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कहां से आ रहा है इतना पैसा?

अर्थव्यवस्था

पांच राज्यों में चल रहे विधानसभा चुनाव में जिस मात्रा में नकद पैसे, शराब, सोना-चांदी और उपहार में बांटी जाने वाली चीजें पकड़ी जा रही हैं, उसे देख कर किसी का भी सिर चकरा जाए। हर राज्य में पिछली बार के मुकाबले कई-कई गुना ज्यादा जब्ती की बाते है। सवाल है कि पिछले 10 साल से देश में जब ईमानदार राजनीति हो रही है और आधे राज्यों में तो भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों की सरकारें हैं, जिनके नेता नरेंद्र मोदी हैं और उन्होंने कहा था कि ‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ फिर भी नेताओं के पास इतने पैसे कहां से आए, जो सैकड़ों करोड़ रुपए नकद और शराब व अन्य चीजें जब्त हो रही हैं? यह भी इस बात का सबूत है कि भ्रष्टाचार रोकना या ईमानदार राजनीति करना सिर्फ चुनावी नारे में है।

दक्षिण के राज्य तेलंगाना में 30 नवंबर को विधानसभा का चुनाव होना है यानी अभी 20 दिन बाकी हैं और अभी तक चुनाव आयोग की टीमों ने 137 करोड़ रुपए नकद पकड़े हैं। सोचें, 119 विधानसभा सीटों वाले राज्य में अभी तक 137 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी जा चुकी है। यानी प्रति सीट एक करोड़ से ज्यादा की नकद राशि जब्त की जा चुकी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में संयुक्त आंध्र प्रदेश करे चुनाव में जितनी नकदी पकड़ी गई थी यह उससे 50 करोड़ ज्यादा है। इस नकदी के अलावा 10 लाख लीटर से ज्यादा शराब पकड़ी गई थी, जिसे चुनाव में बांटना था। इसके अलावा सोना, चांदी और उपहार में बांटने वाली अन्य चीजें बेहिसाब पकड़ी गई हैं।

हिंदी प्रदेश पीछे नहीं

मध्य प्रदेश में जहां भाजपा की सरकार है वहां अक्टूबर अंत तक के आंकड़ों के मुताबिक 229 करोड़ रुपए की नकदी और अन्य सामग्री पकड़ी गई है। चुनाव आयोग की ओर से बताया गया है कि अक्टूबर अंत तक 25 करोड़ रुपए की नकदी पकड़ी गई है और 37 करोड़ रुपए की कीमत की 19 लाख लीटर अवैध शराब पकड़ी गई है। चुनाव आयोग के मुताबिक 2018 के चुनाव में कुल जब्ती करीब 73 करोड़ रुपए की थी, जो इस साल मतदान से 17 दिन पहले ही 229 करोड़ यानी पिछले चुनाव से तीन गुना हो गई है।

मध्य प्रदेश से सटे छत्तीसगढ़ में आठ नवंबर तक चुनाव आयोग करीब 67 करोड़ रुपए की नकदी और सामान जब्त कर चुका है, जिसमें 17 करोड़ रुपए की नकदी है। राज्य में 47 हजार लीटर से ज्यादा शराब जब्त की गई है और बताया गया है कि चार करोड़ रुपए से ज्यादा मूल्य की दूसरी नशीली वस्तुएं पकड़ी गई हैं।

सबसे हैरान करने वाले आंकड़े राजस्थान के हैं। चुनाव आयोग ने नौ अक्टूबर को चुनाव की घोषणा की थी उसके बाद महज 15 दिन में राज्य में 244 करोड़ रुपए की नकदी और अन्य वस्तुएं पकड़ी हैं। राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी प्रवीण गुप्ता ने बताया है कि राज्य में नौ से 24 अक्टूबर के बीच 39 करोड़ रुपए की नकदी और 20 करोड़ रुपए मूल्य की 10 लाख लीटर से ज्यादा शराब जब्त की गई है। प्रवीण गुप्ता ने बताया कि 46 करोड़ रुपए से ज्याद की दूसरी नशीली वस्तुएं पकड़ी गई हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव की घोषणा से पहले अगर पिछले छह महीने का आंकड़ा देखें तो जून से लेकर अक्टूबर अंत तक 648 करोड़ रुपए की नकदी और अन्य वस्तुएं अलग अलग एजेंसियों ने जब्त की हैं।

चुनाव वाले राज्यों में पकड़ी जा रही नकदी, शराब, दूसरी नशीली वस्तुओं और सोना-चांदी को देख कर ऐसा लग रहा है कि भारत सचमुच सोने की चिड़िया है। ऐसा इसलिए मानना चाहिए क्योंकि चुनाव आयोग के अधिकारियों और कानून प्रवर्तन की एजेंसियों का अनौपचारिक बातचीत में मानना है कि जितनी नकदी और वस्तुएं पकड़ी जाती हैं वह सिर्फ 10 फीसदी हिस्सा होता है। यानी उससे 90 फीसदी ज्यादा नकदी और वस्तुएं चुनाव में इस्तेमाल होती हैं।

सोचें, जब सारी पार्टियां हजारों करोड़ रुपए खर्च करके चुनाव लड़ती हैं, आम लोगों में जम कर नकदी, शराब और दूसरी चीजें बांटती हैं तो फिर ईमानदार राजनीति या भ्रष्टाचार के मुद्दे का क्या मतलब रह जाएगा? जनता भी इस बात को समझती है और नेता भी। ऐसी ही स्थिति के लिए जाने-माने व्यंग्यकार सम्पत सरल कहते हैं कि झूठ बोलने वाले और झूठ सुनने वाले दोनों को पता हो कि झूठ बोला जा रहा है तो ऐसे झूठ में कोई पाप नहीं लगता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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