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हरियाणा का उदाहरण

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सत्य को हरियाणा से समझें। याद करें, मोदी-शाह कब से हरियाणा विधानसभा के चुनाव की चिंता करते हुए हैं? खट्टर की जगह सैनी को मुख्यमंत्री बनाने के निर्णय से पहले से। पीएम ने अपने खास सीएम को बदला। गैर जाट ओबीसी के एक चेहरे को सीएम बनाया। प्रदेश की बड़ी, मुखर और दबंग जात के आगे छोटी-छोटी जातों का मैनेजमेंट बनाया। भक्त वोटों को बूथ पर पहुंचाने के लिए, एक-एक सीट की माइक्रो बिसात-मैनेजमेंट पर मोदी-शाह का फोकस था।

इस बारीक बात को नोट करें कि लोकसभा चुनाव तक नरेंद्र मोदी सौ फीसद अपने भगवान होने, अपने जादू-करिश्मे के आधार पर चुनाव जीतने की जिद्द बनाए हुए थे। मुंह की खाई तो सबक सीखा और बांटो-राज करो में धर्म और जात से वोटों का मैनेजमेंट शुरू किया। कांग्रेस की हर कमी को समझा। उसके लोगों को तोड़ा। कांग्रेसी के बागियों को हवा दी। दलित सैलजा को मोहरा बनाया। हुड्डा, हुड्डा, जाट हुड्डा का हल्ला बनवाया। दलित वोटों को बिखेरने, बरगलाने के लिए बसपा और चंद्रशेखर आजाद की पार्टी का प्रत्यक्ष-परोक्ष उपयोग किया। एक-एक सीट पर इतने ज्यादा उम्मीदवारों, पार्टियों की भीड़ बनवाई कि बूंद-बूंद की लड़ाई बनी। राम-रहीम को छोड़ा, उसके वोट पटाए।

ऐसे ही जाट विरोधी हर उस जाति में हवा भरी, जिससे भूपेंद्र, फिर दीपेंद्र के लंबे जाट राज की कल्पनाओं की बाकी जातियों में बेचैनी बनी। फिर आखिरी तीन दिनों में अचानक वह हर बंदोबस्त किया, जिससे मतदान के दिन घर बैठे भाजपा के वोटों को लिवाने के लिए गाड़ियां गईं। नतीजतन दोपहर तक कम मतदान के हल्ले के बाद घरों से लोगों को निकलवाने, वोट पड़वाने का भाजपा प्रबंधन तयशुदा रणनीति में था। इसके बाद भी मोदी-शाह ने कमी नहीं रखी। यह कोई नई बात नहीं है, हमेशा होता है सत्तारूढ़ पार्टी उन जिलों, उन सीटों की लिस्ट हमेशा बनाए रखती है, जिस पर लोकल प्रशासन, डीएम आदि के जरिए कुछ सौ, कुछ हजार वोटों की हेराफेरी की जाती है। खासकर अब यह इसलिए सहज, आसान है क्योंकि यों भी चुनाव आयोग मोदी-शाह के आगे नतमस्तक है!

सो, एक तरफ ग्राउंड जीरो के सघन बंदोबस्त। दूसरी बात ऊपर की हवा, भावनाओं को अपने प्रायोजित ब्लोअरों से स्पीड देना। इसे आकार में बता सकना मुश्किल है। लेकिन मेवात के अगल-बगल के जिलों में कांग्रेस के उम्मीदवारों का जो बुरा सफाया हुआ है और जम्मू कश्मीर में सौ टका जैसा मुसलमान और हिंदू का अलग-अलग वोट पड़ा है, वह क्या बताता है?  मोदी-शाह ने घाटी में उग्रवादी इंजीनियर राशिद, प्रतिबंधित जमाते इस्लामी के निर्दलीय उम्मीदवार खड़े करके नेशनल कॉन्फ्रेंस को हराने की जो जमीनी बिसात बिछाई थी उसके वहां  परखच्चे उड़े हैं, उन्हे मुसलमानों ने मोदी-शाह के प्रमोटी मान खारिज किया तो जाहिर है कि मतदान से ऐन पहले इजराइल- हिजबुल्लाह की सुर्खियों से दिल-दिमाग में बवाल बना।

