nayaindia five state assembly election प्रबंधन के सहारे चुनावी लड़ाई
गपशप

प्रबंधन के सहारे चुनावी लड़ाई

Share

पांच राज्यों में इस बार के विधानसभा चुनाव की खास बात यह है कि चुनाव पहले की तरह राजनीतिक लड़ाई की बजाय प्रबंधन की लड़ाई में बदल गया है। हर पार्टी के लिए कई कई एजेंसियों ने चुनाव पूर्व सर्वे किया। पार्टियों ने उम्मीदवार तय करने के लिए सर्वेक्षणों का सहारा लिया। सर्वे के आधार पर टिकट दी गई या टिकट काटी गई। एजेंसियों की सर्वे के आधार पर चुनाव के मुद्दे तय किए जा रहे हैं और इतना ही नहीं एजेंसियां चुनाव का प्रबंधन संभाल रही हैं। उनके द्वारा नारे गढ़े जा रहे हैं और प्रचार के लिए गीत लिखे जा रहे हैं। नेताओं के भाषण भी एजेंसियों से मिली फीडबैक के आधार पर लिखे जा रहे हैं। सभी पार्टियों के और यहां तक कि अलग अलग उम्मीदवारों के भी सोशल मीडिया अकाउंट को निजी एजेंसियां सम्भाल रही हैं। उनको पता है कि क्या मुद्दा कहां ट्रेंड कराना है और उसका कैसे लाभ लेना है।

इससे पहले दुनिया के विकसित देशों के बारे में ऐसा सुनने को मिलता था। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प जब राष्ट्रपति का चुनाव जीते थे तो कहा गया था कि वह चुनाव ट्विटर पर लड़ा गया। अब भारत में भी चुनाव सोशल मीडिया में लड़ा जा रहा है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और उसके पीछे राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की भी ताकत है, जिसके स्वंयसेवक हर जगह है। हर बार संघ की फीडबैक उम्मीदवारों के चयन में सबसे अहम भूमिका निभाती थी। लेकिन इस बार पार्टी की जिला इकाइयों से लेकर संघ के स्वंयसेवकों की बजाय सर्वे करने वाली एजेंसियों की फीडबैक के आधार पर टिकट तय किए गए। हजारों पन्ना प्रमुखों के बावजूद एजेंसियां चुनाव का बंदोबस्त संभाल रही हैं। भाजपा में चुनाव प्रबंधन की प्रक्रिया 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव से बड़े पैमाने पर शुरू हुई थी, जब तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशांत किशोर और उनकी कंपनी को चुनाव प्रबंधन का जिम्मा दिया था। उसके बाद प्रशांत किशोर ने 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का प्रबंधन संभाला था। अब छोटे छोटे अनेक प्रशांत किशोर हो गए हैं, जिनमें से कई लोगों की सेवा भाजपा ने ली है। आम आदमी पार्टी ने तो प्रशांत किशोर के साथ रहे चुनाव प्रबंधक संदीप पाठक को पंजाब से राज्यसभा का सदस्य बनाया है। वे आम आदमी पार्टी को चुनाव लड़वा रहे हैं।

कुछ समय पहले प्रशांत किशोर के कांग्रेस के साथ जुड़ने की खबर आई थी कि लेकिन वे स्वतंत्र रूप से राजनीति करने बिहार चले गए। हालांकि उनकी कंपनी आईपैक कई राज्यों में प्रादेशिक पार्टियों के लिए चुनाव प्रबंधन कर रही है लेकिन कांग्रेस ने सुनील कनुगोलू पर भरोसा किया। कर्नाटक में सुनील कनुगोलू ने कांग्रेस के लिए चुनाव प्रबंधन का काम किया था। इस बार भी वे कांग्रेस के लिए चुनाव प्रबंधन सम्भाल रहे हैं। कांग्रेस ने डिजाइन बॉक्स नाम की एक संस्था को भी राजस्थान में सर्वे आदि का जिम्मा दिया था। इतनी सर्वे एजेंसियों और चुनाव प्रबंधन करने वाली एजेंसियों की सक्रियता का नतीजा यह है कि चुनाव पारंपरिक रूप से नहीं लड़ा जा रहा है, बल्कि कॉरपोरेट अंदाज में एजेंसियों की फीडबैक और उनके द्वारा तय किए गए मुद्दों, नारों आदि पर लड़ा जा रहा है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें