इस सप्ताह योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश विधानसभा में खूब दहाड़ा। केशवप्रसाद मोर्य एंड पार्टी को कितना डाउन दिखलाने का नैरेटिव बनवाया, अमित शाह की अनदेखी की लेकिन इससे मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पक्की नहीं हुई है। उनकी छुट्टी तय है। भला मेरी इस धारणा का आधार क्या है? एक ही है। और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी की हवा का अनुभव है। नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव में उत्तरप्रदेश में जिस हार का सामना करना पड़ा है उसे वह कतई नहीं भूला सकते है। उन्होने ठान लिया है कि योगी आदित्यनाथ के रहते भाजपा को प्रदेश में अब पहले की तरह ओबीसी के वोट नहीं मिलेगें। इसलिए उन्हे हटा कर ओबीसी चेहरे को मुख्यमंत्री बनाना है!
इसका अर्थ यह नहीं है कि केशव प्रसाद मोर्य मुख्यमंत्री बनने वाले है। कोई अचिंहित ओबीसी चेहरा मुख्यमंत्री बनेगा। वैसे ही जैसे मध्यप्रदेश में बना है। सवाल है लखनऊ में सत्ता परिवर्तन कब संभव? इसके समय के अनुमान को लेकर किंतु, परंतु है। पंद्रह अगस्त के बाद फैसला संभव है तो चार विधानसभा चुनावों के बाद की किसी कामराज योजना जैसे पैतरे से भी योगी की छुट्टी मुमकिन है। लेकिन यदि महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, झारखंड चारों राज्यों में भाजपा अक्टूबर में बुरी तरह हारी तो मोदी-शाह क्या तब योगी आदित्यनाथ को हटाने की हिम्मत कर सकेंगे?