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हर कदम चुनाव के रास्ते

भारत में पहले चुनाव के समय चुनाव होता था और बाकी समय में चुनी हुई सरकारें कामकाज करती थीं। लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब सिर्फ चुनाव के समय चुनाव नहीं होता है, बल्कि सालों भर चुनाव चलता रहता है। सारे काम चुनाव के लिहाज से किए जाते हैं और सारे समय भाषण व रैलियां चुनावी अंदाज में होती हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्री सरकारी कार्यक्रमों में भी चुनावी भाषण देते हैं। संसद से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच तक से प्रधानमंत्री राजनीतिक भाषण करते हैं। अपने विपक्षियों को निशाना बनाते हैं। पिछली सरकारों को नकारा और निकम्मा ठहराते हैं। अपनी उपलब्धियां बताते हैं। कहीं कोई भी घटना हो तो यह विचार होता है कि इसका क्या चुनावी इस्तेमाल हो सकता है। हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक आपदा आई तो कहा जा रहा है कि आपदा तो केदारनाथ में आई थी और तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने कुछ काम नहीं किया था। वह आपदा में लोगों को बचा नहीं सकी और न उसके बाद बुनियादी ढांचे का विकास किया। वह सब मोदी की सरकार में हुआ है।

प्रधानमंत्री ने जनवरी 2023 में कह दिया कि अगले लोकसभा चुनाव में अब सिर्फ चार सौ दिन बचे हैं और भाजपा कार्यकर्ताओं को हर मतदाता के घर घर जाकर उससे मिलना चाहिए। सोचें, चार सौ दिन पहले से कौन चुनाव शुरू करता है। लेकिन भारत में चार सौ दिन पहले ही चुनाव की घोषणा हो गई। वैसे तो भाजपा में अब एक चुनाव के बाद ही अगले चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है लेकिन इस बार चार सौ दिन पहले ही चुनाव का बिगुल बजा दिया गया। उसके बाद हर कदम चुनाव के रास्ते में है। विदेश जा रहे हैं तो वहां प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन में राजनीतिक भाषण हैं और नेताओं से गले मिल कर या हाथ मिला कर भारत में विश्वगुरू होने का नैरेटिव बना रहे हैं। विदेश यात्रा से लौट रहे हैं तो हवाईअड्डे पर ऐसा स्वागत हो रहा है, जैसे कोई बहुत बड़ी जंग जीत कर लौटे हैं। लोकसभा चुनाव के साथ साथ राज्यों के चुनाव के हिसाब से अलग काम चल रहा होता है। राजस्थान में नवंबर-दिसंबर में चुनाव होना है तो उससे पहले पिछले छह महीने में प्रधानमंत्री सात बार राज्य का दौरा कर चुके हैं। हर बार कुछ बड़ी परियोजनाओं का शिलान्यास या उद्घाटन होता है और कांग्रेस के ऊपर हमला होता है।

समूचे राजनीतिक विमर्श और सरकारी कामकाज में चुनाव कितना अहम है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राम मंदिर का निर्माण और उद्घाटन भी चुनाव के हिसाब से होगा। मार्च में चुनाव की घोषणा होनी है तो जनवरी के अंत में अयोध्या में राममंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी। मंदिर समिति की ओर से प्रधानमंत्री को प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए आमंत्रित किया गया है। उनकी सुविधा के हिसाब से 14 से 24 जनवरी के बीच का कोई दिन तय किया जाएगा। इसी तरह फरवरी-मार्च 2022 में उत्तर प्रदेश का चुनाव होना था तो दिसंबर 2021 में काशी कॉरिडोर का उद्घाटन हुआ था। यहां तक कहा जा रहा है कि इटली और इंडोनेशिया से पहले भारत में जी-20 की सालाना बैठक होनी थी लेकिन इसे दो साल बढ़ा कर सितंबर 2023 में इसलिए कराया जा रहा है ताकि 2024 के चुनाव में विश्वगुरू का नैरेटिव बनाया जा सके।

सो, जो भी कदम है वह चुनाव की राह में है। प्रधानमंत्री ने इस साल चुनावी वर्ष में युवाओं को नियुक्ति पत्र बांटना शुरू किया है। पांच साल पहले चुनावी साल में किसानों को सम्मान निधि बांटना शुरू हुआ था। प्रधानमंत्री नियुक्ति पत्र बांट रहे हैं, प्रधानमंत्री सम्मान निधि बांट रहे हैं, प्रधानमंत्री आवास बांट रहे हैं, प्रधानमंत्री अनाज बांट रहे हैं ताकि नमकहलालों के वोट लिए जाएं, प्रधानमंत्री ट्रेनों को हरी झंडी दिखा रहे हैं, प्रधानमंत्री दुनिया के देशों में जाकर रक्षा सौदे कर रहे हैं, प्रधानमंत्री हवन-पूजन करके सरकारी इमारतों का उद्घाटन कर रहे हैं और प्रधानमंत्री ही मंदिरों का शिलान्यास व लोकार्पण कर रहे हैं। सब कुछ प्रधानमंत्री कर रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री के नाम पर चुनाव लड़ना है। प्रधानमंत्री को मणिपुर पर पीड़ा भी व्यक्त करनी है तो चुनावी राज्यों का जिक्र किए बगैर वह भी नहीं करना है। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई होगी तो वह भी भ्रष्टाचार रोकने के लिए नहीं, बल्कि विरोधियों को परेशान करने के लिए या उन्हें प्रेरित करने के लिए कि वे भाजपा के साथ जुड़ें। पिछले दिनों भारत और बांग्लादेश की महिला क्रिकेट टीम का मुकाबला हुआ, जिसमें अंपायर के गलत फैसले की वजह से मैच बराबरी पर छूटा तो संयुक्त रूप से ट्रॉफी उठाते हुए भारतीय कप्तान हरमनप्रीत ने बांग्लादेशी कप्तान से कहा कि अंपायर को भी बुला लो ट्रॉफी उठाने के लिए। उसी तरह भाजपा ने 38 पार्टियों का गठबंधन बनाया तो विपक्ष ने कहा कि सीबीआई, ईडी, आयकर विभाग को भी बुला लो क्योंकि असली सहयोगी तो वे हैं। सो, सरकार चुनाव के लिए है, सरकारी योजनाएं चुनाव के लिए हैं, सरकारी एजेंसियां चुनाव के लिए हैं, मुकदमे चुनाव के लिए हैं, मंदिर चुनाव के लिए हैं और सेना की कार्रवाइयां भी चुनाव के लिए हैं।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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