nayaindia Five state assembly election उम्मीदवार तय करने का अनोखा तरीका
गपशप

उम्मीदवार तय करने का अनोखा तरीका

Share

भारतीय जनता पार्टी ने इस बार अभी तक डेढ़ दर्जन सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारा है। राजस्थान में सात सांसदों को टिकट दी गई है तो मध्य प्रदेश में भी सात सांसद चुनाव मैदान में उतारे गए हैं। छत्तीसगढ़ में पार्टी ने चार सांसदों को टिकट दी है। राजस्थान, मध्य प्रदेश में अभी और सांसदों को टिकट मिलेगी और तेलंगाना में भी पार्टी अपने चार में से कुछ सांसदों को चुनाव में उतार सकती है। पार्टी केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा के चुनाव लड़ा रही है।

किसी को अंदाजा नहीं है कि सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को विधानसभा चुनाव लड़ाने के पीछे की रणनीति क्या है? यह फैसला किस आधार पर हुआ? आमतौर पर राज्यों में उम्मीदवारों के नाम पर शुरुआती विचार होता है। राज्य की चुनाव समिति हर सीट के लिए संभावित उम्मीदवारों की सूची देख कर उसमें से छंटनी करती है और दो या तीन नाम हर सीट पर तय करके दिल्ली आती है, जहां केंद्रीय चुनाव समिति में उसमें से किसी एक नाम पर फैसला होता है। कुछ सीटों पर यदि सिंगल नाम हैं तो वहां फैसला करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। लेकिन इस बार ऐसी कोई कवायद नहीं हुई। प्रदेश कमेटी के नेताओं को तो हवा तक नहीं लगी कि कहां से कौन सांसद चुनाव में उतारा जा रहा है? यहां तक कि जिन बड़े नेताओं को टिकट दी गई उनको खुद को भी अंदाजा नहीं था कि उन्हें लड़ने के लिए कहा जाएगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि उनको पहले बताया गया था लेकिन हकीकत यह है कि नाम की घोषणा होने के 15 दिन तक वे अपने लोकसभा क्षेत्र मुरैना की दिमनी विधानसभा में नहीं गए, जहां से उनको चुनाव लड़ना है।

पार्टी के शीर्ष नेताओं ने टिकट का ऐसा सस्पेंस बनाया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक को कुछ अंदाजा नहीं लगा। उनका अपना नाम चौथी सूची में जारी हुआ। राजस्थान में भी जब राज्यवर्धन सिंह राठौड़, दीया कुमारी जैसे सांसदों के नाम घोषित हुए तो वह सबके लिए चौंकाने वाली घोषणा थी। पार्टी के दिग्गज नेताओं की टिकट काट कर इनको उम्मीदवार बनाया गया। वसुंधरा राजे को कोई अंदाजा नहीं था कि किसकी टिकट कट रही है और किसको मिल रही है। उनके करीबी नेताओं युनूस खान, नरपत सिंह राजवी, राजपाल सिंह शेखावत, अनिता सिंह आदि के टिकट कटे है या कटने वाले है।

आमतौर पर भाजपा में हर सीट पर कई बार सर्वेक्षण कराया जाता है। जिला व प्रदेश संगठनसे भी फीडबैक ली जाती है। उसके ऊपर से राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की फीडबैक होती है और तब टिकट तय होते है। इस प्रक्रिया में सबको पता होता है कि कहां से किसका नाम सूची में है और किसे टिकट मिल सकती है। लेकिन इस बार भाजपा ने सब कुछ उलटा पुलटा कर दिया। किसी को अंदाजा ही नहीं हुआ कि कहां से किसका नाम तय हो रहा है। चुनाव की घोषणा से कई हफ्ते पहले ही टिकटों की घोषणा शुरू हो गई। बताया जा रहा है कि मोदी और शाह ने यह सोच कर टिकट बांटी है कि जब चुनाव उनको ही लड़ना है तो फिर किसी को भी उम्मीदवार बनाए क्या फर्क पड़ता है। अगर ऐसा है तो यह बड़ा रणनीतिक बदलाव है और अगर यह सफल हुआ तो अगले साल के लोकसभा चुनाव में भी यह प्रयोग देखने को मिल सकता है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें

Naya India स्क्रॉल करें