भारत में चीन के निवेश की कहानी और रहस्यमय है। भारत का कारोबार चीन से बढ़ रहा है। भारत ने अपना बाजार लगभग पूरी तरह से चीन के लिए खोल दिया है लेकिन चीन की पूंजी भारत नहीं आ रही है। कायदे से जब भारत ने अपना बाजार चीन को दिया है तो चीन को अपनी पूंजी भी भारत में लगानी चाहिए। यह सवाल इस साल बजट से पहले पेश की गई आर्थिक रिपोर्ट में भी उठा था। उसमें यह सवाल उठा था कि जब चीन से आयात इतना बढ़ रहा है तो उस अनुपात में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश क्यों नहीं आ रहा है?
सवाल है कि क्या चीन भारत को इस लायक नहीं समझ रहा है कि वह पूंजी निवेश करे? या भारत सरकार की नीति है कि चीन से कारोबार तो करो लेकिन निवेश रोक कर अपने राष्ट्रवादी समर्थकों को यह मैसेज दिया जाए कि चीन को पूंजी नहीं लगाने दिया जा रहा है? इसमें कुछ तो झोल है क्योंकि भारत के कुल आयात में चीन का हिस्सा 15 फीसदी है परंतु प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में उसका हिस्सा महज 0.1 फीसदी है। यानी एक फीसदी के 10वें हिस्से के बराबर!
सोचें, दुनिया के अनेक छोटे देश चीन से ज्यादा निवेश कर रहे हैं। इसका एक कारण तो यह है कि भारत सरकार ने चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लेकर कुछ शर्तें लगाई हैं। सख्त जांच और मंजूरी के बाद ही निवेश आ सकता है। आमतौर पर सरकार का नजरिया चीन के निवेश को रोकने वाला होता है। निवेश के साथ साथ चीनी नागरिकों के वीजा पर भी बहुत सख्ती हो रही है, जिससे चीन के तकनीशियन भारत नहीं आ पा रहे हैं। भारत एक तरह से चीन के निवेश को हतोत्साहित कर रहा है। कुछ समय पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर की चीन की कंपनी ग्रेट वॉल मोटर कंपनी ने भारत में एक अरब डॉलर के निवेश का प्रस्ताव रखा था।
लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली। इसी तरह पिछले दिनों दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रिक कार कंपनी बीवाईडी ने एक और अरब डॉलर के निवेश का प्रस्ताव रखा। इसके निवेश प्रस्ताव में बेहद आधुनिक तकनीक वाला एक बड़ा बैटरी प्लांट भी शामिल था। परंतु इस प्रस्ताव को भी मंजूरी नहीं मिली। गौरतलब है कि बीवाईडी की कारों की बिक्री टेस्ला से अधिक है। ऐसे ही लक्सशेयर एप्पल वैल्यू चेन जैसी सबसे बड़ी चीनी कंपनियों में से एक है।
यह एप्पल की घड़ियां और एयरपॉड्स की तरह के उपकरण बनाती है। इसने एप्पल की एक प्रमुख स्थानीय आपूर्तिकर्ता बनने के लिए भारत में साढ़े सात सौ करोड़ रुपे का निवेश करने का प्रस्ताव दिया था। तमिलनाडु सरकार चाहती थी कि इसे मंजूरी दी जाए इसके बावजूद इस निवेश प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। ये कुछ उदाहरण हैं, जिनसे सरकार के नजरिए को समझा जा सकता है।
भारत में 2020 से पहले कुछ निवेश हुए थे, जिसमें मोरिस गैराज के जरिए चीन की एसएआईसी का निवेश भारत में हुआ था। गौरतलब है कि ब्रिटिश ऑटो कंपनी मोरिस गैराज का स्वामित्व अब शंघाई स्थित एसएआईसी के पास है। लेकिन 2023 में कंपनी ने भारत में हुए निवेश में चीनी कंपनी की हिस्सेदारी घटाई जाएगी और पांच साल में यानी 2027 तक यह गुजरात में लगी इसकी विनिर्माण ईकाई में भारतीय कंपनी की हिस्सेदारी ज्यादा हो जाएगी, जिससे उसका स्वामित्व बन जाएगा। असल में 2020 में गलवान घाटी की झड़प के बाद से भारत सरकार का नजरिया बदला और चीन के निवेश को हतोत्साहित किया गया।
इसके बावजूद कुछ समय पहले मुकेश अंबानी की रिलायंस रिटेल वेंचर्स ने चीन के फैशन ब्रांड शीन के साथ समझौता किया और उसको भारत में लाने की तैयारी की जा रही है। इस समझौते के मुताबित शीन के उत्पाद रिलायंस के ऐप और ऑफलाइन स्टोर्स पर मिलेंगे। गौरतलब है कि भारत में फैशन ब्रांड का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2031 तक यह बाजार 50 अरब डॉलर से भी ज्यादा का हो जाएगा। शीन दुनिया की सबसे बड़ी फैशन कंपनियों में से एक है। इसके 150 से ज्यादा देशों में ग्राहक हैं। 2023 में शीन का मुनाफा दो अरब डॉलर से ज्यादा रहा है।