दुनिया को 9-10 सितंबर 2023 के 48 घंटों में ‘विश्वपिता’ मिलने वाले है! हां, इन दो दिनों में राष्ट्रपति जो बाइडन, राष्ट्रपति मैक्रोन, प्रधानमंत्री ऋषि सुनक याकि पृथ्वी के महाशक्ति देशों, अमीरों, ज्ञान-विज्ञान और बुद्धीमना लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से वह ज्ञान, वे गुरूमंत्र, वह दिशा मिलने वाली है जैसे भारत को आजादी से पहले मोहनदास करमचंद गांधी से रामराज्य की दिशा मिली थी और वे हमारे राष्ट्रपिता हुए। वैसे ही जी-20 देशों के समूह के बतौर अध्यक्ष नरेद्र दामोदरदास मोदी से विश्व को गुरूमंत्र मिलेंगे तो स्वभाविक जो वे विश्व के पिता कहलाएं। विश्वपिता नरेंद्र मोदी। आखिर हम फील कर रहे है कि नरेंद्र मोदी से भारत में अमृतकाल है। मोदीजी ने रामराज्य से भी ऊंचा भारत का अमृतकाल बना दिया है। अमृतकाल से भारत का चंद्रयान चंद्रमा पर दौड रहा है। मोदीजी ऐसा अमृत चखा जा रहे है कि पच्चीस साल बाद 160 करोड लोगों का भारत जहां विकसित होगा वही फिर हजार साल भव्य भारत की किस्मत रचियता भी नरेंद्र मोदी। जब इतने कीर्तिमान तो विश्वपिता नरेंद्र मोदी के अभिनंदन में संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं?
हो सकता है मैं गलत होऊ, लेकिन मैं यही उद्देश्य 18 से 22 सितंबर के विशेष सत्र का मान रहा हूं। नरेंद्र मोदी का कमाल है जो दुनिया को टोपी पहना रहे है, भारत को टोपी पहना रहे है तो वे भला क्यों न
विश्वनेता, विश्वनियंता, विश्वपिता की टोपी पहने। पंडित नेहरू ने दुनिया के गरीब-कंगले निर्गुट देशों की नेतागिरी की थी लेकिन नरेंद्र मोदी तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस (भले इनके नेता वर्चुअल जुड़े) जैसे अमीरों-महाशक्तियों को गुरू मंत्र दे रहे है। उनके आगे ट्रंप और बाईइन राजभोग लगाते है। शी जिन पिंग के साथ वे झूले झुलते है। पुतिन उनके लिए दौड़े चले आते है? याद करे ऐसा महत्व महात्मा गांधी को कभी दिया? तो गांधी को भले हम राष्ट्रपिता कहें, नरेंद्र मोदी को तो विश्व पिता का मान देना होगा। तभी
भारत की संसद अपने विशेष सत्र में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित करें कि मोदीजी आप हमारे कल्कि भगवान अवतार और पृथ्वी के विश्वपिता।
सोचे, जब भारत की धरती पर 9-10 सितंबर को विश्वनेता मोदीजी के दिए अमृत को चखेंगे तो विश्व का क्या अमृतकाल शुरू नहीं होगा? अमृत भारत, विकसित भारत, भव्य भारत बना देने, 140 करोड लोगों के अच्छे-सुनहरे दिन लिवा लाने के बाद पृथ्वी भी यदि अमृतकाल फील करें तो नरेंद्र मोदी का अभिनंदन जायज होगा या नहीं। तब भला मोदीजी को भारतरत्न से नवाजने या संसद भवन की नई संसद इमारत के ठिक सामने महात्मा गांधी से बड़ी उनकी मूर्ति स्थापना का कर्तव्य होगा या नहीं?
संभव है पाठको को यह सब व्यंग लग रहा हो! मगर जरा भक्तों का दिल-दिमाग टटोले, गुलामी और गंवारपने में पकी खोपड़ियों का अंर्तमन बूझे तो क्षणभर में समझ आएगा कि जगतपिता, विश्वपिता नरेंद्र मोदी का तो रामजी से बड़ा मंदिर बनना चाहिए। सोचे, यदि मोदीजी हम हिंदुओं के कृपानिधान नहीं बनते तो क्या रामजी को उनका मंदिर मिलता? जिनके हाथों रामजी का उद्धार हुआ वे तो अपने आप पृथ्वीपालक विश्वपिता। बेचारे महात्मा गांधी, सरदार पटेल, पंडित नेहरू या सावरकर, गुरू गोलवलकर, अटलबिहारी वाजपेयी आदि कहा मोदीजी के आगे टिकेगें। जब महाशक्तियों के फर्जी विश्व नेता दिल्ली आ कर मोदीजी से विश्वदर्शन प्राप्त कर रहे है तो हमारे स्पीकर ओम बिडलाजी, जगदीप धनकडजी, केबिनेट के मंत्रीगण, सांसदगण भला क्यों प्रधानमंत्रीजी की आरती के लिए विशेष सत्र भी न बुलाए।
सो सस्पेंस में रहने की जरूरत नहीं है। हम सब नरेंद्र मोदी की गुजरात के वक्त से भूख देखते हुए है। भाग्य के धनी नरेंद्र मोदी गुजरात में रहते हुए भी प्रसिद्धी के भूखे थे। वे तब भी उतने ही इवेंट क्रिएट करते थे जितनी प्रधानमंत्री बनने के बाद किए है। और यदि 2024 में वे वापिस प्रधानमंत्री बने तो तय माने कि वे विश्वपिता के बाद ब्रहाण्डपिता बनने का अम़ृतकाल बनाएंगे। विश्व का अमृतकाल तो होगा ही बल्कि चंद्रयान, सुर्ययान, शनियान, शुक्रयान, मंगलयान लांच कर-करके उन तमाम ज्योतिषियों को फेल कर देंगे जो लिखते है कि मोदीजी की शनि या शुक्र दशा है तथा इनके चलते उनके साथ फंला-फंला होगा। देखा नहीं चंद्रयान के बाद चारण मीडिया सूर्य को भी देख लेने के कैसे-कैसे फट्टे मार रहा है। ऐसे-ऐसे एक ग्रह को मोदीजी देख लेंगे तथा सभी ग्रहों के वे नियंत्रक देवता होंगे। हां, मोदी है तो सब मुमकिन है।
व्यंग आ गया है। मगर भक्त से पूछिए, वह विस्तार से समझा देगा कि नौ ग्रह से बडा ग्रह है नरेंद्र मोदी। राहु-केतु, शनि-शुक्र तो मोदीजी के आगे पानी भरते हुए है। देख नहीं रहे है भारत के 140 करोड़ लोगों के कैसे अकेले ही राहु-केतु, शनि सब है। बहरहाल, वक्त आ गया है जो हम भारतीयों को मोदीजी के लिए ‘विश्वपिता नरेंद्र मोदी’ का जुमला जुबान पर चढ़ा लेना चाहिए।