इसे विदेशी राष्ट्राध्यक्षों का अहोभाग्य कहें या दुर्भाग्य जो वे भारत में हैं लेकिन वे बिना दिल्ली देखे लौटेंगे! वे दिल्ली एयरपोर्ट उतर कर 48 घंटे केवल और केवल या तो खाली दिल्ली, भूतिया सरकारी इमारतों को देखेंगे या हर सड़क, हर कोने पर उन नरेंद्र मोदी के फोटो दर्शन कर लौटेंगे जिनके पोर-पोर की सच्चाई बाइडेन से ले कर दक्षिण अफ्रिका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा आदि सभी जानते हैं। यदि इनकी टीम ने भारत के टीवी चैनल या अखबार देखे तो यह सुन-पढ़ सिर पीटेंगे कि उन्हें सोने के बर्तन में भोज दिया जा रहा है! और वे दिल्ली में इतने असुरक्षित हैं कि उनके लिए सड़क से हवा तक सुरक्षाकर्मी हैं। दिल्ली के 35 कलोमीटर के इंच-इंच में सुरक्षाबल हैं। स्नाइपर हैं, एंटी एयरक्राफ्ट गनें और एंटी ड्रोन सिस्टम है, ट्रेंड कमांडो हैं। यह सब देख-सुन-पढ़ कर भला कौन विदेशी प्रतिनिधि नहीं सोचेगा कि इतना खतरा तो यूक्रेन की राजधानी कीव में भी नहीं है, जबकि नई दिल्ली तो असुरक्षा व आंतक के खतरे लिए हुए है!
याद करें जब कई राष्ट्राध्यक्ष एक साथ कीव गए थे तो उन्हें वहां जब रहने वाले नागरिकों की भीड़ मिली तो वैसा होना एक सिविजाइज्ड, पढ़े-लिखे, विकसित समाज की शासन व्यवस्था और आचरण की वजह सेक्या नहीं था? जबकि दिल्ली में ऐसा भदेस, गंवार लॉकडाउन जैसाबंदोबस्त तो भला क्यों? देश भयाकुल, डरपोक या सचमुच असुरक्षित? मगर प्रधानमंत्री मोदी का मकसद और भी है। ऐसा इसलिए ताकि भारत के 140 करोड़ लोग सोचें कितने बड़े-बड़े नेता आए हैं, कितना बड़ा आयोजन है और मोदीजी क्या कमाल के विश्व नेता हैं। मूर्ख भक्त मानेंगे कि सोने के बर्तनों में खाना खा कर तथास्नाइपरों की सुरक्षा में समृद्ध भारत, सुरक्षित भारत का अनुभव लेकर बाइडेन, मैक्रों, ओलाफ स्कोल्ज, सुनक आदि जब स्वदेश लौटेंगे तो मोदीजी को तोगुरू समझे हुए होंगे। भला इन विदेशियों को सोने के बर्तन, अभेद सुरक्षा कहां मिली होती है!
सोचें, नई दिल्ली में, उसकी टीवी चैनलों-अखबारों में, पत्रकारों को यह ब्रीफिंग रत्ती भर नहीं है कि शिखर सम्मेलन में क्या होगा? एजेंडा क्या है? भारत की अध्यक्षता में नरेंद्र मोदी जी-20 का क्या कोई ठोस सर्वसम्मत प्रस्ताव पास कराएंगे? और यदि नहीं तो 9-10 सितंबर की जी-20 बैठक क्या दुनिया में फालतू नहीं माना जाएगी? या सिर्फ यह होना है कि देखो-देखो नरेंद्र मोदी की फोटो! देखो-देखो कैसी मजबूत छावनी में है दिल्ली! देखो-देखो चौराहे पर लगे शेर-घोड़ों की मूर्तियां? देखो-देखो रंग-बिरंगी इमारतें! देखो दिल्ली में तो कोई गरीब नहीं। सड़क पर गरीब गुरबा, मजदूर, आम आदमी नहीं है! देखो कैसी भव्य बैकड्रॉप पर नरेंद्र मोदी कतार में आ रहे राष्ट्राध्यक्षों से हाथ मिला रहे हैं!
