देश की राजनीति और समाज में सब कुछ बदल गया है! सारी चीजें नकली और दिखावे वाली हो गई हैं! दिखावे का दुख है, दिखावे के आंसू हैं, दिखावे का गुस्सा है, दिखावे का प्यार है और यहां तक कि अर्थव्यवस्था के आंकड़े भी दिखावे के हैं, नकली हैं या आधे अधूरे हैं। जिन आंकड़ों को हार्ड फैक्ट कहा जाता है वह भी फैक्ट नहीं होकर नकली है। उपलब्धियों का झूठा बखान है और लोगों का कल्याण कर देने, देश को बदल देने का झूठा आख्यान है। ऐसा नहीं है कि नेता पहले सत्यवादी हरिश्चंद्र होते थे और झूठ की शुरुआत अभी हुई है। लेकिन पहले सच और झूठ का, असली और नकली का एक संतुलित अनुपात होता था। अब वह अनुपात बिगड़ गया है। अब धीरे धीरे सच की मात्रा घटते घटते लुप्त हो गई है। अब सिर्फ झूठ चल रहा है। अब सिर्फ झूठे नैरेटिव हैं, झूठी कहानियां और झूठे दावे हैं।
राज्यसभा में पिछले दिनों कांग्रेस सांसद अमी याज्ञनिक ने पूछ दिया कि मणिपुर में महिलाओं के साथ हुए दुर्व्यवहार पर महिला व बाल विकास मंत्री कुछ क्यों नहीं बोल रही हैं तो महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का जो रौद्र रूप दिखा वह हैरान करने वाला था। उनका गुस्सा, उनका चीखना-चिल्लाना सब नकली था, दिखावा था और अभिनय के लंबे प्रयास से साधा हुआ था। वह उतना ही नकली था, जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मणिपुर के मसले पर दुख जताना था, जिसे लेकर ‘द टेलीग्राफ’ अखबार ने घड़ियाली आंसू की हेडिंग बनाई थी। मणिपुर में करीब तीन महीने से हिंसा चल रही है। सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं, हजारों लोग विस्थापित हुए हैं और राहत शिविरों में रह रहे हैं। महिलाओं पर अत्याचार की सैकड़ों घटनाएं हुई हैं, जैसा कि खुद भाजपा के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा। निश्चित रूप से प्रधानमंत्री और महिला व बाल विकास मंत्री को इसकी जानकारी मिलती होगी। लेकिन 77 दिन में न प्रधानमंत्री ने एक बार दुख जताया और न महिला व बाल विकास मंत्री का गुस्सा दिखा। दुख और गुस्सा तब दिखा, जब वायरल वीडियो से दुनिया में बदनामी होने लगी और सवाल पूछा जाने लगा।
लेकिन वह दुख और गुस्सा भी कई शर्तों के साथ है। इन सवालों के साथ कि आप बंगाल पर क्यों नहीं बोलते या आप राजस्थान पर क्यों नहीं बोलते या आप तब कहां थे, जब अमुक जगह ऐसी ही घटना हुई थी? सोचें, क्या किसी मानवीय त्रासदी के समय ऐसे सवाल पूछे जा सकते हैं? पर आज हर घटना के बाद यह सवाल पूछा जाता है। पहले किसी भी मानवीय या प्राकृतिक त्रासदी के बाद की प्रतिक्रिया स्वाभाविक होती थी, उस पर स्वाभाविक रूप से चर्चा होती थी और सहज भाव से दुख प्रकट किया जाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होता है। अब सब कुछ नकली होता है। इन शर्तों के साथ होता है कि आप मणिपुर पर चर्चा कराना चाहते हैं तो हम उसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल भी जोड़ कर चर्चा कराएंगे। सोचें, क्या लोकतंत्र इस तरह काम करता है कि तुम हमारे शासन वाले राज्य की मानवीय त्रासदी का जिक्र मत करो वरना हम तुमको भी कठघरे में खड़ा करेंगे?
असल में राजनीति में कुछ भी स्वाभाविक रूप से होता नहीं दिख रहा है। संसद में सब कुछ मशीनी अंदाजा में हो रहा है। विपक्ष चाहे कितना भी बड़ा मुद्दा उठाए लेकिन पीठासीन अधिकारी उसे महत्व नहीं देंगे। वे सरकार का मुंह देखते रहते हैं। संवैधानिक और वैधानिक पदों पर बैठे लोगों के पास भी असली ताकत नहीं है। सब एक व्यक्ति की आभासी ताकत से काम करते हुए हैं। मीडिया की संसद कवरेज को सीमित कर दिया गया है। सांसद मीडिया से बात नहीं करते हैं और यहां तक कि आपस में भी खुल कर बात नहीं कर सकते हैं। सब इस डर में हैं कि उन पर नजर रखी जा रही है और कहीं मीडिया या किसी दूसरी पार्टी के सांसद से बात करते देख लिए गए तो मुश्किल हो जाएगी। सत्तारूढ़ दल के सांसदों के हंसते-मुस्कुराते चेहरे संसद में देखने को नहीं मिलते हैं। सब नकली गंभीरता ओढ़े हुए रहते हैं।
और तो और अर्थव्यवस्था और विकास के आंकड़े भी असली नहीं है। सरकार संसद के बाहर कुछ दूसरा आंकड़ा देती है और संसद के अंदर कुछ और कहती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी हाल के अपने विदेश दौरे में कहा कि देश में हर साल एक आईआईटी और एक आईआईएम बन रहे हैं, जबकि संसद में एक सवाल के जवाब में सरकार ने कहा कि पिछले पांच साल से कोई आईआईटी या आईआईएम नहीं बना है। पिछले नौ साल में इनकी संख्या जरूर बढ़ गई है लेकिन कहीं इमारत पूरी नहीं है तो कहीं फैकल्टी पूरी नहीं है। दिखावे के लिए हवाईअड्डों के उद्घाटन हो रहे हैं और पहली बारिश में वहां का निर्माण टूट कर गिर रहा है। विश्वस्तरीय हवाईअड्डे बनाए जा रहे हैं और पहली बारिश में वहां नाव चलने की स्थिति पैदा हो जा रही है। डेढ़ महीने बाद दुनिया भर के नेताओं की दिल्ली में मेजबानी करनी है लेकिन जरा सी बारिश में पूरी दिल्ली ठप्प हो जा रही है। दावा विश्वगुरू बनने का है लेकिन राजधानी तक में बेसिक सुविधाएं नहीं हैं।
झूठे वादों और गारंटियों पर राजनीति है। पिछले ही साल देश के सभी नागरिकों को अपनी छत मिल जानी थी। किसानों की आय दोगुनी हो जानी थी। एक सौ स्मार्ट सिटी बन जाने वाले थे। नौ साल में 18 करोड़ लोगों को रोजगार मिल जाने थे लेकिन चुनावी साल में रोजगार मेला लगा कर 10 लाख नियुक्ति पत्र बांटने का धारावाहिक चल रहा है। भारत को 2047 में विकसित देश बनाने का वादा किया जा रहा है। दस साल में जो वादे पूरे नहीं हुए हैं उनके बारे में कोई पूछने वाला नहीं है। ऊपर से गारंटी यह कि मेरे तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया का तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। अगर नोटबंदी नहीं हुई थी और कोरोना के समय अर्थव्यवस्था का कुप्रबंधन नहीं हुआ होता तो पिछले ही साल भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाता। अब जबकि सारे आंकड़े बता रहे हैं कि कछुए की रफ्तार से भी चलते रहे तो 2027 में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएंगे तो उसकी गारंटी दी जा रही है!