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कांटों की पकी फसल

सावन के पवित्र महीने में कांवड़ लेकर जा रहे लोगों से जुड़ी एक घटना सुनने को मिली। उत्तर प्रदेश के बरेली में कांवड़ियों का एक जत्था एक मस्जिद के सामने रूक कर जोर जोर से डीजे बजाने लगा। वहां दंगे की स्थिति बन गई तो पुलिस पहुंची और उसने हलका लाठीचार्ज करके कांवड़ियों को वहां से हटा दिया। लेकिन कांवड़िए अभी बरेली में ही थे कि लाठी चलाने वाली पुलिस के प्रमुख यानी जिले से एसएसपी का तबादला हो गया। एसएसपी प्रभाकर चौधरी ने दंगा रुकवाया था, जिसका उन्हें इनाम मिलना चाहिए था लेकिन तत्काल उनका तबादला हो गया। फिर सोशल मीडिया में यह नैरेटिव चला कि योगीजी का राज है इसलिए ऐसा हो सका। इसका मतलब यह निकलता है कि अगर दूसरों के धर्मस्थलों के सामने डीजे बजाने की आजादी चाहते हैं तो मौजूदा राज को बचाए रखिए।

जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन की घटना भी इसी सोच का नतीजा है, जिसमें आरपीएफ के एक जवान ने कथित तौर पर चार लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी। मरने वालों में एक आदिवासी और तीन मुस्लिम हैं। इस भयावह हत्याकांड को अंजाम देने के बाद का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें वह पाकिस्तान की बात करता सुनाई दे रहा है और यह भी कि भारत में रहना है तो मोदी-योगी को वोट देना होगा। जिस दिन महाराष्ट्र में चलती ट्रेन में यह घटना हुई उसी दिन राजधानी दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात इलाके में दंगा भड़क गया। खबरों के मुताबिक नूंह के चौराहे पर ब्रजमंडल यात्रा के ऊपर मुसलमानों ने हमला किया।

उकसावे वाली कार्रवाई दोनों तरफ से हुई थी लेकिन इसमें संदेह नहीं है कि हमला मुसलमानों ने किया। यह विशुद्ध रूप से पुलिस और प्रशासन की विफलता है। इस यात्रा को लेकर तनाव का माहौल कई दिन से बन रहा था कि दो मुसलमानों की हत्या के एक आरोपी के इस यात्रा में शामिल होने के वीडियो वायरल हो रहे थे। जवाब में मुसलमानों की ओर से भी मारने-काटने के वीडियो डाले जा रहे थे। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने इस तरह की वीडियो डालने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसा लग रहा है कि उनको छोड़ दिया गया कि आपस में अपना मामला निपटा लो।

इसका नतीजा यह हुआ कि अत्यंत पिछड़े जिले मेवात से लेकर देश के मिलेनियम सिटी यानी गुरुग्राम तक दंगे की आग फैल गई। इसमें सात लोग मारे गए, जिनमें से छह हिंदू हैं। सोचें, उधर एक जवान के हाथ में ऑटोमेटिक राइफल थी तो उसने तीन मुसलमानों को मार डाला और इधर मुस्लिम बहुल इलाके से यात्रा निकली तो उन्होंने हमला करके छह हिंदुओं को मार डाला! इसका मतलब है कि राजनीतिक लाभ के लिए जो फसल दशकों पहले बोई गई थी वह पूरी तरह से पक गई है।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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