एयरपोर्ट से शुरू दिल्ली और खासकर एनडीएमसी का राजधानी क्षेत्र मोटा-मोटी लॉकडाउन में है। मैं शुक्रवार शाम वसंत कुंज के नामी मॉल का अनुभव ले कर आया है। कोरोना काल वाली चहल-पहल व आवाजाही। लोग डर कर घर में घुसे हुए या घुसाए हुए। ऐसा भूतिया माहौल है, जिसमें लोग बाड़े में बंद हैं वही पूरी सरकार, उसके हजारों सुरक्षाकर्मी इस चिंता, डर और परेशानी में हैं कि लोहे की चादरों के पीछे छुपाई गई, ढकी गई बस्तियों से बाहर निकल भूत सड़कों पर चलते हुए दिखलाई नहीं दे जाएं! उन्हें विदेशी मेहमान देख नहीं लें। जाहिर है भारत में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ जैसा 9-10 सितंबर 2023 में नई दिल्ली में है। मैं 1978 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की दिल्ली यात्रा से विदेशी राष्ट्राध्यक्षों के भारत आने, शिखर बैठकों की भारत मेजबानी का प्रत्यक्षदर्शी हूं। ऐसे ही मेरा अनुभव मॉरिशस से लेकर वाशिंगटन में राष्ट्रपति द्वारा भारत के प्रधानमंत्री की मेजबानी का प्रत्यक्षदर्शी है तो दिल्ली, जकार्ता के निर्गुट शिखर सम्मेलनों, कॉमनवेल्थ शिखर बैठक को कवर करने का भी है। इस सबकी बैकग्राउंड में 9-10 सितंबर 2023 की जी-20 शिखर बैठक की बनती दास्तां सर्वाधिक गंवार, भोंडी और भूतिया है।
कैसे? पहली बात विश्व नेताओं से लोगों को, गंदगी व गरीबी और रियलिटी को इतना कभी नहीं छुपाया गया जितना अभी छुपाया है। पहले भी झुग्गी इलाकों को ढका जाता था। तोड़-फोड़ करके वीवीआईपी रास्ते साफ-सुथरे बनाए जाते थे। नागरिकों की आवाजाही पर अंकुश होता था। पर इस बार तो लोगों को बस्ती से बाहर नहीं निकलने देने, दफ्तर-दुकान बंद रखने, मजदूर-कामवालियों में घर बंद रहने का वह खौफ बना है मानो सब आंतकी हैं और उनसे असुरक्षा है! सोचें, एनडीएमसी की नई दिल्ली और पूरी दिल्ली की आबादी पर। राष्ट्रपति भवन-प्रधानमंत्री निवास से लेकर चाणक्यपुरी दूतावास क्षेत्र, प्रगति मैदान सभी तरफ झुग्गियां हैं। इसके साथ मेट्रो दिल्ली (जिसमें एयरपोर्ट से जाने-आने के साथ की बस्तियां भी) की सवा तीन करोड़ लोगों की आबादी को विश्व नेताओं के आगे से बिल्कुल ओझल बनाना और सबकी जगह सिर्फ और सिर्फ अकेले नरेंद्र मोदी की फोटो दिखलाना क्या उत्तर कोरिया के पूर्व राष्ट्रपति किम जोंग इलया उनके बेटे किम जोंग उन के ढर्रे पर दिल्ली की तस्वीर बनाना नहीं है? क्या यही नरेंद्र मोदी, जयशंकर, अजित डोवाल की वैश्विक कूटनीति में भारत तस्वीर का आइडिया है?
