताप मंडल के ऊपर मध्य मंडल के नीचे दोनों के बीच में है यह सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से हमारी रक्षा करता है रक्षा करता है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में तीव्र गति से चलने वाली वायुयान से निकलने वाले नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं वातानुकूलक तथा प्रति शतक आदि में से निकलने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों से ओजोन मंडल नष्ट हो रहा है।
इसके प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष 16 सितम्बर के दिन को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह सत्य है कि क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स (सीएफसी) और दूसरे पदार्थ उस ओजोन परत में छिद्र कर रहे हैं जिसने हमारी पृथ्वी को अपनी सुरक्षा की चादर से ढंका हुआ है, तो विश्व के कोने-कोने में लोगों ने दृढ़ संकल्प के साथ इन पदार्थों पर प्रतिबंध लगाया है, लेकिन यह अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सका है। यदि समय रहते ओजोन परत को बचाने हेतु कारगर प्रयास नहीं किए गए तो परिणाम भयानक हो सकता हैं।