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पर चुनावी ग्राउंड रियलिटी…

पांच विधानसभाओं के चुनाव है और यदि जी-20 की हवा में सोचे तो पांचों राज्यों में विश्व गुरू नरेंद्र मोदी की छप्पर फाड़ जीत होनी चाहिए। लेकिन मैंने तीन राजाधानियों के भाजपा बनाम कांग्रेस मुख्यालय की रियलिटी जानी तो तीनों जगह कांग्रेस के टिकट को लेने के लिए ज्यादा मारामारी सुनी। भाजपा दफ्तरों में खूब बैठके है, प्रचार के वार्मअप में देवेंद्र फडनवीस से लें कर अनुराग ठाकुर याकि हजार-पांच सौ लोगों की भीड की दबा कर नुक्क़ड सभाएं हो रही है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के रोजाना दौरे है। मगर जनता में उत्साह जीरो। सरंपच से लेकर बीडीओ, तहसीलदार, कलक्टर सब भीड़ इकठ्ठे करा-करा कर थक गए है। मध्यप्रदेश में प्रशासन और संगठन की चीं बोली हुई है वही राजस्थान में भाजपा नेताओं में दस तरह कि किंतु-परंतु है। उधर छतीसगढ़ में तो खैर भाजपा के मालिक एक अकेले मोदीजी!

राजस्थान में टक्कर नरेंद्र मोदी बनाम अशोक गहलोत में होगी। चुनाव में भाजपा, संघ और वसुंधरा राजे का मतलब नहीं और ऐसे ही कांग्रेस पार्टी या कांग्रेस मंत्रियों, नेताओं सबका बीडा अशोक गहलोत के हाथों। प्रदेश में भाजपा की यात्राएं चल रही है लेकिन भीड सामान्य है। लगेगा मानों भाजपा पिछड़ी हुई। असलियत में दिल्ली में सबकुछ होता हुआ है। अधिसूचना के साथ ही नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा की रिकार्ड तोड़ मीटिंगे होगी। ऐसा ही मध्यप्रदेश, छतीसगढ़ में होना है। पिछले महिने भर में नरेंद्र मोदी दो दफा मध्यप्रदेश के सागर क्षेत्र गए। बेइंतहा घोषणाएं की और संभवतया सर्वेक्षणों की तात्कालिक फीडबैक में जब मालूम हुआ कि मध्यप्रदेश के धर्मपरायण लोग स्टालिन के बेटे के सनातन विवाद से विचलित है तो मोदी ने बीना-सागर के अपने भाषण में कांग्रेस को जबरदस्ती विलेन करार दिया।

जाहिर है खुद नरेंद्र मोदी को जी-20 को मुख्य थीम बनाने से वोट उम्मीद नहीं है। हर प्रदेश में चुनाव जमीनी हकीकत में जांत-पांत, ओबीसी-फारवर्ड- आदिवासी तथा रेविडियों और नकदी पर जाने वाला है। नरेंद्र मोदी जहां विश्वगुरूता, जुमलेबाजी, विपक्ष पर हल्ला बोल, हिंदू-मुस्लिम और अपने चेहरे से मार्केंटिंग करेंगे वही लोकसभा चुनाव तक एक-एक बारीक जमीनी प्रबंध करेंगे। इस 17 सितंबर को नरेंद्र मोदी का जन्मदिन है। उस दिन पूरे देश में 70 मंत्री देश में प्रेस कांफ्रेस करेंगे और जन्मदिन पर पीएम विश्वकर्मा योजना का ढिंढोरी पीटेगें इस मैसेजिंग के साथ कि देखों पिछडों-ओबीसी के लिए मोदीजी क्या ले आए है। कर कर्मयोगी के खाते में इतनी-इतनी नकदी वैसे ही डाली जाएगी जैसे किसानों को उनके काम के नाम पर दो-दो हजार रू की रेवड़ी ट्रांसफर होती है। ओबीसी जातियों के घरों में सीधे नकद देने की वैसी ही योजाना जैसे मध्यप्रदेश में लाडली बहन योजना से पैसा बंट रहा है।

ऐसा सब इसलिए क्योंकि कमलनाथ, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल में कोई हिंदू विरोधी, हिंदू-मुस्लिम में फिट नहीं हो रहा है। प्रदेशों में पहली बार है जो भाजपाई चेहरे कांग्रेस में जाते हुए है।  हैरानी वाली बात है कि कांग्रेस में टिकटार्थी भीड़ में मारामारी के बावजूद भाजपाई बड़ी संख्या में कांग्रेस में शामिल हुए है। कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ने कई भाजपाईयों को शामिल किया। यही स्थिति छतीसगढ़ में है। भूपेश बघेल और कांग्रेस दफ्तर में टिकटार्थियों के साथ भाजपा से आए या आ रहे लोगों का रैला है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के ग्वालियर अंचल में भाजपा के लिए अधिक मुश्किल हो रही है जबकि हिसाब से इस इलाके में सिंधिया के बिना तो कांग्रेस को खत्म हो जाना चाहिए था।

सो संभव है कि पांचों विधानसभा के चुनाव ग्राउंड लेवल के नए अनुभवों तथा चुनावी राजनीति की चौकाने वाली उथलपुथल लिए हुए हो। गुरूवार को नरेंद्र मोदी ने बीना,सागर में जी-20 की बैठक से गर्व होने या न होने का सवाल कर लोगों के हाथ उठवाएं मगर उससे कई गुना अधिक, कोई चालीस बार उन्होने ‘इंडिया’, घमंडिया का रोना रोया।  विपक्षी पार्टियों को सनातन विरोधी बताते हुए इस सीमा तक चले गए कि विपक्ष सनातन को मिटा कर देश को फिर से गुलाम बनाना चाहता है।

तभी सोचे, जी-20 की लीला से मोदीजी के वोट यदि पक्के है तो इंडिया, घमंडिया का इतना रोना क्यों?

इसलिए क्योंकि लोगों ने मन से जी-20 पर गर्व से हाथ जरूर खड़े किए लेकिन रेविडयां बांटने, घोषणाएं करने, प्रोजेक्ट शुरू कराने की उनकी बाते लोगों के लिए पुरानी है। प्रदेशों में नरेंद्र मोदी के चेहरे और उन्हे सुनने की वह कौतुकता कतई नहीं है जो 2014 व 2019 के लोकसभा चुनाव में थी।

जबकि नरेंद्र मोदी के लिए विधानसभा चुनावों से ही लोकसभा चुनाव का रास्ता है। मैं नहीं मानता हूं कि विधानसभा चुनाव टलेंगें या लोकसभा के साथ होंगे। इसलिए जी-20 का जश्न, उसकी खुमारी बीस दिन बाद उस जमीनी लडाई में बदली हुई होगी जिसमें बार-बार, दिन-प्रतिदिन नरेंद्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा आदि का प्रचार सनातन और हिंदू खतरें में तथा हिंदू बनाम मुस्लिम, इंडिया घमंडिया के वे जुमले लिए हुए होगा जो कथित विश्वगुरूता को ठेंगा बताने वाले होंगे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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