Opposition Parties Gautam Adani Issue: यह संयोग है या प्रयोग कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी ने संसद के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के कन्नी काटी और अडानी मुद्दे पर संसद ठप्प करने में शामिल होने से इनकार किया।
उसके बाद ममता बनर्जी के विपक्षी गठबंधन का नेता बनने की चर्चा शुरू हो गई? यह सही है कि ममता बनर्जी ने खुद ही चर्चा शुरू कराई।
उन्होंने कहा कि, ‘इंडिया’ ब्लॉक का गठन उन्होंने किया है और इसलिए मौका मिले तो उसका नेतृत्व करना चाहेंगी।
हालांकि हकीकत यह है कि विपक्ष का गठबंधन बनाने का ममता का, के चंद्रशेखर राव का और अरविंद केजरीवाल का प्रयास विफल था।
अभी जो विपक्षी गठबंधन है वह नीतीश कुमार का बनाया है, जिसमें ममता बनर्जी भी थीं और बाद में नीतीश व ममता दोनों बाहर हो गए।
परंतु पहले ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि वह अडानी के मसले पर संसद ठप्प करने के पक्ष में नहीं है और उसके सांसदों ने कांग्रेस व दूसरी विपक्षी पार्टियों के प्रदर्शन में शामिल होना बंद किया।
उसके बाद ममता ने ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेता बनने की इच्छा जाहिर की और फिर एक एक करके तमाम विपक्षी पार्टियां उनका समर्थन करने लगीं।
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उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता संजय राउत ने भी उनका समर्थन किया तो शरद पवार ने भी उनका साथ दिया।
कांग्रेस के ऑल वेदर फ्रेंड माने जाने वाले लालू यादव ने तो यहां तक कहा कि ममता बनर्जी को नेता बना देना चाहिए और कांग्रेस अगर विरोध करती है तो उस पर ध्यान देने की जरुरत नहीं है।
इनमें से उद्धव ठाकरे एकमात्र नेता हैं, जिन्होंने खुल कर अडानी का विरोध किया था लेकिन ऐसा लग रहा है कि उनका विरोध महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव तक सीमित था और वह भी अडानी के एक धारावी प्रोजेक्ट को लेकर था।
सिद्धांत रूप से वे अडानी, अंबानी विरोधी नहीं माने जाते हैं। आखिर अंबानी के यहां शादी में बाराती बन कर जितने नेता शामिल हुए थे उनमें राहुल या नेहरू गांधी परिवार के अलावा बाकी सारे विपक्षी नेता शामिल ही थे।
ममता भी थीं और लालू प्रसाद का पूरा परिवार भी था और अखिलेश यादव भी सपरिवार पहुंचे थे।
लेफ्ट के नेता जरूर नहीं गए थे लेकिन संभवतः उनको बुलाया भी नहीं गया हो। लेकिन सोनिया गांधी के परिवार को न्योता देने तो मुकेश अंबानी खुद पहुंचे थे।
अडानी के नाम पर संसद ठप्प
सो, पहले ममता बनर्जी की पार्टी ने अडानी के नाम पर संसद ठप्प करने इनकार किया और उसके बाद अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने भी यही लाइन पकड़ी।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की सांसद पत्नी डिंपल यादव ने कहा कि अडानी मामले से सपा का कोई लेना देना नहीं है। सवाल है कि कांग्रेस का भी क्या लेना देना है?
फिर भी कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया है क्योंकि एक के बाद एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह, पत्रकारों का संगठन और विदेशी सरकारें या उनकी एजेंसियां अडानी समूह को कठघरे में खड़ा कर रही हैं।
अडानी दुनिया में क्रोनी कैपिटलिज्म के प्रतीक बने हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके संबंधों को उछालने से बड़ा राजनीतिक नैरेटिव बनता है।
इसलिए कांग्रेस और राहुल गांधी यह मुद्दा उठा रहे हैं। लेकिन बाकी विपक्षी पार्टियां या तो इससे अलग हो रही हैं या दिखावे के लिए कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं।
लालू और शरद पवार की पार्टी विरोध में शामिल(Opposition Parties Gautam Adani Issue)
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की पार्टी विपक्ष के विरोध प्रदर्शन से अलग हो गई लेकिन लालू प्रसाद और शरद पवार की पार्टी विरोध प्रदर्शन में शामिल है।
एक और सत्य कि शरद पवार का तो अडानी विरोध कभी रहा ही नहीं है। फिर उनकी पार्टी के अडानी के खिलाफ प्रदर्शन में शामिल होने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह सिर्फ दिखावा है।
आखिर चाचा भतीजे यानी शरद पवार और अजित पवार ने स्वीकार किया है कि 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सरकार गठन में गतिरोध पैदा हुआ था तो ये सभी लोग अडानी के साथ बैठे थे सरकार बनाने के लिए।
अजित पवार ने कहा था कि अडानी के घर पर गौतम अडानी की मौजूदगी में भाजपा और एनसीपी के नेताओं की बैठक हुई थी।
बैठक में अमित शाह भी थे और शरद पवार
खबर थी कि बैठक में अमित शाह भी थे और शरद पवार भी थे। बाद में शरद पवार ने सफाई दी तो इतना कहा कि बैठक गौतम अडानी की पहल पर हुई थी और दिल्ली में उनके घर पर हुई थी लेकिन उसमें अडानी खुद मौजूद नहीं थे।
बाद में अडानी को मुंबई में शरद पवार के घर जाते सबने देखा। लालू प्रसाद या उनके बेटे तेजस्वी यादव या सांसद बेटी मीसा भारती भी कभी अडानी या अंबानी के खिलाफ बयान नहीं देते हैं।
यह काम उन लोगों ने अपने राज्यसभा सांसद मनोज झा के ऊपर छोड़ रखा है।(Opposition Parties Gautam Adani Issue)
सो, चाहे उद्धव ठाकरे की शिव सेना हो, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस हो, शरद पवार की एनसीपी हो, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी हो या लालू प्रसाद का राजद हो किसी को सैद्धांतिक रूप से अडानी से परेशानी नहीं है।
इनमें से कुछ तो खुल कर अडानी मुद्दे से अपने को अलग कर चुके हैं और कुछ दिखावे के लिए राहुल व कांग्रेस के साथ जुड़े हुए हैं।