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गपशप

बिना चेहरे के लड़ रही भाजपा

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भाजपा पिछले 20 साल में पहली बार राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बिना मुख्यमंत्री का चेहरा प्रोजेक्ट किए चुनाव लड़ रही है। भाजपा ने पहली बार 2003 में राजस्थान और मध्य प्रदेश में सीएम का दावेदार पेश करके चुनाव लड़ा था। राजस्थान में वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश में उमा भारती को मुख्यमंत्री का दावेदार घोषित किया गया था। उस चुनाव में भाजपा तीनों राज्यों में भारी बहुमत से जीती। चुनाव के बाद राजस्थान में वसुंधरा, मध्य प्रदेश में उमा भारती और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह मुख्यमंत्री बने। उसके बाद के सभी चुनाव भाजपा ने सीएम का चेहरा पेश करके ही लड़ा। राजस्थान में तो पिछले 20 साल से वसुंधरा और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह चेहरा रहे। मध्य प्रदेश में 2008 से लगातार तीन चुनाव में शिवराज सिंह चौहान चेहरा रहे हैं।

इस तरह भाजपा ने 20 साल का रिवाज बदला है। पिछले 20 साल में पहली बार भाजपा किसी एक नेता का चेहरा पेश करने की बजाय सामूहिक नेतृत्व या राष्ट्रीय नेता के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। यह बहुत जोखिम का मामला है। तभी सवाल है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह जोखिम क्यों लिया? क्यों किसी नेता का चेहरा प्रोजेक्ट करके चुनाव लड़ने की बजाय अपना चेहरा दांव पर लगाया? ध्यान रहे अगले सात-आठ महीने में लोकसभा का चुनाव होने वाला है उससे पहले इन चुनावों को लोकसभा चुनाव का रिहर्सल माना जा रहा है। इसमें भाजपा ने बड़ा प्रयोग किया है तो जाहिर है कि इसके पीछे कोई बड़ा कारण और कोई बड़ी योजना होगी।

एक कारण तो यह दिख रहा है कि पिछले कुछ विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रादेशिक क्षत्रप बुरी तरह से पिटे हैं। भाजपा ने इस साल मई में कर्नाटक में मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के चेहरे पर चुनाव लड़ा। पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा को हटा कर बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया था और एक बड़े लिंगायत नेता के तौर पर उनको पेश किया था। लेकिन उनकी तीन साल की एंटी इन्कम्बैंसी पार्टी को ले डूबी। भाजपा वहां बुरी तरह से चुनाव हारी। उससे पहले पिछले साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में भी चुनाव हुए थे। हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने जयराम ठाकुर के चेहरे पर चुनाव लड़ा, जो लगातार पांच साल मुख्यमंत्री रहे थे और वहां भी पार्टी चुनाव हार गई। इससे उलट गुजरात में भाजपा ने चुनाव से पहले विजय रूपानी को हटा कर दो बार के विधायक और निराकार चेहरे वाले भूपेंद्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया था और चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल की। यह प्रयोग उत्तराखंड में भी सफल हुआ था, जहां ऐन चुनाव से पहले दो मुख्यमंत्री बदले गए और अपेक्षाकृत नए नेता पुष्कर धामी को सीएम बना कर पार्टी चुनाव लड़ी और रिवाज तोड़ कर लगातार दूसरी बार जीत गई। तभी हो सकता है कि मोदी और शाह ने यह सोचा कि जो चेहरे 2003 से राज्य में भाजपा का चेहरा रहे हैं उनसे लोग ऊबे होंगे और इसलिए उनका चेहरा हटा कर चुनाव लड़ा जाए। यह भी हो सकता है कि दोनों नेताओं के हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और मजबूत नेतृत्व के मुद्दे पर बहुत भरोसा हो और उनको लगा हो कि नरेंद्र मोदी अपने चेहरे और अमित शाह अपने प्रबंधन से इन राज्यों में चुनावी नैया पार लगा देंगे।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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