याद करें 2014 में विश्व राजधानियों में नरेंद्र मोदी को ले कर कैसा कौतुक था? शपथ समारोह में पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के जमावड़े के साथ नए भारत का क्या ख्याल था? बराक ओबामा और ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस में मोदी और उनकी सरकार को ले कर क्या अनुमान थे? अब ठीक दस साल बाद 2024 में भारतीय कूटनीति और विश्व में इमेज का क्या सत्य है?
दो टूक जवाब है कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में 2024 वह वर्ष था, जिसमें भूटान को छोड़ हर पड़ोसी देश से संबंधों में भारत परेशान और हाथ-पांव मारता हुआ था। एक भी पड़ोसी ऐसा नहीं जो भारत का सगा हो! हर देश भारत और मोदी सरकार के प्रति अविश्वास लिए हुए है। चीन से सभी के विश्वासी संबंध वही भारत अपने ही इलाके में ऐसा बेगाना जो नौबत बांग्लादेश में हिंदुओं की पिटाई की है!
औऱ शेष विश्व में? पहली बार पश्चिमी देशों में अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया याकि फाइव आईज देशों ने भारत पर शक किया, आरोप लगाया कि वह मित्र देश में ही हत्या और हत्या की साजिश का कर्ता है! उसकी सुरक्षा और विदेश नीति लॉरेन्स गिरोह जैसे मवालियों पर आश्रित है। इतना ही नहीं अमेरिकी अदालत में साजिश के अभियोग में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और रॉ एजेंसी के पूर्व प्रमुख, एजेंट तथा कारोबारी को ले कर पूरी दुनिया में चर्चा! भारत के आला लेवल की भला कब ऐसी वैश्विक बदनामी हुई?
दोस्ती, सामरिक रिश्ते, भू-राजनीतिक गठजोड़, मुक्त व्यापार संधियों का सारा एजेंडा और भाईचारा हाशिए में तथा भारत की यह इमेज की वह एक ऐसा स्वार्थी देश है, जो रूस से कच्चा तेल खरीद कर, उसे प्रोसेस कर फिर यूरोप में बेच कमाई की टुच्चागिरी करता है। रूस के खिलाफ पाबंदियों को निष्प्रभावी बनाने वाले देश का नाम है भारत।
सन् 2024 में भारत की विदेश नीति में पड़ोस से रिश्ते बिखरे। अविश्वास बना वही चीन और रूस को भारत इसलिए पटाते हुए था ताकि भारत-चीन सीमा का बोझ हल्का हो। साथ ही उस जमात को मैसेज मिले, जिसने उत्साह में मोदी राज को जी 20 की मेजबानी का मौका दिया था पर यूक्रेन युद्ध के बाद से सर्द है इसलिए 2023 और 2024 का फर्क गर्म से सर्द रिश्तों, विश्वास की जगह धोखे, अविश्वास के रिश्तों की दास्तां भी है। व्यर्थ की बात है कि 2024 में चीन या रूस का भारत पर विश्वास बना। असलियत सबके विश्वास को भारत ने 2024 में गंवाया है!
कहने को बातें कई हैं कि दूसरे देशों और विदेशियों का भारत पर बहुत विश्वास है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष निवेश आ रहा है लेकिन हकीकत उलटी है। पूरी दुनिया में भारत की आर्थिकी का एक ही चेहरा है और वह गौतम अडानी हैं। अडानी और अंबानी हैं। ये ही भारत में धंधा कर सकते हैं इसलिए इन्हीं से सौदा पटा इनके जरिए भारत में सामान बेचो और मुनाफा कमाओ। तभी कोविड के बाद चीन से भागी कंपनियों के प्लांट वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया जैसे देशों में पहुंचे जबकि भारत बने-बनाए पुर्जों से देशी बाजार के लिए फोन असेंबल करने, बेचने का ठिकाना भर है।
इसलिए क्योंकि किसी को विश्वास नहीं है कि भारत की आबोहवा, भारत की लालफीताशाही और भ्रष्टाचार में मैन्युफैक्चरिंग कारखाना लगाना सही होगा। दुनिया में भारत को ले कर एक ही विश्वास है और वह उसके बाजार होने का है। 140 करोड़ की आबादी 160 करोड़ होने वाली है इसलिए जितना बेच सको, भारत में बेचो और कमाई करो। तभी गौर करें अब वैश्विक महाबली गूगल भी आक्रामक अंदाज में भारत की भीड़ को ललचाते हुए बता रहा है कि छोड़ो देशी जरियों को, गूगल पे के जरिए सब खरीदो-बेचो। गूगल के जरिए लेन-देन करो। क्योंकि गूगल है विश्वास का नाम!