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गपशप

भाजपा अनमनी,कांग्रेस जिंदा

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यह विधानसभा चुनाव 2023 की हकीकत और खूबी है। भाजपा में शिवराजसिंह अनमने है तो वसुंधरा राजे व रमनसिंह भी है। इनके साथ प्रादेशिक नेता भी अनमने माने जा सकते है। ठिक विपरित कमलनाथ, अशोक गहलोत व भूपेश बघेल के चेहरों को देख कर कोई नहीं कहेगा कि वे चुनाव में बूझे मन से है। निश्चित ही नरेंद्र मोदी और अमित शाह सतह के नीचे चुनावी जादू-मंतर बुनते-गुनते हुए होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विश्वास है किविधानसभा चुनावों में उनका जादू चलेगा। आखिर मोदी के मन में हिंदी प्रदेश है तो एमपी, राजस्थान और छतीसगढ़ के मन में भी मोदी! उनकीएक ऊंगली में चुनाव जीतने का सुदर्शन चक्र है और अमित शाह शाह उनके चुनावी रथ के एकलौते सारथी! तभी पार्टी का, प्रदेश नेताओं, संगठन व कार्यकर्ताओं का क्या अर्थ? सभी अनमने, बुझे मन से बस चुनाव लड़ते हुए। चुनाव लड़ने के मानों औपचारिक चेहरे।

मध्यप्रदेश के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा के विजयरथ घूमने शुरू हो गए है। इन पर नारा लिखा है- मोदी के मन में बसता है एमपी और एमपी के मन में मोदी। साथ ही प्रधानमंत्री की मध्यप्रदेश के लोगों के नाम पर लिखी चिट्ठी भी बंट रही है। फोटो, पोस्टर सबमें नरेंद्र मोदी का चेहरा सबसे बड़ा और केंद्र में। उनके अगल-बगल में डाकटिकट जैसे आठ चेहरें। जैसे शिवराजसिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्रसिंह तोमर, ज्योतिरादित्य, प्रहलाद्ध पटेल आदि। उम्मीदवार दिल्ली से, नारे दिल्ली से और सारा कैंपेन दिल्ली में डिजाईन। शिवराजसिंह चौहान यों भाषण दे रहे है, घूम रहे है पर वे भी यह जतलाते हुए है कि वे भी मोदीजी के मन में शायद बसे हुए है।

जानकारों की फीडबैक के अनुसार तमाम मंत्री, पुराने नेता अपने चुनावी पोस्टरों में केवल नरेंद्र मोदी का फोटो छपवा रहे है। अधिकांश उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के साथ अपने चेहरे चिपका कर चुनावी पोस्टर बनाए तो आश्चर्य नहीं होगा।

इसके ठिक विपरित कांग्रेस में स्थिति है। मध्यप्रदेश में हर किसी से यह फीडबैक है कि कमलनाथ व दिग्विजयसिंह की बनवाई उम्मीदवार लिस्ट भाजपा के मुकाबले ज्यादा दमदार है। भाजपा के तमाम दिग्गजों का पसीना बहेगा। कमलनाथ ने टिकटार्थियों की प्रतिस्पर्धा के बीच सबको पहले से समझाया हुआ था कि जनता के बीच लोकप्रियता की कसौटी के सर्वे अनुसार ही टिकट होगा। न टिकट ऊपर से थौपे जाएगें और न पैसे के लेन-देन में टिकट बिकेंगे। कमलनाथ ने लगातार सर्वे करवा कर, विधानसभा क्षेत्रों के दांवेदारों से पारदर्शिता रख कांग्रेस में जो व्यवस्था बनाई उसमें मेरा मानना है कि प्रदेश में कांग्रेस न केवल जिंदा है बल्कि वह चुनाव अधिक जीवतंता से लड़ते हुए है। दो प्रदेशों में यह साफ दिख रहा है कि कांग्रेस ने जो चेहरे तय किए है उससे पार्टीजनों में विश्वास बना है।भूपेश बघेल और कमलनाथ दोनों ने अपने चेहरे और वचनपत्र (याकि घोषणापत्र) के जरिए लोगों का वह भरोसा, वह विश्वास बनाया है कि वे खुद, प्रदेश संगठन और कार्यकर्ता एकजुटता से चुनाव लड़ने में अपने आपको झौके रहेंगे।

ऐसा भाजपा में नहीं है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ तीनों राज्यों में कांग्रेस के उम्मीदवारों की लिस्ट प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व की पारदर्शी, बेबाक एप्रोच से बेहतर बनती लग रही है। राजस्थान में जरूर दिक्कत है लेकिन पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन ख़डगे, राहुल गांधी ने केंद्रीय स्तर पर जैसी कवायद कराई है वह कांग्रेस के सुधरने, बेहतर होने का संकेत है।

कोई न माने इस बात को, लेकिन मैं यह सुनकर हैरान हूं कि प्रदेश स्तर पर, भाजपा के संगठन व संघ प्रभारियों के टिकटार्थियों के साथ व्यवहार में, केंद्रीय पदाधिकारियों के नामों को ले कर दुरूपयोग से झासेबाजी, लेन-देन और अव्यवस्था क्या गजब है! मैं यह सोच हैरान हूं कि सिर्फ दस वर्षों के ही सत्ता अनुभव में भाजपा-संघ का कैसा पतन हुआ जबकि कांग्रेस आज भी जिंदा है अपने पुराने ढर्रे और लोकलाज वाले व्यवहार में। शायद तभी कांग्रेस आईसीयू के बावजूद जिंदा है और वह कार्यकर्ताओं-नेताओं की अंदरूनी खींचतान, जीवंत राजनीति, अलग-अलग दबाव गुटों, धड़ों के चैल-बैलेंस वाला वह लोकतंत्र लिए हुए है जो मनमोहन सरकार के वक्त था तो राजीव गांधी व इंदिरा गांधी के वक्त भी था।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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