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दुश्मन खड़ा करना है और उससे लड़ना है

यदि भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति को गौर से देखें, जो कि सोशल मीडिया में उसके आईटी सेल से जुड़े लोगों और समर्थकों की पोस्ट से मालूम होती है, तो लगेगा कि भारत का सबसे बड़ा सामरिक या बाहरी शत्रु चीन नहीं बल्कि पाकिस्तान है। वही अंतरिक या घरेलू शत्रु गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई आदि नहीं, बल्कि मुसलमान है। तभी सीमा पर हमेशा घुस कर मारने की धमकी पाकिस्तान को दी जाती है और देश में मुसलमान को ठीक करने का नैरेटिव बनाया जाता है। यह कोई आज की रणनीति नहीं है। एक सदी से ज्यादा समय बीत गए, जब दो राष्ट्र का सिद्धांत दिया गया था।मतलब हिंदू और मुसलमान दो राष्ट्र हैं, जो एक साथ नहीं रह सकते हैं। जिस समय यह सिद्धांत आया उस समय राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की स्थापना भी नहीं हुई थी। उस समय एक तरफ हिंदू संगठन यह बात कर रहे थे तो दूसरी ओर थोड़े दिन के बाद ही मोहम्मद अली जिन्ना ने हर जिले में हिंदुस्तान और पाकिस्तान बनाने की बात कही थी।

दुर्भाग्य से एक सौ साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी स्थिति बदली नहीं है, बल्कि और बदतर हो गई है। एक तरफ मुसलमानों को पूरी धरती पर इस्लामी राज बनाना है तो दूसरी ओर हिंदुओं की एकमात्र पुण्य भूमि भारत को हिंदू राष्ट्र में बदलना है। हालांकि भारत को किस तरह से हिंदू राष्ट्र बनाना है इसका कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं दिखेगा। लेकिन ऐसा लग रहा है कि उसकी पहली सीढ़ी यह है कि मुसलमान को सबसे बड़ा दुश्मन और हिंदू राष्ट्र के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा समझा जाए। इसलिए हर जगह और हर तरह से उसका विरोध करना है, उसके खिलाफ लड़ना है। यह लड़ाई अंततः व्यापक हिंदू समाज के मन में भाजपा और उसमें भी उसके मौजूदा नेतृत्व को स्वीकार करने का भाव बनाती है। तभी अक्सर सुनने को मिलता है कि सरकार में लाख कमी है लेकिन क्या करें मजबूरी है। अगर इनको हटाया तो भारत इस्लामी देश बन जाएगा या मुसलमान जीने नहीं देंगे।

यह बात किस तरह से अलग अलग जगहों पर प्रकट हो रही है इसे हाल की घटनाओं से देखा जा सकता है। ये सारी घटनाएं पिछले कुछ बरसों में हुई राजनीति और मीडिया व सोशल मीडिया के जरिए फैलाई गई नफरत का नतीजा हैं। पिछले दिनों सोशल मीडिया में एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें ट्रेन में एक मुस्लिम बुजुर्ग ऊपर की सीट पर चुपचाप नमाज पढ़ रहे थे। उसी समय नीचे की सीटों पर बैठे कुछ हिंदू नौजवान जोर-जोर से हनुमान चालीसा का पाठ करने लगे। सोचें, उन नौजवानों के मन में उस समय क्या भाव रहा होगा? क्या वे हनुमान जी के प्रति श्रदधा की वजह से हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे या उन्हें एक बुजुर्ग मुसलमान की इबादत में खलल डालना था? इसका जवाब बहुत मुश्किल नहीं है। यह इस रणनीति का एक  पहलू है कि कहीं भी मुसलमान दिखे तो उसके साथ टकराव की स्थिति पैदा करनी है। इस तरह की घटनाओं को यह कह कर जस्टिफाई भी किया जाता है कि इबादत करनी है तो घर पर करें या मस्जिद में जाकर करें। यह अलग बात है कि हिंदू समाज के ज्यादातर धार्मिक काम सड़कों पर होते हैं। लेकिन यदि मुसलमान सार्वजनिक जगह पर इबादत करता दिखे तो उसमें खलल डालना है। और ऐसा करने के लिए हर दिन कोई न कोई नया संगठन सामने आ जा रहा है।

इसी सोच के साथ गुरुग्राम में मुसलमानों के सार्वजनिक जगह पर नमाज पढ़ने के दौरान कई हिंदू संगठनों ने वहां व्यवधान पैदा किया। कई शुक्रवार को जुमे की नमाज के दौरान जब मुस्लिम समाज के लोग इकट्ठा हुए तो वहां हिंदू समाज के लोग झाल-मंजीरा बजाते हुए पहुंच गए। नमाज में बाधा पैदा की। इस तरह की घटनाओं के बाद कई जगह सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ना बंद हो गया। इसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया। कहा गया कि मौजूदा राज की वजह से ऐसा हो पाया है, वरना पहले तो अगर नमाज में बाधा डालते तो मार दिए जाते या जेल भेजे जाते। इसका मतलब है कि मौजूदा शासकों को रखना है ताकि मुसलमानों को सार्वजनिक जगहों पर नमाज पढ़ने से रोका जा सके।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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