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कांग्रेस प्रादेशिक नेताओं के भरोसे

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कांग्रेस हर राज्य में चेहरा प्रोजेक्ट करके लड़ रही है। कांग्रेस ने सिर्फ चेहरा प्रोजेक्ट नहीं किया है, बल्कि सब कुछ प्रदेश नेताओं के हवाले छोड़ा है। टिकट तय करने से लेकर चुनाव से पहले योजनाओं की घोषणा करने का मामला हो या प्रचार की रणनीति का मामला हो, सब पार्टी के प्रादेशिक नेता कर रहे हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता सिर्फ प्रचार और रैलियों के लिए जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक की सफलता से उत्साहित कांग्रेस ने यह रणनीति अपनाई है। वहां कांग्रेस ने सब कुछ सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार के ऊपर छोड़ा था, जिन्होंने कांग्रेस को बड़ी जीत दिलाई।

मध्य प्रदेश कुछ हद तक अपवाद हो सकता है क्योंकि पिछली बार भी चुनाव से पहले ऐसा मैसेज बन गया था कि पार्टी जीती तो कमलनाथ मुख्यमंत्री होंगे। लेकिन राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सब कुछ ओपन था। राजस्थान में सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष थे और जयपुर से लेकर दिल्ली तक पत्रकार लिख रहे थे कि कांग्रेस जीती तो सचिन मुख्यमंत्री होंगे। हालांकि चुनाव लड़ाने में अशोक गहलोत, सचिन पायलट और पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में समान भूमिका निभाई थी। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन यह किसी को पता नहीं था कि पार्टी जीती तो वे मुख्यमंत्री होंगे। क्योंकि टीएस सिंहदेव और ताम्रध्वज साहू दो अन्य बड़े दावेदार थे। लेकिन इस बार सब कुछ उलटा हो रहा है। इस बार तीनों राज्यों में कांग्रेस ने सब कुछ चुनिंदा चेहरों के हवाले छोड़ा है।

राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सब कुछ संभाले हुए हैं। इस साल बजट के बाद से उन्होंने इतनी घोषणाएं की हैं और इतनी योजनाएं शुरू कर दी हैं कि समूचा चुनावी परिदृश्य बदल दिया है। चुनाव की घोषणा से दो दिन पहले उन्होंने जाति गणना कराने का आदेश देकर ओबीसी कार्ड भी बखूबी खेला है। कांग्रेस का पूरा चुनाव एक तरह से वे संभाल रहे हैं। उधर मध्य प्रदेश में पार्टी ने कमलनाथ के नाम की घोषणा है। पार्टी के राष्ट्रीय नेता भी कह चुके हैं कि कांग्रेस जीती तो वे सीएम होंगे। वे अपने हिसाब से सब कुछ कर रहे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के साथ उनका परफेक्ट तालमेल दिख रहा है। दोनों मिल कर चुनाव लड़वा रहे हैं। कमलनाथ अपने हिसाब से नरम हिंदुत्व का एजेंडा चला रहे हैं। वे हिंदुत्व को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं होने देना चाहते हैं। तभी कहा जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की भोपाल में प्रस्तावित पहली रैली इसी वजह से रद्द करनी पड़ी।

उधर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने सब कुछ भूपेश बघेल के ऊपर छोड़ा है। उन्होंने भी इस साल बजट के बाद अनगिनत योजनाएं घोषित की हैं। उन्होंने भी नरम हिंदुत्व का रास्ता चुना है। गाय, गोबर पर वे भाजपा से ज्यादा सक्रिय हैं। राम वन गमन पथ की परियोजना पर भी उनकी सरकार काम कर रही है। हालांकि पार्टी का अंदरूनी विवाद खत्म करने के लिए कांग्रेस आलाकमान ने टीएस सिंहदेव को उनका उप मुख्यमंत्री बनाया है लेकिन फैसले सारे बघेल ही कर रहे हैं। उम्मीदवार चयन से लेकर चुनावी एजेंडे तक में उनकी भूमिका अहम है। इसी तरह तेलंगाना में कांग्रेस ने सब कुछ प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी के ऊपर छोड़ा है। उम्मीदवारों के नाम की छंटनी करने से लेकर प्रचार का एजेंडा तय करने और रैलियों आदि का काम सब कुछ उनके जिम्मे है। वे कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के साथ मिल कर पार्टी को तेलंगाना में चुनाव लड़ा रहे हैं।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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