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मोदी-अडानी का सचमुच बना इतिहास!

Gautam Adani bribery allegationsImage Source: ANI

Gautam Adani bribery allegations: गजब है! आदमी की भूख की, भ्रष्टाचार की निश्चित ही सीमा नहीं होती! खरबपति भी टुच्चे ठगों जैसा बिजनेस प्लान लिए होता है!

सामान्य विवेक की बात है जो दो साल पहले जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट में भंडाफोड़ हुआ था तो गौतम अडानी को तौर तरीके बदलने थे। नरेंद्र मोदी को भी अपनी और भारत की वैश्विक इमेज में अडानी के कान कसने थे।

लेकिन आज क्या प्रमाणित है? उलटे अडानी ने उस अमेरिका में झूठ, फरेब करके पैसा एकत्र किया, जहां भारत जैसा नंगा भ्रष्टाचार नहीं है! अमेरिकी निवेशकों से 175 मिलियन डॉलर इकठ्ठे किए।

भारत में ऱिश्वत दे कर, धंधे के अनुबंध दिखा कर, बीस वर्ष की अवधि में दो बिलियन डॉलर के मुनाफे की झांकी अमेरिकियों को दिखाई। वहां के नियम कायदों को ठेंगा दिखाया। (Gautam Adani bribery allegations)

ऐसे दुस्साहस व अहंकार से क्या साबित है? अडानी का यह घमंड कि, ‘सैंया भये कोतवाल तो अब डर काहे का’!

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क्या भाजपा? या नरेंद्र मोदी?

कौन सैंया? क्या संघ परिवार? क्या भाजपा? या नरेंद्र मोदी? दुनिया मानती है, दुनिया लिख रही है और मोदी-अडानी के रिश्तों के पुराने इतिहास की खबरों का इतना बडा रिकॉर्ड है कि यह गुजांइश ही नहीं है जो न मानें कि मोदी और अडानी एक-दूसरे के पर्याय हैं।

भारत सरकार अडानी की चरणदास है। प्रधानमंत्री मोदी जगत गुरू और अडानी जगत सेठ। और गुरू तथा सेठ की इस जुगलबंदी ने भारत की दस वर्षों में वह वैश्विक ख्याति बनाई है, जिसमें बहुत कुछ पहली बार है। नया इतिहास रचता हुआ है।

हां, अडानी ग्रुप पहली भारतीय कंपनी है जिस पर अमेरिकी अदालत में मुकद्मा दायर हुआ है और भारतीय खरबपति के खिलाफ “न्यायिक रूप से अधिकृत तलाशी वारंट” जारी है।

पहली बार है जो किसी देश (केन्या) की भरी संसद में उसके राष्ट्रपति ने अडानी ग्रुप को दिए ठेकों को रद्द करने की घोषणा की तो पूरे सदन ने तालियों से इस घोषणा का ऐसे स्वागत किया मानों देश ने किसी ठग, डाकू से मुक्ति पाई हो!

केन्या के राष्ट्रपति ने यह भी बताया कि उन्हें खुफियां एजेंसियों, मित्र देश (अमेरिका?) से जानकारी (अडानी ग्रुप की) मिली। इसलिए पारदर्शिता, ईमानदारी, जवाबदेही से संविधान के फलां प्रावधान के जरिए अडानी का ठेका रद्द कर रहे हैं।

इतिहास में पहली बार है कि बांग्लादेश के ढाका हाई कोर्ट ने हसीना वाजेद सरकार द्वारा अडानी के साथ बिजली खरीद समझौते की जांच का आदेश जारी किया। उसे दो महीने में पूरा करने का निर्देश भी दिया।

निश्चित ही गुरूवार का दिन यदि गौतम अडानी के लिए खराब था तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए भी था। पूरी दुनिया में अडानी के साथ मोदी की चर्चा है।

हर कोई लिख रहा है कि अडानी का इसलिए कोई बाल नहीं बिगड़ेगा क्योंकि उन्हें मोदी का वरदहस्त है।

जाहिर है जगत गुरू और जगत सेठ का समय

और इस वरदहस्त में दस वर्षों में जितने वैश्विक ठेके अडानी ने लिए हैं उन सबका जिक्र है। आश्चर्य नहीं होगा यदि केन्या की तरह आगे श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और इजराइल में अडानी ने जो बड़े प्रोजेक्ट लिए हैं उन सब पर अब वहां जनता, सरकार सभी पुनर्विचार करें।

भारत की वह बदनामी हो जैसे कि आज पूरे अफ्रीका में प्रवासी भारतीय समुदाय (केन्या से लेकर दक्षिण अफ्रीका सभी तरफ) शायद शर्मसार हो।

मेरा मानना है कि अमेरिका के मुकद्में से अधिक गंभीर केन्या का मामला है। इसलिए क्योंकि अडानी के प्रकरण से प्रवासी कारोबारियों को ले कर जो सोच व दुराग्रह है वह बढ़ेगा।

भारतीय कारोबारियों के लिए अडानी अब वह नाम है, जिससे अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण एशिया, अमेरिका और कनाडा के वैश्विक पैमाने में भारत देश और उसके कारोबार की चर्चा है।

जाहिर है जगत गुरू और जगत सेठ का समय अपने आप इतिहास लिखता हुआ है। तय मानें आगे और बनेगा? इसलिए क्योंकि अमेरिकी एजेंसियों, शेयर बाजार के उसके सिस्टम ने भारत के हर उस सिस्टम की पोल, बेईमानी, भ्रष्टाचार की प्रकृति को एक्सपोज किया है जो दुनिया के लिए छुपा हुआ था।

इस बात का अडानी, केंद्र सरकार, भाजपा या किसी भी तरफ से (इन पंक्तियों को लिखने तक) कोई प्रतिवाद नहीं है कि अमेरिकी एजेंसियों ने भारत में रिश्वत देने की जो डिटेल दी है वह झूठी है या नहीं?।

भले नाम मुख्यमंत्री जगन मोहन का हो या गैर-भाजपाई सरकारों के नेताओं, अधिकारियों का, दुनिया में तो जाहिर हुआ है कि भारत कितना करप्ट है। और भ्रष्टाचार के प्रोजेक्टों का आकार? वह भी नया इतिहास है!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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