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हवाई चप्पल की विमान, ट्रेन व सड़क हरियाली!

प्रधानमंत्री मोदी ने सपना दिखाया था कि हवाई चप्पल वाला भी हवाई जहाज में उड़े। और हुआ क्या? वे खुद तो साढ़े आठ हजार करोड़ रुपए के हवाई जहाज में उड़ने लगे लेकिन दूसरी तरफ हकीकत है कि हवाई चप्पल वाला तो हवाई जहाज में नहीं बैठ सका पर जो हवाई जहाज में चलते थे वे भी हवाई चप्पल पर आ गए। एक के एक बाद एक बड़ी विमानन कंपनियां बंद हो गईं। जेट और गो एयर जैसी बड़ी कंपनियां बंद हुईं। उनके जहाज खड़े हो गए। दो कंपनियों का एकाधिकार अब पूरे विमानन उद्योग पर है। ये कंपनियां मनमाने तरीके से रूट तय करती हैं और मनमाने तरीके से किराया लेती हैं। यात्रियों की रक्षा का कोई उपाय किसी नियम के जरिए नहीं है। सब कुछ एल्गोरिदम पर आधारित है।

अगर किसी ने एक रूट पर किराया दो बार सर्च कर दिया तो किराया बढ़ कर डेढ़ गुना हो जाएगा। अगर किसी ने एक बार में रिटर्न टिकट लेने की बजाय एक तरफ की टिकट ली है तो वापसी की टिकट इतनी महंगी हो जाएगी की पसीने छूट जाएंगे। लगभग सभी विमानन सेवाएं सस्ती विमान सेवा के रूप में चल रही हैं, लेकिन उसमें भी किराया प्रीमियम से कम नहीं होता है। कुछ खाना है तो वह खरीदना पड़ेगा, चार गुना कीमत पर। प्रीमियमम क्लास में भी ग्राहक को खिचड़ी सर्व हो रही है! हवाईअड्डों पर हर चीज की कीमत किसी अच्छे मॉल की तुलना में भी तीन गुनी, चार गुनी है। पार्किंग के रेट मनमाने हैं। बैगेज पर अलग पाबंदियां बढ़ती जा रही हैं। किसी भी स्तर पर यात्रियों के हितों का ध्यान रखने की कोई व्यवस्था नहीं है। तमाम सरकारी एजेंसियां विमानन कंपनियों के हिसाब से काम कर रही हैं। और उनका हिसाब है यात्रियों को कितनी तरह से लूटना।

ऐसा नहीं है कि निजी कंपनियां विमान चला रही हैं इसलिए वहां समस्या है। ट्रेन तो सरकार खुद भी चला रही है लेकिन वहां और बुरी दशा है। सरकार का जोर प्रीमियम ट्रेन चलाने पर है लेकिन पता नहीं कैसे उसे दिख नहीं रहा है कि प्रीमियम ट्रेनें खाली चल रही हैं। अब वंदे भारत और तेजस की चर्चा नहीं है। बिहार चुनाव है तो अमृत भारत ट्रेन की चर्चा है। पिछले दिनों रेलवे ने तत्काल टिकट के नियमों में बदलाव किया कि पहले आधे घंटे तक एजेंट टिकट नहीं ले सकेंगे। आम लोगों को ही टिकट मिलेगी, जिनके आधार वेरिफाई किए जाएंगे। लेकिन उसका क्या फायदा हुआ? पहले आधे घंटे आईआरसीटीसी की साइट ही हैंग हो जा रही है या आधार ही वेरिफाई नहीं हो पा रहा है। यह सामान्य टिकटों में भी हो रहा है। महीनों पहले लोग टिकट की बुकिंग कराते हैं लेकिन जिस दिन बुकिंग शुरू होती है उस दिन ज्यादातर सामान्य यात्रियों को आईआरसीटीसी की साइट पर बुकिंग में समस्या आती है और दोबारा सिस्टम रिफ्रेश कर के वे बुकिंग के लिए जाते हैं तब तक वेटिंग आने लगती है।

ऐसा लाखों लोगों के साथ होता है। ऊपर से जब वेटिंग टिकट कैंसिल कराएं तो पैसे अलग से कट जाते हैं। यानी टिकट भी नहीं मिली  और पैसे भी कट गए। इसके बाद ज्यादा पैसे देकर एजेंट से टिकट खरीदने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है। ट्रेनों में हवाईजहाज की तरह डायनेमिक या फ्लेक्सी फेयर का कांसेप्ट लागू कर दिया है, जिसके बाद एक हजार रू की टिकट लोगों को दो हजार, ढाई हजार में मिलती है। इतनी महंगी टिकट लेने के बाद यात्रा पहले जैसी ही है। लेकिन रेल मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस देखें तो लगेगा कि सन 1853 में पहली ट्रेन चलने से भी बड़ी क्रांति पिछले 10 साल में हुई है।

सड़क परिवहन में सबसे ज्यादा मनभावक हरियाली याकि क्रांति का दावा है। हर जगह एक्सप्रेसवे की चर्चा है। पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने का जो लक्ष्य 2030 तक पूरा होना था वह 2025 में ही पूरा हो गया। भले लोग चिल्ला रहे हैं कि इथेनॉल मिलाने से गाड़ियों के इंजन पर असर हो रहा है और माइलेज भी कम हो रही है लेकिन सरकार कान में तेल डाल कर बैठी है। सबसे दिलचस्प यह है कि कीमत कम करने के लिए इथेनॉल मिलाना शुरू हुआ था। लेकिन कीमत  कम होने की बजाय अब तक के उच्चतम स्तर पर है। यानी कीमत कम नहीं हुई उलटे माइलेज कम होने से खर्च बढ़ गया और गाड़ियों के इंजन समय से पहले खराब होने लगे।

इन दिनों आयकर रिटर्न जल्दी दाखिल करने की रोज अपील जारी की जा रही है। कहा जा रहा है कि आप टैक्स देंगे तो हाईवे और एक्सप्रेसवे बनेंगे, देश के विकास में आपका योगदान होगा। लेकिन आय कर देने वाली एक मुर्गी छह बार हलाल हो रही है। एक बार आपने अपनी आय पर टैक्स दिया। फिर उस आय से गाड़ी खरीदी तो उस पर 28 फीसदी टैक्स दिया। उस गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराया तो वन टाइम रोड टैक्स दिया। गाड़ी का बीमा लिया तो उस पर टैक्स दिया, जो हर साल देना है। उसके बाद गाड़ी में पेट्रोल या डीजल डलवाया तो उस पर 43 फीसदी तक टैक्स दिया और ऊपर से प्रति लीटर एक रुपए का इंफ्रास्ट्रक्चर सेस भी चुकाया। इतना करने के बाद गाड़ी लेकर सड़क पर निकले तो आपका पाला टोल टैक्स से पड़ेगा। दिल्ली से लखनऊ की  यात्रा में एक तरफ का टोल नौ सौ रुपए के करीब है। सोचें, आम आदमी के टैक्स से बनी सड़क  पर चलने के लिए छह तरह के टैक्स अलग से देने होते हैं। सोचे, दुनिया मेंऐसी हरियाली कहां मिलेगी? सड़क परिवहन का मतलब अब निजी गाड़ियों से यात्रा ही हो गया है क्योंकि ज्यादातर राज्यों सड़क परिवहन की सार्वजनिक व्यवस्था बहुत लचर हुई पड़ी है।

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