समय का तमाशा है, जो सुबह की चाय से पहले, दुनिया में एक और रस्म जुड़ी है कि आज ट्रंप क्या बोले? हर सुबह एक ट्विट आता है, और शेयर बाजार से लेकर सरकारों की नीतियों तक, सब हिलने लगती हैं। देशों के वित्त मंत्री, रिजर्व बैंक, कारोबारियों, आर्थिकी का दिन ट्रंप के ट्विट से ही शुरू होता होगा। सबका काम ट्रंप की उंगली के इशारे पर रुकता और चलता है। एक किस्म की वैश्विक बेबसी, और वह भी सिर्फ 280 अक्षरों में।
हां, भारत में अब दलाल स्ट्रीट के कारोबारी भी पूछते हैं, ट्रंप भारत की बांह कितनी मरोड़ेगा? व्यापार करार हो रहा है या भारत हिम्मत दिखा रहा है?
एक ज़माने में कहा जाता था, अमेरिका छींकता है तो दुनिया को जुकाम होता है। अब अमेरिका का राजा ट्विट करता है, और पूरी दुनिया चौंक जाती है। पर यह सिर्फ ट्रंप की बात नहीं। मौजूदा समय का यह वह आईना है, जहां जलवायु परिवर्तन से लेकर राजनीतिक नेतृत्व तक, हर तरफ एक बेहूदगी और भय की मिलीजुली हवा है। दुनिया के साढ़े सात अरब लोग हर दिन किसी न किसी झटके, गड्ढे, तनाव या हंगामे से टकरा रहे हैं। ‘नॉर्मल’ अब जैसे कोई बीती कहानी हो गई हो।
सोचें, डोनाल्ड़ ट्रंप और अपने नरेंद्र मोदी पर। सप्ताह की शुरुआत इस खबर से हुई कि डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया जाएगा, पहले पाकिस्तान, अब इज़राइल भी उन्हें अमन का फरिश्ता करार दे कर उनका प्रस्तावक होगा। इधर भारत में सोशल मीडिया पर उत्सव था कि घाना सरकार ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को ‘ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना’ का तमगा दिया। उन्हे घाना सहित नामीबिया, त्रिनिदाद और टोबैगो आदि देशों से एक के बाद एक 26 देशों से ‘सर्वोच्च नागरिक सम्मान’ मिले हैं। मतलब कि, वे दुनिया में सबसे ज्यादा सम्मान पाने वाले प्रधानमंत्री हैं! इसका अर्थ यह भी कि जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी दो-चार सम्मानों वाले प्रधानमंत्री थे, जबकि भारत के असली, अकेले विश्वगुरू प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी!
अब जरा पूछें कि मई 2025 को जब पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, तो क्या इन 26 देशों में से किसी देश ने भारत के पक्ष में, पाकिस्तान के खिलाफ एक भी शब्द बोला? एक भी देश, सिवाय इज़राइल के, भारत के साथ खड़ा नहीं था। महाशक्ति देशों का तो खैर सवाल ही नहीं। न ही भारत की पीड़ा के समय में किसी ने पाकिस्तान की निंदा या सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव लाने की पहल की। भारत की कूटनीति में इन 26 देशों में किसने, कितनों ने भारत के सुर में पाकिस्तान के खिलाफ बोला, उसकी भर्त्सना की?
इसलिए क्योंकि भारत की कूटनीति अब देश विशेष से प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सम्मान दिलाने की लॉबिंग, हवाईअड्डों पर भारतीयों की भीड़ भर इकठ्ठा करने की है जबकि पाकिस्तान से सीजफायर के लिए डोनाल्ड ट्रंप के आगे फोन खड़खड़ाती है। समय का ही कमाल है जो डोनाल्ड ट्रंप, नेतन्याहू, पुतिन, तुर्की के अर्दोआन, फील्ड मार्शल आसिम मुनीर की तूती बोल रही है।
और दुनिया मानती है कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के लिए सचमुच जनरल मुनीर से सौदा पटाया। बावजूद इसके भारत में हिम्मत नहीं जो ट्रंप का आभार माने। नतीजतन पाकिस्तान ने मौका लपका। अब चीन, रूस के बाद अमेरिका भी पाकिस्तान का सगा हो गया है। और भारत में क्या सुर्खियां हैं? देखों, देखो मोदीजी को उनकी वैश्विक नेतृत्व क्षमता के लिए घाना, नामीबिया, फिजी, ब्राजील, बहरीन, यूएई, कुवैत, सऊदी अरब ने अपने सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान से नवाजा। पर यह भी सोचों कि इनमें क्या कोई पाकिस्तान के खिलाफ भारत के साथ खड़ा था?
यह विषयांतर नहीं, मौजूदा समय के इस असल मुद्दे की परत है कि वैश्विक राजनीति में जो शोरगुल दिखता है, वह अंदर से कितना खोखला हो चला है। ट्रंप महीनों से देशों को धमका रहे हैं, व्यापार करार के लिए झुका रहे हैं। बावजूद इसके यूरोपीय संघ, जापान, कोरिया, ऑस्ट्रेलिया सब इंतज़ार में हैं कि ये ड्रामा कहां जाकर थमेगा।
ट्रंप द्वारा दुनिया को धमकाते-धमकाते कई महीने हो गए हैं। दो-चार देशों को छोड़ कर उनकी शर्तों के अनुसार व्यापारिक करार करने के लिए देश तैयार नहीं हो रहे हैं। यूरोपीय संघ से लेकर आसियान, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया सभी तमाशा देख रहे हैं कि होता क्या है? जैसे मौसम, जलवायु परिवर्तन की आपदाएं और उनका प्रभाव है वैसे ही ट्रंप के ट्विट बड़बोलेपन का ढोल है। उनका नोबेल शांति पुरस्कार हो या भारत के प्रधानमंत्री को राष्ट्रों के वैश्विक सम्मान की बात, सभी गूंजते ढोल की तरह हैं, बजते बहुत हैं, लेकिन भीतर से खाली।