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चीन रत्ती भर पीछे नहीं!

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भारत के प्रति चीन इंच भर (हां, इंच भर) न नर्म होगा, न पीछे हटेगा। इसका फिर प्रमाण 23 अक्टूबर 2024 की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिन पिंग की मुलाकात है। वैश्विक राजनीति के परिपेक्ष्य में मुझे भारत के विदेश मंत्री, विदेश सचिव के बयानों से चीन के लचीले बनने की उम्मीद थी। लगा लद्दाख क्षेत्र की सीमा पर चीन अप्रैल 2020 से पूर्व की यथास्थिति लौटा देगा। भारतीय सेना जिस इलाके में पैट्रोलिंग करती थी, वहां वह वापिस करने लगेगी। चीन यदि अपने कब्जाएं 2000 वर्गकिलोमीटर भारतीय क्षेत्र से सैनिक हटाता है, दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने के गतिरोध से पीछे हटती है तो भारत का चीन पर विश्वास बनेगा। दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश तब मन से चीन का दोस्त होगा। और चीन-रूस मिलकर विश्व राजनीति में अपनी जो अलग व्यवस्था बना रहे है उसमें भारत साझेदार या परोक्ष समर्थक होगा। वह सैनिक-सुरक्षा चिंता में अमेरिका-पश्चिमी देशों की और देखना रोक देगा। इससे चीन-रूस के पश्चिमी देशों के खिलाफ शक्ति परीक्षण, नई विश्व व्यवस्था, वित्तिय व्यवस्था के एजेंडे को बल मिलेगा। आखिर 140 करोड़ लोगों की आबादी का देश डालर में लेन-देन के सिस्टम से युआन-रूबल मिक्स करेंसी के एक्सचेंज का आंशिक सहभागी भी बने तो उथल-पुथल होगी।

वास्तविकता है ताईवान को ले कर चीन की अमेरिका से जबरदस्त ठनी हुई है। उसकी आर्थिकी अमेरिका-योरोप की घेरेबंदी से मंदी की मारी है। वह रूस के साथ सैनिक-सामरिक-आर्थिकी की साझेदारी से दुनिया का अछूत हुआ है तो ऐसे में भारत यदि उसके मंसूबों की नई विश्व व्यवस्था में उसका साझेदार या मौन पैरोकार भी बने तो रूस-चीन के झंड़े का दबदबा बढ़ेगा। जब दांव इतने ऊंचे और भविष्य दृष्टि के है तब लद्दाख क्षेत्र के बंजर पठार के 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में चीन अपनी सेना को अप्रैल 2020 की स्थिति में लौटा ले तो नुकसान से ज्यादा उसे फायदा है!

मगर नहीं! चीन की मनोदशा में इंच भर पीछे हटने या झुकने की वृति नहीं है। माओं, चाऊएनलाई, देंग और शी जिन पिंग के समय में बार-बार जाहिर हुई भारत के प्रति हिकारत का उसका रवैया जस का तस है। चीन भारत का वह पड़ौसी है जो धूर्त, स्वार्थी है तो तलवारधारी विश्व व्यापारी भी है। इक्कीसवीं सदी में वह भारत सहित पूरी दुनिया को अपनी वर्चस्ववादी धुरी का पुछल्ला बनाने की जिद्द ठाने हुए है। उसके रोडमैप में अब एक कदम पीछे दो कदम आगे का व्यवहार भी नहीं है। उसे व्यापार और आर्थिकी की रणनीति में भारत को पुछल्ला बनाना ही है।

फिलहाल उसके ताजा इरादों पर गौर करें। एक, चीन ने रूस को अपनी फैंचाइंजी बना लिया है। रूस उस पर आश्रित है। उसका कंधा है। राष्ट्रपति शी जिन पिंग जो कहेंगे वही पुतिन करेंगे। पुतिन कतई शी जिन पिंग को नहीं समझा सकते है। दो, चीन-रूस का एकीकृत मिशन अमेरिका-पश्चिम की केंद्रीकृत धुरी के आगे अपनी नई विश्व व्यवस्था बनाना है। तीन, चीन ने इसके लिए दुनिया भर के छोटे-गरीब देशों को बेइंतहा पैसा दे कर उन्हे अपना मोहताज बनाया है। भारत के सभी पड़ौसी चीन पर आश्रित है। अर्थात वह देशों की संख्यात्मक ताकत बनाते हुए है। चार, भारत, जापान, आस्ट्रेलिया जैसे देशों को चीन ने सैनिक दबाव और व्यापार के दोहरे कारणों से दुविधा, चिंता तथा आयातों की निर्भरता में ऐसा फंसाया है कि भारत के विदेश मंत्री को सार्वजनिक तौर पर यह मजूबरी बतलानी पड़ती है कि यह मुद्दा (व्यापार) जटिल है और इसमें ब्लैक एंड व्हाइट जैसा कुछ नहीं है। पांच, ब्रिक्स की बैठक में नेटो सदस्य तुर्की को न्यौत कर तथा मिस्र, इथियोपिया की सदस्यता का अर्थ है कि चीन-रूस ने  उत्तर-मध्य एसिया के सभी इस्लामी देशों के अलावा पाकिस्तान से तुर्की तक फैले  पूरे पश्चिम एसिया, उत्तर अफ्रिका के उस सभ्यतागत क्षेत्र को अपने प्रभाव में लेने का ब्ल्यूप्रिंट बनाया है जहां इस्लामी देशों (विशेषकर यहूदी इजराइल के परिपेक्ष्य में) की गोलबंदी भविष्य में चीनी सभ्यता का खंभा हो सकती है।

तभी चीन और राष्ट्रपति शी जिन पिंग के दिमाग के कोने में भारत की जीरो अंहमियत है। चीन का थिंकटैंक जानता है 140 लोगों का भारत कभी ईस्टइंडिया कंपनी से चलता था अब अदानी-अंबानी से चलता है। अदानी-अंबानी, कारोबारियों को मैनेज करों, उनका मुनाफा बनवाओं तो अपने आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कजाक भागे आएंगे। विदेश मंत्री जयशंकर, विदेश मंत्रालय खुद ही हैडलाइन बना डालेंगे कि भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गश्त के पैटर्न को लेकर एक समझौते पर पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी कजाक जा कर राष्ट्रपति से मुलाकात कर रहे है। फिर भले हम-आप और दुनिया खोजती रहे कि भारत के सैनिक क्या सचमुच डेपसांग, गलवान, गोगरा, पैंगॉन्ग के नॉर्थ ब्लॉक और कैलाश रेंज में वैसे ही गस्त लगाते हुए है जैसे अप्रैल 2020 से पहले लगा रहे थे?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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