ध्यान रह साल पहले जी-20 शिखर बैठक का राष्ट्रपति जोको विडोडो ने भी इंडोनेशिया के बाली में आयोजन कराया था। मैं स्वंय प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के समय निगुर्ट देशों के राष्ट्राध्यक्षों की विशाल भीड़ के जकार्ता शिखर सम्मेलन का साक्षी हूं। तब वहां एकाधिकारी-तानाशाह सुहार्तो राष्ट्रपति थे। उनका मकसद भी शिखर सम्मेलन से अपने फोटोशूट तथा देश के भीतर वाहवाही बनवाने का था। लेकिन राजधानी जकार्ता में वैसा कोई भोंडापन नहीं हुआ, आयोजन में वह कोई गंवारपना नहीं झलका जो अभी दिल्ली में झलकता हुआ है। सुहार्तो के समय यदि जकार्ता में ट्रैफिक सहज था, सब खुला हुआ था तो उनकी हर चौराहे पर फोटो भी नहीं थी।
और मालूम है राष्ट्रपति जोको विडोडो ने जी-20 के बाली शिखर सम्मेलन से अपनी और देश की कैसी वैश्विक इमेज बनाई? राष्ट्रपति विडोडो ने मौजूदा विश्व के नंबर एक वैश्विक मुद्दे पर फोकस बना हर उस देश की यात्रा की, जिससे रियल कूटनीति हो। वे यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिलने खुद कीव गए। फिर वहां से पुतिन से मिलने गए। दोनों को बाली आने का न्योता दिया। वे बीजिंग भी गए। राष्ट्रपति शी जिनफिंग को निजी तौर पर न्योता दिया। इस सारी कूटनीति से उन्होंने अपने प्रति सच्चा मान-सम्मान बनवाया। वैश्विक मीडिया में उनके और बाली के भव्य आयोजन के चर्चे हुए। अंत में बैठक से सर्वसम्मति का प्रस्ताव भी पास हुआ।
हां, राष्ट्रपति विडोडो ने भी मौके का फायदा उठा कर जनता में अपनी इमेज निखारने के जतन किए। लेकिन उनका और उनके कारिंदों का प्राथमिक फोकस था बैठक को उद्देश्यों से सार्थक बनाना। सभी पक्षों, देशों में सर्वसम्मति की कोशिश कर अपनी अध्यक्षता का सम्मान बनवाना। कोई आश्चर्य नहीं जो साल बाद अभी उनकी कमान में आसियान का सार्थक सम्मेलन हुआ है। इंडोनेशिया अपने इलाके का, मतलब एशिया-प्रशांत क्षेत्र का रियल नेतृत्वकर्ता बना है, जबकि नरेंद्र मोदी केवल फोटोशूट कराते हुए हैं। अपनी फोटो दिखलाते हुए है। व्यर्थ की जुमलेबाजी करते हुए। सोचें, नौ वर्षों की कमान में नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देशों के सार्क का एक शिखर सम्मेलन नहीं किया। चीन के साथ पटरी नहीं बैठ रही तो वही भारत की ताजा हकीकत में मणिपुर प्रदेश में मैती और कुकी के बीच जमीन का बंटवारा बना है और इस हकीकत के बीच में भी इस पाखंडी जुमले में वे जी-20 की थीम बना रहे हैं कि वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर। क्या दुनिया के राष्ट्राध्यक्ष उल्लू हैं, जो भारत की अंदरूनी हिंदू-मुस्लिम या हिंदू-ईसाई की विभाजक राजनीति की हकीकत से बेखबर होंगे? या राष्ट्रपति बाइडेन, मैक्रों, ऋषि सुनक आदि पश्चिमी राष्ट्राध्यक्ष मेजबान मोदी के मुंह से न्यू वर्ल्ड ऑर्डर जरूरी का जुमला सुन यह नहीं बूझे कि प्रधानमंत्री चीन की जुबान बोल रहे हैं या रूस के पुतिन की?
सो, थोथा चना बाजे घना और दिल्ली की सच्चाई पर पर्दा और ताला लगा कर लॉकडाउन कर, दिल्ली को दुनिया की सर्वाधिक सुरक्षित राजधानी दिखला कर हम भले अपने आप को विश्व गुरू समझें लेकिन जी-20 के मेहमान राष्ट्राध्यक्ष वहीं सोच कर स्वदेश लौटेंगे जो उनकी पहले से प्राप्त ब्रीफिंग है, धारणा है।