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कांग्रेस में सब प्रदेशों में,चेहरों पर!

भारतीय जनता पार्टी

दिखावे के लिए दिल्ली का कांग्रेस मुख्यालय विधानसभा चुनावों की तैयारियों का केंद्र है। दिल्ली में नेता और टिकटार्थी लॉबिग करते हुए है लेकिन हकीकत में मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी याकि आलाकमान ने अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ- दिग्विजयसिंह पर सबकुछ छोड़ा हुआ है। भाजपा में जहां सबकुछ दिल्ली से वही कांग्रेस में सबकुछ प्रदेश राजधानियों में। चुनाव कांग्रेस के प्रदेश चेहरों पर है! मोदी-शाह ने जहां सभी टिकटार्थियों को लाचार बनाया है वही कांग्रेस में जिला से ले कर प्रदेश स्तर तक उम्मीदवारों में गलाघोट प्रतिस्पर्धा है। इसलिए उम्मीदवारों की लिस्ट के बाद कांग्रेस में विरोध होगा तो असंतोष भी। जबकि भाजपा में कोई सोच भी नहीं सकता कि यदि उसे टिकट नहीं मिला तो बगावत करें।

एक हिसाब से भाजपा ने अपनी बी और सी केटेगरी की सीटों पर जितने उम्मीदवार उतारे है उससे कांग्रेस में उम्मीदवारों को ले कर सावधानी बढ गई है। सोशल मीडिया में कमलनाथ और दिग्विजयसिंह में मतभेद, अपने-अपनी लिस्ट को ले कर जिद्द जैसी खबरे है लेकिन ऐसा इसलिए संभव नहीं है क्योंकि भाजपा की सी केटेगरी की सीटे दरअसल कांग्रेस की ए केटेगरी की सीटे है। इसलिए कमलनाथ-दिग्विजयसिंह दोनों को मिल कर हर हाल में अब मजबूत उम्मीदवार उतारना है। भाजपा की लिस्ट के बाद प्रदेश कांग्रेस नेताओं और संभवतया एआईसीसी की सर्वे टीम भी पुख्ता उम्मीदवारों की कांट-छांट में होगी।

उस नाते भाजपा की जल्दी कांग्रेस के लिए फायदेमंद है तो नुकसानदायी इस नाते कि मंत्री और सांसदों के चुनाव में उतरने से आम धारणाओं में कांग्रेस को मुश्किल में पड़ा माना जा रहा है।

बावजूद इस सबके कांग्रेस तीन राज्यों में फिलहाल मुकाबले में है और भाजपा के भीतर भी यह विश्वास नहीं है कि उनका जीतना तयशुदा है। जबकि भाजपा उम्मीदवारों की अभी तक की सूची से और खासकर दिग्गजों को मैदान में उतारने से कांग्रेस की हवा बिगडनी चाहिए थे। लेकिन मध्यप्रदेश में दो-तीन दिन के हल्ले के बाद उम्मीदवारों का मामला ठंडा पड़ गया। उसकी जगह शिवराजसिंह के भाषणों, उन्हे टिकट मिलेगा या नहीं (ऐसे ही राजस्थान में भी वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों के टिकटों को लेकर अटकले) के सस्पेंस ने कांग्रेस को मजबूत बना रखा है।

कहते है ऐसी ही बातों के खटके में संघ ने पहल करके शिवराजसिंह चौहान से बात की। उनके मूड और जनता में उसके असर को बूझा। नतीजतन संघ ने यह सहमति बनवाई कि तीनों राज्यों में तीनों पुराने चेहरों को चुनाव लड़ने देना चाहिए। कह सकते है कि शिवराजसिंह की हिमाकत के कारण मध्यप्रदेश में तमाम पुराने मंत्रियों, चेहरों के वापिस टिकट हुए तो छतीसगढ़ में रमनसिंह का भी टिकट हुआ। वही वसुंधरा राजे का भी होता हुआ लगता है। भले उन्हे झालावाड क्षेत्र से लडवाया जाए या घौलपुर जिले से।

सवाल है कांग्रेस में सही ढग से उम्मीदवार तय होते हुए है या भाजपा में? मेरा मानना है कि चुनाव जीतने की कसौटी में भाजपा में कड़ाई से फैसले है वही कांग्रेस की लिस्ट अभी आनी है और संभव है बगावत की चिंता में तीनों क्षत्रप मौजूदा विधायकों-मंत्रियों, बासी चेहरों को वापिस टिकट देने की जिद्द करें। और ऐसा हुआ तो चुनाव में यह कांग्रेस के लिए सर्वाधिक नुकसानदायी होगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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