इस सबको क्या कांग्रेस मुख्यालय, राहुल गांधी, अखिलेश, केजरीवाल, हुड्डा, पटोले, जयराम एंड पार्टी सोचते हुए हो सकती है? या वह इकोसिस्टम समझ सकता है जो इस खामोख्याली में था कि माइक के आगे हर कोई तो भाजपा के खिलाफ बोल रहा है या मुद्दा तो किसान, जवान, पहलवान का है।

ईमानदारी से सोचें, और चार महीने से पूरा देश यह जानते हुए है कि नरेंद्र मोदी कम सभाएं कर रहे हैं। पहले जैसे नहीं दिखते हैं। बावजूद इसके हरियाणा में वे कैसे जीते? नई एप्रोच, लोगों के मनोभाव और जमीनी हकीकत की सावधानियों की वजह से। खट्टर को हटा कर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बना, ब्राह्मण को प्रदेश अध्यक्ष बना, जाट बनाम बाकी 36 बिरादरी की राजनीति (हिंदू पंजाबी पहले से हैं) को मोदी-शाह ने चुपचाप जैसे पकाया तो बूझ सकते हैं कि भाजपा के 39.94 फीसदी वोटों में कितना मोदी का करिश्मा था और कितना जमीनी मैनेजमेंट था या वे भावनाएं थीं, जो अंग्रेजों के समय से बांटो और राज करो का हिंदुस्तानी यथार्थ हैं।

विषयांतर हो गया है। असल बात है लोकसभा में कांग्रेस, सेकुलर पार्टियां और विरोधी नेता नरेंद्र मोदी को हारता देखते थे और वे पंक्चर हुए (हारे नहीं) तो माना कि किसान, जवान, पहलवान का बड़ा मुद्दा है, गरीबी-बेरोजगारी-महंगाई की मार है और हुड्डा है तो कांग्रेस (विपक्ष) के लिए रास्ता आसान है!

मगर कांग्रेस और पूरे विपक्ष के लिए मोदी-शाह के रहने तक कभी कुछ आसान नहीं है। इसलिए भी कि जब पूरी दुनिया, दुनिया का हर चुनाव अपना-अपना हिंदू-मुसलमान लिए हुए है तो मोदी-शाह के लिए तो बहुत आसान है जो बंटोगे तो कटोगे से वोट की फसल काटना! मोदी-शाह की देन, कुल योगदान बांटना, काटना है और यही इनका इतिहास होना है। लेकिन राजनीति तो बंटने, कटने की चलती रहेगी। हिंदू बंटोगे तो मरोगे। मुसलमान बंटोगे तो मरोगे। जाटों को बनाओगे तो दलितों मरोगे। हुड्डा को बनाओगे तो गुर्जरों, मालियों, यादवों, बिरादरी वालों सुन लो, पर्चियों में तुम्हारे नाम नहीं होंगे, तुम्हे नौकरियां नहीं मिलेंगी। तुम मरोगे।

हां, हिंदू बनाम मुसलमान, ताकतवर जाति बनाम बाकी जातियों की सियासी मारकाट के साथ तोड़फोड़, खरीद फरोख्त, एकतरफा नैरेटिव तथा मन ही मन जिंदगी के वे सभी भय क्या भस्मासुरी नहीं हैं, जिससे पहले भी सैकड़ों साल हिंदू भयाकुल व गुलाम रहे! भय ही तो बन रहा है। हिमाचल, देहरादून, गाजियाबाद, मेवात के हल्ले से ले कर इजराइल, लेबनान, ईरान की खबरों ने हिंदू दिमाग को कैसा भयाकुल बनाया है तो उससे चुनाव भी प्रभावित होंगे

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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